भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
यह सच है कि जलवायु परिवर्तन के घातक परिणाम अब सतह पर साफ दिखाई देने लगे हैं। हालिया वर्षों में महासागरों में आई भीषण गर्मी की लहरों – जिसे समुद्री हीटवेव कहा जाता है – ने वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और नीति निर्माताओं को गहरी चिंता में डाल दिया है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि इन घटनाओं को हल्के में लिया गया, तो इसका असर केवल समुद्र तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि मौसम, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और जैव विविधता पर भी इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। आइये समझते हैं कि आखिर क्या होती है समुद्री हीटवेव? समुद्री हीटवेव एक ऐसी स्थिति है जब समुद्र के सतही जल का तापमान लगातार पांच या उससे अधिक दिनों तक सामान्य से अधिक बना रहता है। यह असामान्यता जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग और मानवजनित गतिविधियों के कारण लगातार बढ़ती जा रही है। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, पिछले चार दशकों में समुद्री हीटवेव की आवृत्ति दोगुनी हो गई है और इनकी तीव्रता भी बढ़ी है। समुद्री हीटवेव का सीधा असर महासागर के जीव-जंतुओं पर पड़ता है। समुद्री तापमान में अत्यधिक वृद्धि प्रवाल भित्तियों में ब्लीचिंग की प्रक्रिया को तेज कर देती है, जिससे वे जीवित रहने में असमर्थ हो जाती हैं। समुद्री घास, मछलियाँ, कछुए, और प्लवक जैसे जीव – जिन पर पूरी खाद्य श्रृंखला निर्भर करती है – प्रभावित होते हैं या अपने आवास छोड़ने को विवश हो जाते हैं।ऐसे में महासागर की जैव विविधता गंभीर संकट में आ जाती है। कई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो जाता है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित होता है। यह संकट केवल पारिस्थितिक ही नहीं बल्कि आर्थिक भी है, खासकर उन तटीय समुदायों के लिए जो मछली पकड़ने, पर्यटन और समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं। महासागर, पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के आधार स्तंभ हैं। वे न केवल तापमान को नियंत्रित करते हैं, बल्कि वर्षा, चक्रवात और मानसून जैसी मौसमीय घटनाओं को भी प्रभावित करते हैं। जब समुद्र का तापमान असामान्य रूप से बढ़ता है, तो यह वायुमंडलीय दबाव में परिवर्तन करता है, जिससे गंभीर मौसमी असंतुलन उत्पन्न होता है। भारत सहित दक्षिण एशिया में मानसून के पैटर्न में बदलाव, उत्तरी अमेरिका में हीटडोम घटनाएं, और ऑस्ट्रेलिया में जंगलों की आग – ये सभी समुद्री हीटवेव के अप्रत्यक्ष प्रभाव हैं। कृषि, जल प्रबंधन और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी इसका दीर्घकालिक असर देखा जा रहा है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री हीटवेव से उत्पन्न आर्थिक क्षति का आंकलन करना मुश्किल है क्योंकि यह मत्स्य उद्योग, समुद्री परिवहन, पर्यटन, और तटीय अवसंरचना जैसे कई क्षेत्रों को प्रभावित करता है। 2023 में ऑस्ट्रेलिया में रिकॉर्ड स्तर की समुद्री गर्मी के चलते कोरल रीफ आधारित पर्यटन में 20% की गिरावट देखी गई, जिससे हजारों लोगों की आजीविका खतरे में पड़ गई। भारत जैसे देशों में भी बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के गर्म जल ने मछलियों के प्रवासन को बदल दिया है, जिससे स्थानीय मछुआरों को भारी घाटा उठाना पड़ा है। समुद्री हीटवेव की चुनौती का सामना करने के लिए बहुस्तरीय और समन्वित प्रयास आवश्यक हैं। सबसे पहले, वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करना अनिवार्य है। साथ ही, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों – जैसे प्रवाल भित्तियों, मैंग्रोव वनों और समुद्री घास – का संरक्षण और पुनरुद्धार प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके अलावा, उन्नत समुद्री निगरानी प्रणाली विकसित करना आवश्यक है ताकि हीटवेव की पूर्व चेतावनी मिल सके और समय रहते तटीय समुदायों को सतर्क किया जा सके। नीति-निर्माण में महासागरों को जलवायु रणनीति का केंद्र बनाना होगा, तभी इस संकट से कारगर ढंग से निपटा जा सकेगा। समुद्री हीटवेव केवल एक वैज्ञानिक चेतावनी नहीं, बल्कि पृथ्वी की जलवायु संतुलन पर मंडरा रहा वास्तविक खतरा है। यह संकट हमें याद दिलाता है कि महासागर कोई असीम संसाधन नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रणाली हैं जिनका स्वास्थ्य सीधे तौर पर मानव जीवन और भविष्य से जुड़ा है। ऐसे में समय रहते समर्पित नीति, जन-जागरूकता और ठोस जलवायु कार्रवाई ही इसका एकमात्र समाधान है।