भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां भारत ने एक बार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और सैन्य-सहायक संरचनाओं को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार और सशस्त्र बलों की समन्वित योजना के तहत पूरे देश में एक अत्यधिक व्यापक और संगठित मॉक ड्रिल की तैयारी चल रही है। यह अभ्यास न केवल आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से अहम है, बल्कि इसके माध्यम से पाकिस्तान और अन्य शत्रुतापूर्ण देशों को एक स्पष्ट और सख्त संदेश भी देने का प्रयास है कि भारत किसी भी आपात स्थिति से निपटने को पूरी तरह सक्षम और तैयार है। याद रहे भारत में समय-समय पर मॉक ड्रिल आयोजित की जाती रही है, लेकिन इस बार की ड्रिल कई मायनों में विशेष है। यह अभ्यास व्यापक स्तर पर विभिन्न सरकारी एजेंसियों, रक्षा बलों, राज्य प्रशासन और आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के समन्वय से किया जा रहा है। इसका उद्देश्य है — संभावित युद्ध स्थिति, आतंकी हमलों, साइबर हमलों, प्राकृतिक आपदाओं या एन बी सी (न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल, केमिकल) खतरों की स्थिति में त्वरित, प्रभावी और तालमेलपूर्ण प्रतिक्रिया देना। इसका मुख्य उद्देश्य है नागरिकों और सुरक्षाबलों के बीच समन्वय को जांचना, त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं को परखना, खुफिया एजेंसियों, साइबर यूनिट और थल-नौ-जल बलों की तत्परता का परीक्षण, सार्वजनिक चेतना और जागरूकता को बढ़ाना, सुरक्षा उपकरणों और तकनीकी संसाधनों का मूल्यांकन। यह सच है कि गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकर, और रक्षा मंत्रालय ने मिलकर इस मॉक ड्रिल के लिए एक साझा प्रोटोकॉल जारी किया है। इन दिशा-निर्देशों के तहत कई प्रमुख बिंदु हैं जैसे स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी: जिला कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को स्थानीय स्तर पर मॉक ड्रिल की निगरानी और समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। रिहर्सल से पहले सूचना: मॉक ड्रिल की वास्तविकता बनाए रखने हेतु सीमित सूचना दी जाएगी, जिससे तैयारियों की निष्पक्ष जांच हो सके। सार्वजनिक सहयोग: नागरिकों को निर्देशित किया गया है कि वे किसी भी अफवाह से बचें और सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करें। डिजिटल वार रूम: मॉक ड्रिल के दौरान विशेष डिजिटल कमांड सेंटर बनाए जाएंगे जहाँ से पूरे अभ्यास की निगरानी की जाएगी। मीडिया ब्रीफिंग: मीडिया को नियमित अपडेट देने हेतु विशेष ब्रीफिंग की व्यवस्था होगी ताकि पारदर्शिता बनी रहे और अफवाहों पर नियंत्रण हो। इसके जरिये भारत पाकिस्तान और चीन को कड़ा रणनीतिक संदेश दे रहा है। जब देश के भीतर इतनी व्यापक तैयारियां सार्वजनिक रूप से की जा रही हैं, तो निश्चित रूप से इसका असर पड़ोसी देशों पर भी पड़ेगा। विशेषकर पाकिस्तान, जो अक्सर सीमा पार आतंकवाद, ड्रोन हमलों और घुसपैठ के मामलों में संलिप्त पाया गया है। भारत यह स्पष्ट कर रहा है कि वह न केवल सैन्य रूप से बल्कि नागरिक सुरक्षा और आपदा प्रतिक्रिया की दृष्टि से भी पूर्णतः सजग है। हाल के वर्षों में पाकिस्तान और चीन द्वारा साइबर हमलों की आशंका बढ़ी है। यह ड्रिल डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा को परखने का अवसर है। इस प्रकार की सार्वजनिक तैयारी दिखाती है कि भारत अपने नागरिकों को सुरक्षित रखने हेतु कितनी पारदर्शिता और तत्परता के साथ काम कर रहा है। इस ड्रिल का एक महत्वपूर्ण पहलू है आम नागरिकों की भागीदारी और उनका प्रशिक्षण। इसे "जन भागीदारी से जन सुरक्षा" की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है। नागरिकों को बताया जा रहा है कि संकट के समय