भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां यह बात सौलह आने सच है कि विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2025 में भारत को 151वां स्थान मिला है और यह आंकड़ा न केवल भारत की लोकतांत्रिक छवि पर सवालीय निशान लगाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पत्रकारिता किस प्रकार चुनौतियों के घेरे में सहमी पड़ी है। इस रैंकिंग ने भारतीय मीडिया की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर नई बहस छेड़ दी है। जिस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है वह भी तुरंत प्रभाव से। इस में कोई दो राय नहीं है कि पत्रकारिता अपने आप में को प्रशासनिक व्यवस्था नहीं होती मगर यह भी सच है कि यह उन बेलगाम घोड़ों जो पूरे विश्व को प्रशासनिक तंत्र, पुलसिया तंत्र, बुद्धिजीवी तंत्र और अपने अपने देश की सीमा की रक्षा करने वाली फौज के रूप में चलाने का दम भरते हैं, को लगाम लगाने का काम करती है। दूसरे रूप में पत्रकारिता इन सब शासकों और जनता के बीच एक एसे पुल का भी काम करती है जो जनता की आवाज़ शासकों के कानों तक और शासकों की आवाज़ आम जनता तक समय समय पर पहुंचाने रहने का अपना दायित्व मानती है। आइये समझते हैं कि वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स आखिर है क्या। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स नामक अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन द्वारा हर वर्ष जारी किया जाता है। यह सूचकांक 180 देशों में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति का मूल्यांकन करता है। इसमें मीडिया प्ल्यूरलिज्म (विविधता), पत्रकारों की सुरक्षा, कानूनी ढांचा, सेंसरशिप, पत्रकारिता की गुणवत्ता और मीडिया स्वतंत्रता से जुड़े अनेक संकेतकों को शामिल किया जाता है। गौरतलब है कि 2025 के संस्करण में भारत को 151वां स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि 2024 में यह 161वें स्थान पर था। हालांकि यह 10 अंकों की मामूली वृद्धि है, लेकिन यह अभी भी दर्शाता है कि भारत दुनिया के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों की तुलना में पीछे है। 2010 के दशक की शुरुआत में भारत 120 के आसपास रैंक करता था, लेकिन पिछले एक दशक में यह स्थिति लगातार बिगड़ी है।
आर एस एफ की रिपोर्ट में भारत की प्रेस स्वतंत्रता पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि भारत में मीडिया संस्थानों पर राजनीतिक दबाव, सरकारी हस्तक्षेप, पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, और सोशल मीडिया के माध्यम से चलाए जा रहे ट्रोल अभियानों ने प्रेस को असहज बना दिया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारत में कई पत्रकारों को केवल सत्ता से असहमति जताने के कारण जेल भेजा गया या प्रताड़ित किया गया। प्रेस की स्वतंत्रता पर भारतीय संविधान की राय पर गौर करें तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(ए) सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है। हालांकि संविधान में 'प्रेस' शब्द का उल्लेख नहीं है, परंतु उच्चतम न्यायालय के अनेक निर्णयों ने स्पष्ट किया है कि मीडिया की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ही एक अभिन्न हिस्सा है। लेकिन हाल के वर्षों में न्यायिक और कानूनी ढांचे में मीडिया के खिलाफ बढ़ते मुकदमों, मानहानि के केस, यू ए पी ए जैसे कड़े कानूनों के दुरुपयोग और इंटरनेट शटडाउन जैसे उपायों ने प्रेस की स्वतंत्रता को सीमित किया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पत्रकारों की सुरक्षा एक गंभीर चिंता का विषय है। आर एस एफ के अनुसार, भारत में पत्रकारों के लिए कार्य करना अब पहले की तुलना में अधिक खतरनाक हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में भारत में 30 से अधिक पत्रकारों की हत्या हुई, जिनमें से कई मामलों की ठीक से जांच तक नहीं हुई। इसके अतिरिक्त, महिला पत्रकारों को ऑनलाइन ट्रोलिंग, यौन उत्पीड़न और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है। 