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संपादकीय

Despite limited connectivity, India's journey to a growing comprehensive strategic partnership with the West is steadily growing: सीमित संपर्क के बावजूद पश्चिम के साथ भारत का लगातार बढ़ रहा व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक का सफर

May 08, 2025 05:40 PM

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़ 

जी हां इसमें कोई दो राय नहीं है कि समय की रफतार के चलते भारत ने बीते दो दशकों में पश्चिम एशिया के साथ अपने रिश्तों को केवल सांस्कृतिक और ऊर्जा आधारित भागीदारी से आगे बढ़ाकर एक व्यापक रणनीतिक सहयोग के स्तर तक पहुँचाया है। कभी केवल ऊर्जा और प्रवासी कार्यबल तक सीमित इन संबंधों ने अब बहुआयामी राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग का रूप ले लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘लिंक वेस्ट’ नीति के तहत भारत ने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इज़रायल और ईरान जैसे देशों के साथ अपने रिश्तों को फिर से परिभाषित किया है।आइये समझते हैं सभ्यता से सहयोग तक के सफर को बारीकी से। भारत और पश्चिम एशिया के संबंध हजारों वर्षों पुराने हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही अरब व्यापारियों के साथ वस्त्र, मसाले और धातुओं का व्यापार होता रहा है। यह संबंध सिर्फ आर्थिक नहीं थे, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और बौद्धिक आदान-प्रदान के रूप में भी विकसित हुए। इस्लाम के आगमन के बाद भारत में पश्चिम एशियाई प्रभाव और भी गहराया।भारत की स्वतंत्रता के बाद, पश्चिम एशिया के साथ संबंध मुख्यतः गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नीति के तहत संचालित हुए। भारत ने सऊदी अरब, ईरान और इराक के साथ मध्यमार्गी नीति अपनाई और फिलिस्तीन के अधिकारों के समर्थन को प्रमुखता दी। हालांकि, 1970 और 1980 के दशक में भारत ने तेल समृद्ध देशों के साथ संपर्क बनाए रखा, लेकिन साझेदारी ऊर्जा आयात और प्रवासी श्रमिकों तक सीमित रही।वर्ष 1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण के चलते भारत ने पश्चिम एशिया के साथ अपने वाणिज्यिक संबंधों को फिर से परिभाषित किया। खाड़ी क्षेत्र भारत के ऊर्जा हितों के साथ-साथ बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीयों के लिये भी केंद्रीय भूमिका निभाने लगा। भारत के आईटी और सेवा क्षेत्र के विस्तार से इन देशों में निवेश और तकनीकी साझेदारी को भी बढ़ावा मिला। 21वीं सदी में भारत की विदेश नीति अधिक सक्रिय और रणनीतिक हो गई। भारत अब पश्चिम एशिया को न केवल ऊर्जा का स्रोत मानता है, बल्कि भू-राजनीतिक सहयोगी के रूप में भी देखता है। खासकर, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और इज़रायल के साथ भारत के रिश्ते पहले से कहीं अधिक गहरे हुए हैं।भारत-इज़रायल-अमेरिका-यूएई समूह और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी योजनाएं भारत की बढ़ती रणनीतिक भागीदारी का प्रमाण हैं। आई एम ई सी गलियारा भारत को खाड़ी और यूरोप से जोड़ते हुए एक महत्त्वपूर्ण संपर्क परियोजना बन चुका है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के विकल्प के रूप में उभर रहा है।यह सच है कि भारत के लिए पश्चिम एशिया का खासा महत्त्व है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा में खाड़ी देशों की भूमिका केंद्रीय है। भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का लगभग 50% आयात खाड़ी देशों से करता है। सऊदी अरब और इराक भारत के शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता हैं, जबकि कतर भारत को एल एन जी की 38% आपूर्ति करता है। हाल ही में भारत और कतर के बीच 20 वर्षीय एल एन जी आपूर्ति समझौता इस रणनीतिक साझेदारी को और सुदृढ़ करता है। पश्चिम एशिया भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2023-24 में भारत-यूएई व्यापार 84 अरब डॉलर तक पहुँचा, जबकि सऊदी अरब के साथ यह आंकड़ा 43 अरब डॉलर रहा। भारत-यूएई सीपा समझौता वर्ष 2030 तक गैर-तेल व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखता है।