भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एक बार फिर “गैस-चेंबर” में तब्दील हो चुका है। दिवाली से पहले ही हवा इतनी जहरीली हो गई है कि अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। राजधानी के आसमान पर फैली धुंध अब सिर्फ दृश्यता की समस्या नहीं रही, बल्कि यह आर्थिक, सामाजिक और जन-स्वास्थ्य संकट का प्रतीक बन चुकी है। ताजा सर्वेक्षणों में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है — दिल्ली-एन सी आर के लगभग 45 प्रतिशत लोग अब इस क्षेत्र को स्थायी रूप से छोड़ने पर विचार कर रहे हैं, जबकि प्रदूषण की वजह से देश की जी डी पी में सालाना 1-2 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की जा रही है। दिल्ली-एन सी आर की हवा एक बार फिर ‘गंभीर श्रेणी’ में पहुँच गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, 26 अक्टूबर तक कई इलाकों में ए क्यू आई-400-500 के बीच दर्ज किया गया, जो सीधे तौर पर ‘हैजार्डस’ श्रेणी में आता है। एनर्जी पॉलिसी इंस्टीच्यूट, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली-एन सी आर के लोगों की औसत जीवन-आशा 8 साल तक घट गई है। दिल्ली के निवासी लगातार खाँसी, गले में खराश, सिरदर्द, और सांस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, हर तीसरा परिवार अब प्रदूषण-जनित बीमारियों से प्रभावित है। अस्पतालों में अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मरीजों की संख्या 40 प्रतिशत तक बढ़ चुकी है। यह स्थिति बताती है कि प्रदूषण अब सिर्फ पर्यावरणीय संकट नहीं रहा, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य आपदा बन चुका है। दिल्ली-ए सी आर की वायु-गुणवत्ता बिगाड़ने में कई कारक मिलकर जिम्मेदार हैं — पराली जलाने से हर साल प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है। सैटेलाइट डेटा के मुताबिक, इस साल पराली जलाने की घटनाओं में 12 प्रतिशत वृद्धि हुई है। वाहन उत्सर्जन: दिल्ली में वाहनों की संख्या 1.4 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। डीजल-पेट्रोल से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड और पीएम 2.5 कणों ने हवा को बेहद विषाक्त बना दिया है। निर्माण-धूल और उद्योग: एन सी आर में सैकड़ों छोटे-बड़े निर्माण कार्य और औद्योगिक इकाइयाँ बिना नियंत्रण के धूल और धुआँ उगल रही हैं। मौसमी बदलाव: सर्दियों में हवा की गति कम हो जाती है, जिससे प्रदूषक जमीन के पास ही फँसे रहते हैं। अनियोजित नगरीकरण: आबादी के बढ़ते दबाव और हरित क्षेत्र में कमी ने दिल्ली को “कंक्रीट जंगल” बना दिया है। इन सबका नतीजा यह है कि दिल्ली-ए सी आर की हवा लगातार जहरीली हो रही है और पर्यावरणीय नीति-प्रणालियाँ इसे रोकने में असफल साबित हो रही हैं। सर्वेक्षणों से पता चला है कि दिल्ली-एन सी आर के लगभग 45 प्रतिशत लोग अब किसी अन्य राज्य या शहर में बसने का विचार कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण प्रदूषण, बढ़ता तापमान, जीवन-यापन की लागत और बिगड़ती जीवन-गुणवत्ता है। एक सर्वे के मुताबिक, पहले भी लगभग 35 प्रतिशत निवासी ए सी आर छोड़ने की इच्छा जाहिर कर चुके थे, लेकिन अब यह संख्या और बढ़ गई है। मध्यम-वर्गीय और कामकाजी परिवार अपने बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित हैं। