भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में देश के इतिहास का एक अहम अध्याय दर्ज हुआ, जब 210 नक्सलियों ने एक साथ हथियार डालकर आत्मसमर्पण किया। इनमें कई बड़े और इनामी नक्सली शामिल थे, जिन्होंने वर्षों तक राज्य के घने जंगलों में हिंसा का तांडव मचाया था। यह कदम राज्य में भाजपा सरकार के मजबूत शासन, दृढ़ सुरक्षा नीति और पुनर्वास केंद्रित दृष्टिकोण का प्रत्यक्ष परिणाम माना जा रहा है। भारत में नक्सलवाद की समस्या पांच दशकों से अधिक समय से जड़ जमाए हुए है। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में इस आंदोलन ने हजारों जानें लीं और विकास की रफ्तार को रोका। बस्तर, अबूझमाड़ और सुकमा जैसे इलाके लंबे समय से “लाल गलियारा” का हिस्सा माने जाते रहे हैं। लेकिन भाजपा शासन के आने के बाद छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ नीति और रणनीति दोनों में निर्णायक बदलाव देखने को मिला। केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर “समर्पण और समावेशन” की नीति अपनाई — यानी एक तरफ सख्त सुरक्षा अभियान, तो दूसरी तरफ संवाद और पुनर्वास के रास्ते खुले रखे गए। गृहमंत्री अमित शाह के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में 2100 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, 1785 गिरफ्तार हुए और 417 मुठभेड़ों में मारे गए। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि अब नक्सल संगठन बिखर रहे हैं और उनकी जड़ें कमजोर हो रही हैं। जगदलपुर में हुए इस आत्मसमर्पण समारोह में दृश्य भावनात्मक और प्रतीकात्मक दोनों थे। नक्सलियों ने हाथ में भारतीय संविधान की प्रति और गुलाब थामकर हिंसा छोड़ने का संकल्प लिया। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इसे राज्य के लिए “ऐतिहासिक दिन” बताया और कहा कि यह न केवल बस्तर, बल्कि पूरे देश के लिए उम्मीद का संदेश है कि हिंसा का कोई भविष्य नहीं होता, लोकतंत्र ही स्थायी रास्ता है। आत्मसमर्पण करने वालों में लगभग 110 महिलाएँ और 100 पुरुष नक्सली शामिल थे। इन लोगों के पास से 153 हथियार बरामद किए गए, जिनमें AK-47, INSAS, LMG, SLR और .303 राइफलें शामिल थीं। इनमें से कई नक्सलियों पर लाखों रुपये के इनाम घोषित थे। विशेष रूप से एक करोड़ रुपये के इनामी नक्सली “रुपेश” का सरेंडर सबसे उल्लेखनीय रहा। सूत्रों के अनुसार, वह नक्सलियों की “सेंट्रल कमेटी” से जुड़ा था और बस्तर क्षेत्र में कई बड़ी वारदातों का मास्टरमाइंड माना जाता था। भाजपा की सरकार ने नक्सल समस्या के समाधान के लिए तीन आयामी रणनीति अपनाई — सुरक्षा, विकास और विश्वास निर्माण। सुरक्षा मोर्चा: केंद्रीय बलों और राज्य पुलिस की संयुक्त कार्रवाई से नक्सली ठिकानों को तोड़ा गया। खुफिया तंत्र को मजबूत किया गया और सीमावर्ती जिलों में सड़क नेटवर्क बढ़ाया गया। विकास मोर्चा: सड़क, बिजली, स्कूल, अस्पताल और इंटरनेट जैसी सुविधाएँ दूरदराज के इलाकों तक पहुँचाई गईं। सरकार का मानना है कि जब नागरिक सेवाएँ गाँवों तक पहुँचेंगी, तो नक्सल विचारधारा का प्रभाव स्वतः घटेगा। विश्वास निर्माण: आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास, शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वरोजगार और सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री साय ने कहा, “हम बंदूक छोड़ने वालों को समाज में सम्मान के साथ जगह देंगे।” इस सामूहिक आत्मसमर्पण ने छत्तीसगढ़ के राजनीतिक परिदृश्य में भी हलचल मचा दी है। कांग्रेस ने भले इसे “पुरानी योजनाओं का परिणाम” बताया हो, परंतु यह स्पष्ट है कि भाजपा शासन के दौरान नक्सल समस्या में वास्तविक गिरावट आई है। भाजपा के लिए यह उपलब्धि केवल कानून-व्यवस्था की जीत नहीं, बल्कि उसकी शासन क्षमता और नीति निर्धारण की सफलता का प्रतीक भी है। चुनावी दृष्टि से भी यह सरकार की छवि को मजबूती देता है, क्योंकि बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में यह संदेश गया है कि सरकार केवल वादे नहीं, परिणाम भी दे रही है। हालाँकि 210 नक्सलियों का एक साथ आत्मसमर्पण अभूतपूर्व है, परंतु यह संघर्ष का अंत नहीं। राज्य के दक्षिणी हिस्से के कुछ इलाकों में नक्सली अब भी सक्रिय हैं। जंगलों में फैले इलाकों में प्रशासनिक पहुँच और सामाजिक जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता बनी हुई है। साथ ही, आत्मसमर्पण करने वालों के सत्यापन और पुनर्वास प्रक्रिया पर पारदर्शिता भी जरूरी है। अतीत में झारखंड जैसे राज्यों में फर्जी आत्मसमर्पण के मामले सामने आ चुके हैं, जहाँ सामान्य नागरिकों को नक्सली बताकर सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग हुआ। ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि पुनर्वास का लाभ केवल वास्तविक पूर्व नक्सलियों तक पहुँचे। भाजपा शासन में जिस प्रकार नक्सल समस्या पर “समग्र समाधान” की दृष्टि अपनाई गई है, वह अन्य राज्यों के लिए भी मॉडल बन सकता है। राज्य सरकार ने “मुख्यधारा से जुड़ो” अभियान को गांव-गांव तक पहुँचाने की योजना बनाई है। इससे यह उम्मीद बंधी है कि आने वाले वर्षों में बस्तर और आसपास के क्षेत्र पूरी तरह नक्सल-मुक्त हो सकते हैं। केंद्र सरकार ने भी संकेत दिए हैं कि आत्मसमर्पण करने वालों के लिए “राष्ट्रीय पुनर्वास नीति 2025” लाई जा सकती है, जिसमें शिक्षा, रोज़गार और सामाजिक एकीकरण पर विशेष ध्यान होगा। छत्तीसगढ़ में 210 नक्सलियों का आत्मसमर्पण केवल एक समाचार नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र की शक्ति और संवाद की जीत है। यह दिखाता है कि जब शासन दृढ़ निश्चयी हो, सुरक्षा नीति सुसंगत हो और जनता को साथ लेकर चला जाए, तो कोई भी हिंसक विचारधारा टिक नहीं सकती। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के शब्दों में — “आज बंदूकें झुकी हैं, संविधान उठा है। यही नए छत्तीसगढ़ की पहचान बनेगी।” यह कदम न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत के लिए एक संदेश है — कि जब शासन सशक्त, नीति स्पष्ट और नीयत स्वच्छ हो, तो सबसे गहरी जड़ों वाला उग्रवाद भी समाप्त किया जा सकता है।