2024 में ही कश्मीर, मणिपुर और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से अनेक पत्रकारों की गिरफ्तारी की खबरें सामने आईं। इनमें से कई पत्रकारों पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया गया, जबकि उन्होंने केवल स्थानीय प्रशासन की आलोचना की थी। यह सच है कि भारत में कई बड़े मीडिया हाउस अब कॉर्पोरेट और राजनीतिक गठबंधनों के प्रभाव में काम कर रहे हैं। विज्ञापन, सरकारी प्रसारणों और निवेश के माध्यम से सरकारें मीडिया को नियंत्रित करने का प्रयास करती हैं। इससे पत्रकारिता में निष्पक्षता और जांच-पड़ताल की भावना कमजोर हुई है। इसका परिणाम है स्व-सेन्सरशिप—कई पत्रकार और मीडिया संस्थान अब संवेदनशील या विवादास्पद मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने से कतराते हैं, ताकि वे किसी कानूनी पचड़े या हमले का शिकार न हों। डिजिटल मीडिया और स्वतंत्र आवाज़ों पर भी शिकंजा बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल मीडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता प्लेटफॉर्म्स ने सरकार की नीतियों और सामाजिक मुद्दों पर गंभीर रिपोर्टिंग की है। लेकिन अब इन्हें भी लक्षित किया जा रहा है। आई टी नियम 2021 और उसके बाद के संशोधन, डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने की दिशा में उठाए गए कदम माने जा रहे हैं। भूटान 64, नेपाल 95, श्रीलंका 135, भारत 151. पाकिस्तान 158 और बांग्लादेश 165 पर है। हालांकि भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश से बेहतर स्थिति में है, लेकिन नेपाल और भूटान जैसे छोटे देश भारत से ऊपर हैं, जो चिंता का विषय है। लोकतंत्र और मीडिया स्वतंत्रता दोनों ही अतिआवश्यक है या यू कहें कि एक सिक्के के दो पहलू हैं। एक सशक्त लोकतंत्र की पहचान है - स्वतंत्र प्रेस। मीडिया को 'लोकतंत्र का चौथा स्तंभ' कहा जाता है। यदि पत्रकार स्वतंत्रता से सवाल नहीं पूछ सकते, यदि मीडिया संस्थान सत्ता की कठपुतली बन जाएं, और यदि आम नागरिकों को वस्तुनिष्ठ जानकारी न मिले, तो लोकतंत्र खोखला हो जाता है। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025 में भारत की रैंकिंग यह संदेश देती है कि भारत को अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा के लिए मीडिया स्वतंत्रता को प्राथमिकता देनी होगी। उक्त स्थिती को सुधारना है तो कई उपाय किये जा सकते हैं जैसे पत्रकार सुरक्षा कानून: केंद्र और राज्य सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून लाने की आवश्यकता है।स्वतंत्र मीडिया आयोग: मीडिया पर राजनीतिक या कॉर्पोरेट दबाव को खत्म करने के लिए स्वतंत्र नियामक तंत्र की स्थापना की जानी चाहिए। आई टी नियमों में पारदर्शिता: डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने वाले नियमों को पारदर्शी और पत्रकारिता हितैषी बनाना होगा।लोकल पत्रकारों को संरक्षण: दूरदराज़ क्षेत्रों के पत्रकारों को सुरक्षा और आर्थिक सहयोग दिया जाए।सरकारी विज्ञापन प्रणाली में सुधार: मीडिया संस्थानों को दिए जाने वाले विज्ञापनों में पारदर्शिता और निष्पक्षता जरूरी है। अंत में कह सकते हैं कि वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025 में भारत का 151वां स्थान केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि लोकतंत्र के स्वास्थ्य का दर्पण है। यह समय है आत्ममंथन का, जब सरकार, मीडिया संस्थान, और समाज मिलकर पत्रकारिता की स्वतंत्रता को फिर से स्थापित करें। अभिव्यक्ति की आजादी केवल एक संवैधानिक अधिकार नहीं, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा है और इस आत्मा की रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है।