भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़ 
टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने उपभोक्ता सुरक्षा की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब किसी अनजान नंबर से फोन आने पर केवल नंबर नहीं, बल्कि कॉलर का असली नाम भी स्क्रीन पर दिखाई देगा। सूचना एवं दूरसंचार विभाग के इस प्रस्ताव को ट्राई ने अपनी औपचारिक मंजूरी दे दी है। इस फैसले से मोबाइल यूजर्स को साइबर ठगी, फिशिंग कॉल्स और फेक आइडेंटिटी के बढ़ते खतरे से बड़ी राहत मिलेगी। यह सुविधा, जिसे “कॉलर नेम डिस्प्ले सिस्टम” कहा जा रहा है, अगले कुछ महीनों में देशभर में लागू की जाएगी। यह कदम न केवल भारत में टेलीकॉम सेक्टर की पारदर्शिता बढ़ाएगा बल्कि डिजिटल लेनदेन और उपभोक्ता सुरक्षा को भी मजबूत बनाएगा। अभी तक किसी अंजान नंबर से कॉल आने पर लोग यह नहीं जान पाते कि कॉल करने वाला व्यक्ति कौन है। इस कमी का फायदा उठाकर साइबर अपराधी लोगों को ठगने में सफल हो जाते थे। लेकिन ट्राई की नई प्रणाली में कॉलर का नाम उसके मोबाइल कनेक्शन से जुड़ी के वाई सी  जानकारी से स्वतः प्रदर्शित होगा। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति ने झूठे दस्तावेज़ से सिम कार्ड लिया है, तो उसका झूठ तुरंत उजागर हो जाएगा। इस कदम से साइबर फ्रॉड, फिशिंग कॉल्स, ओ टी पी  स्कैम और बैंकिंग फ्रॉड पर नकेल कसने की उम्मीद है। ट्राई और डी ओ टी द्वारा तैयार किए गए इस सिस्टम के तहत हर मोबाइल ऑपरेटर को अपने ग्राहकों की के वाई सी  जानकारी को केंद्रीकृत डाटाबेस से लिंक करना होगा। जब भी कोई यूज़र किसी नंबर से कॉल करेगा, रिसीवर के फोन पर कॉलर का असली नाम अपने-आप दिखाई देगा — ठीक वैसे जैसे ट्रू कॉलर ऐप में होता है, लेकिन अब यह सरकारी स्तर पर आधिकारिक सिस्टम होगा। इस सुविधा में ट्रू कॉलर जैसे थर्ड पार्टी ऐप्स की जरूरत नहीं पड़ेगी। बल्कि यह डेटा पूरी तरह से सुरक्षित और प्रमाणिक सरकारी स्रोत से लिया जाएगा, जिससे गलत नाम दिखने की संभावना लगभग समाप्त हो जाएगी। इस प्रणाली को लागू करते समय उपभोक्ताओं की गोपनीयता को भी ध्यान में रखा गया है। ट्राई  ने यह स्पष्ट किया है कि केवल वही जानकारी प्रदर्शित होगी जो सिम कार्ड के समय दी गई के वाई सी  में मौजूद है — जैसे नाम। कॉलर के पते, ईमेल या अन्य व्यक्तिगत विवरण नहीं दिखाए जाएंगे। साथ ही, यूज़र्स को यह विकल्प भी मिलेगा कि वे चाहें तो अपने नाम के प्रदर्शन के लिए सहमति दें या अस्वीकार करें, बशर्ते कि यह नियमों के अनुरूप हो। इस प्रकार, यह योजना सुरक्षा और गोपनीयता दोनों के संतुलन के साथ आगे बढ़ेगी। देश में हर साल लाखों लोग साइबर ठगी और फर्जी कॉल के जाल में फंस जाते हैं। बैंकों, बीमा कंपनियों या सरकारी एजेंसियों के नाम पर कॉल करने वाले ठग लोगों से ओ टी पी, बैंक डिटेल या यू पी आई पिन जैसी जानकारी लेकर अकाउंट खाली कर देते हैं। ट्राई के इस कदम के बाद अब यह संभव नहीं होगा, क्योंकि किसी भी कॉलर का वास्तविक