कैसे प्रतिक्रिया दें, किससे संपर्क करें, और किन संसाधनों का उपयोग करें। इस दौरान नागरिकों के लिए खास निर्देश दिये हैं। अफवाहों से बचें और केवल सरकारी चैनलों पर विश्वास करें। किसी भी असामान्य गतिविधि की सूचना तुरंत पुलिस या स्थानीय प्रशासन को दें। अपने घर में प्राथमिक चिकित्सा किट और आपातकालीन संपर्क सूची तैयार रखें। बच्चों और बुजुर्गों को सुरक्षित स्थान पर रखना सुनिश्चित करें। यह मॉक ड्रिल न केवल एक अभ्यास है बल्कि आने वाले समय के लिए भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे का ट्रायल रन भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल कमियों की पहचान होगी, बल्कि सुधार की संभावनाओं को भी बल मिलेगा। इससे कई लाभ होंगे। प्रशासनिक इकाइयों की त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली का आकलन होगा। विभिन्न एजेंसियों और विभागों के बीच सहयोग और संवाद की प्रभावशीलता का परीक्षण। ड्रोन, सी सी टी वी नेटवर्क, 5जी संचार प्रणाली और जी आई एस मैपिंग जैसे तकनीकी टूल्स की भूमिका। गाँव, कस्बों और जिलों में नागरिक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने की दिशा में प्रयास। गौरतलब है कि देश के सभी 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश इस ड्रिल में भाग ले रहे हैं।राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, सशस्त्र बल, NDRF, CRPF, BSF, राज्य पुलिस बल, स्वास्थ्य विभाग आदि।रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सीमावर्ती ज़िले, महानगर, औद्योगिक क्षेत्रों और घनी बस्तियाँ। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह ड्रिल एक रियल टाइम स्ट्रेस टेस्ट की तरह है। मेजर जनरल (से.नि.) आर.एस. सिंह के अनुसार, "इस प्रकार की तैयारी से भारत की डिफेंस रेडीनेस इंडेक्स में सुधार होगा और इससे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमारी छवि मजबूत होगी।" सुरक्षा विश्लेषक भावना त्रिपाठी कहती हैं, "जब भारत मॉक ड्रिल को इस स्तर पर आयोजित करता है, तो यह केवल एक आंतरिक कवायद नहीं रहती। यह दुनिया को यह संदेश देती है कि भारत सजग है, सतर्क है, और हर आपदा से निपटने को तैयार है।" सरकार ने मीडिया को इस पूरी कवायद में शामिल करते हुए सूचनात्मक पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में विशेष कदम उठाए हैं। प्रेस सूचना ब्यूरो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, और डी डी न्यूज़ जैसे सरकारी चैनल्स के माध्यम से जनता तक सही और सटीक जानकारी पहुंचाने की व्यवस्था की गई है।साथ ही, मॉक ड्रिल के दौरान किसी भी फेक न्यूज या भ्रामक सूचनाओं से निपटने के लिए एक समर्पित "फैक्ट चेक सेल" भी गठित किया गया है। यह सच है कि यह मॉक ड्रिल केवल एक बार की कार्रवाई नहीं है। सरकार का लक्ष्य इसे नियमित और उन्नत रूप में अपनाने का है। इसमें मिलने वाले डेटा के आधार पर राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया नीति में संशोधन और विस्तार संभव है। अंत में कह सकते हैं क भारत की यह मॉक ड्रिल न केवल आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने का प्रयास है, बल्कि वैश्विक मंच पर यह संदेश भी देती है कि भारत कोई भी खतरा झेलने को पूरी तरह तैयार है। पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के संदर्भ में यह ड्रिल एक मूक लेकिन मजबूत कूटनीतिक उत्तर के रूप में देखी जा रही है। इस तरह की तैयारियाँ यह साबित करती हैं कि भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करता, वह संभावित संकटों से पहले ही एक सक्रिय रणनीति के साथ खड़ा रहता है। इस पहल से न केवल आम नागरिकों में सुरक्षा की भावना मजबूत होगी, बल्कि राष्ट्र की सैन्य, प्रशासनिक और नागरिक तंत्र की एकता भी परखी और सिद्ध होगी।