खाड़ी सहयोग परिषद क्षेत्र भारत के कुल व्यापार का 15.8% हिस्सा बनाता है, जिससे स्पष्ट है कि भारत-खाड़ी व्यापार केवल ऊर्जा आधारित नहीं रह गया है, बल्कि सेवा, निर्माण, डिजिटल प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में भी फैल चुका है। पश्चिम एशिया भारत के लिये न केवल खाड़ी का प्रवेशद्वार है, बल्कि यह मध्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका से भी संपर्क प्रदान करता है। अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा के ज़रिये भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह से होकर मध्य एशिया तक पहुँच रहा है।भारत के इज़रायल और सऊदी अरब जैसे क्षेत्रीय शक्तियों के साथ गहरे होते रिश्ते इसके प्रभाव को और व्यापक बनाते हैं। भारत की I2यू2 और आई एम ई सी जैसी भागीदारी इसके समावेशी और बहुपक्षीय दृष्टिकोण को दर्शाती है। पश्चिम एशिया भारत के समुद्री हितों के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। हिंद महासागर क्षेत्र में व्यापार मार्गों की सुरक्षा, विशेषकर लाल सागर के संकटों के बीच, भारत की प्राथमिकता बन चुकी है। ओमान, यूएई और सऊदी अरब के साथ भारत का बढ़ता नौसैनिक सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास और खुफिया साझेदारी क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखने में मदद करते हैं। 2023 में भारत, फ्रांस और यूएई के बीच त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास इस दिशा में महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर रहा।खाड़ी देशों में लगभग 90 लाख भारतीय कार्यरत हैं, जिनमें से 35 लाख से अधिक केवल यूएई में हैं। ये प्रवासी भारत के लिये न केवल आर्थिक रूप से (विदेशी मुद्रा प्रेषण के माध्यम से) बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण हैं। भारत की “प्रवासी कार्ड योजना” और ई माइग्रेट पोर्टल जैसी पहलों से प्रवासियों को सशक्त बनाने की कोशिश की जा रही है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर के शब्दों में, “खाड़ी में भारत की उपस्थिति केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मानवीय और रणनीतिक दोनों रूपों में गहरी है।” इस दौरान हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पश्चिम एशिया की स्थिति स्वाभाविक रूप से अस्थिर है। इज़रायल-हमास संघर्ष, यमन में गृहयुद्ध, सऊदी-ईरान तनाव और सीरिया का संकट क्षेत्र में असंतुलन का कारण बनते हैं। चीन द्वारा मध्यस्थता के ज़रिये सऊदी और ईरान के बीच पुन: संवाद भारत की रणनीतिक स्थिति के लिये चुनौती बन सकते हैं।भारत को इन मुद्दों पर तटस्थ रहते हुए संतुलन बनाए रखना पड़ता है ताकि ईरान (आई एन एस टी सी और चाबहार) और सऊदी अरब (ऊर्जा सहयोग) दोनों के साथ सहयोग बना रहे।भारत नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ रहा है, लेकिन वर्तमान में वह खाड़ी के हाइड्रोकार्बनों पर अत्यधिक निर्भर है। यह द्वंद्व भविष्य में साझेदारियों को जटिल बना सकता है। भारत को चाहिए कि वह खाड़ी देशों के साथ ग्रीन हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन संबंधी सहयोग को बढ़ावा दे।पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव भी भारत के लिए रणनीतिक चुनौती है। चीन ने सऊदी-ईरान समझौते में मध्यस्थता की, और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत कई देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ शुरू की हैं। भारत को इस क्षेत्र में अपनी परियोजनाओं को अधिक पारदर्शी, व्यावहारिक और दीर्घकालिक बनाना होगा। गर हम भविष्य की बात करें तो भारत का “लिंक वेस्ट” दृष्टिकोण अब केवल नीति नहीं, बल्कि एक रणनीतिक अनिवार्यता बन चुका है। भारत को चाहिए कि वह पश्चिम एशिया के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बनाए और इन क्षेत्रों में विशेष ध्यान दे:ऊर्जा और हरित तकनीक में सहयोग, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे का विस्तार, साझा रक्षा उत्पादन और साइबर सुरक्षा, मानव संसाधन विकास और शिक्षा-प्रशिक्षण समझौते। भारत की बहुपक्षीय विदेश नीति, विविध सहयोग और सांस्कृतिक जुड़ाव के चलते यह स्पष्ट है कि भारत-पश्चिम एशिया संबंध केवल आर्थिक या ऊर्जा साझेदारी तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि एक समग्र, समावेशी और दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी का स्वरूप लेंगे।

 

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