नाम सामने आने से धोखेबाजों की पहचान तुरंत हो जाएगी। इससे वित्तीय अपराधों, सोशल इंजीनियरिंग स्कैम्स और फेक कस्टमर केयर कॉल्स पर निर्णायक प्रहार होगा। बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रणाली देश में डिजिटल पेमेंट और मोबाइल बैंकिंग को अधिक सुरक्षित बनाएगी। डिजिटल इंडिया के विज़न के अनुरूप यह पहल भारत को उन देशों की सूची में शामिल करेगी जहां कॉलर आइडेंटिटी ट्रांसपेरेंसी को कानूनी समर्थन मिला है। ट्राई के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “यह निर्णय मोबाइल यूजर्स की सुरक्षा के साथ-साथ डिजिटल विश्वास को भी मजबूत करेगा। जैसे आधार ने पहचान को सत्यापित किया, वैसे ही कॉलर नेम डिस्पले सिस्टम मोबाइल कम्युनिकेशन को सत्यापन से जोड़ देगा।” विशेषज्ञों का मानना है कि ट्राई  की इस सरकारी पहल के बाद ट्रू कॉलर जैसे ऐप्स की भूमिका सीमित हो जाएगी, क्योंकि अब मोबाइल कंपनियां सीधे तौर पर नाम प्रदर्शित करेंगी। हालांकि, इन ऐप्स के पास अब भी कुछ अतिरिक्त फीचर्स जैसे स्पैम अलर्ट या यूज़र रिव्यू का विकल्प रहेगा, परंतु प्रामाणिकता के लिहाज से सरकारी प्रणाली अधिक विश्वसनीय मानी जाएगी। हालांकि यह योजना अत्यंत लाभकारी है, लेकिन इसके सामने कुछ तकनीकी और कानूनी चुनौतियां भी होंगी। पहला, सभी टेलीकॉम कंपनियों को मौजूदा ग्राहकों की के वाई सी जानकारी को अपडेट करना होगा। दूसरा, डेटा की सुरक्षा और संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए मजबूत साइबर सुरक्षा ढांचा तैयार करना होगा। तीसरा, विदेशी नंबरों से आने वाली कॉल्स के लिए इस सिस्टम को अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के साथ जोड़ना पड़ेगा। ट्राई का कहना है कि इन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए डी ओ टी , सी ई आर टी-इन और मोबाइल ऑपरेटरों के साथ मिलकर व्यापक रोडमैप तैयार किया जा रहा है। सामान्य उपभोक्ताओं ने इस फैसले का स्वागत किया है। दिल्ली की एक बैंक अधिकारी सीमा चौधरी कहती हैं, “अक्सर बैंक के नाम पर कॉल आती हैं और ग्राहक डर के कारण जानकारी साझा कर देते हैं। अगर अब कॉलर का असली नाम दिखेगा, तो धोखे की गुंजाइश नहीं रहेगी।” वहीं साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रणाली “डिजिटल पारदर्शिता” की दिशा में भारत का सबसे बड़ा कदम है, जो भविष्य में सभी सरकारी और निजी संचार सेवाओं के लिए ट्रस्ट-बेस्ड कम्युनिकेशन मॉडल तैयार करेगी। ट्राई का यह निर्णय केवल तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि डिजिटल विश्वास की नई परिभाषा है। फोन कॉल के साथ कॉलर का असली नाम दिखाने से जहां उपभोक्ताओं की सुरक्षा बढ़ेगी, वहीं फर्जी पहचान और साइबर अपराधियों की गतिविधियों पर सीधा प्रहार होगा। सरकार का यह कदम न केवल सुरक्षित भारत की दिशा में बड़ा बदलाव लाएगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि अब किसी मासूम उपभोक्ता को ठगी का शिकार न बनना पड़े।