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों के लिए ‘वर्क-फ्रॉम-एनीवेयर’ नीति लागू करनी शुरू कर दी है ताकि वे प्रदूषण से बच सकें। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रवृत्ति न केवल मानव-स्वास्थ्य का परिणाम है, बल्कि सामाजिक-मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया भी है — जब लोग अपनी सुरक्षा और जीवन-गुणवत्ता को लेकर निराश हो जाते हैं, तो वे स्थान बदलने पर मजबूर हो जाते हैं। दिल्ली-एन सी आर भारत की अर्थव्यवस्था की धुरी है। अकेले यह क्षेत्र देश की जी डी पी में लगभग 5.7 प्रतिशत का योगदान देता है। लेकिन लगातार प्रदूषण-संकट ने इस आर्थिक शक्ति को भी कमजोर करना शुरू कर दिया है।एक हालिया आर्थिक अध्ययन के अनुसार, वायु-प्रदूषण की वजह से भारत की कुल जी डी पी में हर साल लगभग 1-2 प्रतिशत की गिरावट आती है। इसमें प्रमुख कारण हैं — कर्मचारियों की उत्पादकता में गिरावट: सांस और आंखों से जुड़ी बीमारियों के चलते बीमार-अवकाश बढ़े हैं।स्वास्थ्य-खर्च में वृद्धि: परिवारों का चिकित्सा-व्यय बढ़ने से उनकी क्रय-शक्ति घट रही है।निवेश और पर्यटन पर असर: विदेशी निवेशक और पर्यटक “प्रदूषित राजधानी” की छवि से दूर हो रहे हैं।रियल-एस्टेट पर प्रभाव: एन सी आर के कई इलाकों में मकानों की मांग घटी है क्योंकि लोग रहने से बचना चाहते हैं।स्पष्ट है कि प्रदूषण का संकट अब आर्थिक नीति-निर्माताओं के लिए भी चुनौती बन चुका है। दिल्ली सरकार, केंद्र और पड़ोसी राज्यों ने कई उपाय किए हैं, जैसे — ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान, ऑड-ईवन स्कीम, ग्रीन वॉल्स, और इलेक्ट्रिक बसें। परंतु इन योजनाओं का असर सीमित रहा है।नीति-विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली-ए सी आर की समस्या क्षेत्रीय नहीं, बल्कि संरचनात्मक है। जब तक पराली-जलाने वाले राज्यों, औद्योगिक निकायों, और शहरी नियोजन संस्थाओं के बीच समन्वित नीति नहीं बनती, तब तक कोई भी कदम टिकाऊ समाधान नहीं दे सकता।प्रदूषण-संकट से निपटने के लिए ठोस और दीर्घकालिक प्रयासों की जरूरत है —पराली-प्रबंधन: किसानों को वैकल्पिक तकनीकें और सब्सिडी देकर पराली जलाने से रोकना। इलेक्ट्रिक-वाहनों को बढ़ावा: सार्वजनिक परिवहन में ई वी और सी एन जी बसों का अनुपात तेजी से बढ़ाना। ग्रीन-कोरिडोर और अर्बन-फॉरेस्ट: दिल्ली के हर जिले में माइक्रो-ग्रीन जोन विकसित करना।औद्योगिक उत्सर्जन नियंत्रण: एन सी आर के कारखानों के लिए सख्त मॉनिटरिंग और दंड प्रणाली लागू करना। नागरिक सहभागिता: स्कूल-कॉलेज स्तर पर ‘क्लीन एयर मिशन’ जैसे अभियानों को प्रोत्साहन देना।यदि इन कदमों को तुरंत और दृढ़ता से लागू किया जाए, तो दिल्ली-एन सी आर को फिर से सांस लेने योग्य बनाया जा सकता है। दिल्ली-ए सी आर में प्रदूषण की समस्या अब चेतावनी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आपात स्थिति का रूप ले चुकी है। हर साल सर्दियों में वही कहानी दोहराई जाती है — हवा जहरीली, लोग बीमार, और सरकारें एक-दूसरे पर दोषारोपण में व्यस्त। अगर आज ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो दिल्ली-ए सी आर की आने वाली पीढ़ियों के पास स्वच्छ हवा नहीं, सिर्फ आँकड़े बचेंगे — यह याद दिलाने के लिए कि कभी इस शहर में सांस लेना संभव था।