डोनाल्ड ट्रंप की वापसी, जो 2025 के शुरुआत में हुई, ने अमेरिका-भारत रिश्तों में एक नया मोड़ ला दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच शुरूआती तालमेल (जैसे “MAGA+MIGA=MEGA”) 2025 के व्हाइट हाउस दौरे और मिशन 500 (2030 तक $500 बिलियन व्यापार की योजना) से स्पष्ट दिखा रक्षा सहयोग, तकनीकी साझेदारी (TRUST पहल), और F‑35 व Javelin मिसाइल सौदे जैसी योजनाएं भी सामने आईं .
🔄 परंपरागत रणनीति और चुनौतियाँ
इन प्राथमिक समझौतों के बावजूद ट्रंप की कार्यशैली “पहले अमेरिका” (America First) की प्रवृत्ति पर केंद्रित है — व्यापारिक टैरिफ, अप्रवासी नीति, और रणनीतिक लेन-देन उसकी हठधर्मी नीति की पहचान हैं . उदाहरण के तौर पर, ट्रंप ने कहा है कि वह भारत में विनिर्माण नहीं चाहता, जिससे व्यापार एवं निर्यात (जैसे स्मार्टफोन, कृषि, गहने) की दिशा प्रभावित हो सकती है
साथ ही, ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान की ओर झुकाव दिखाया है — पाकिस्तान के फील्ड मार्शल को व्हाइट हाउस बुलाना और युद्धविराम का श्रेय लेने का प्रयास मोदी- भारत को खटकता रहा . मोदी ने स्पष्ट शब्दों में अमेरिका की मध्यस्थता से इनकार किया .
⚖️ 'मोदी मैजिक' की सीमाएँ
मोदी की व्यक्तिगत कूटनीति — ‘मोदी मैजिक’ — अब स्पष्ट सीमाओं में पड़ रही है। आर्थिक व रक्षा समझौतों के बावजूद, ट्रंप की आक्रामक विदेश नीति तथा अचानक टैरिफ की धमकियाँ भारत के हितों के खिलाफ जा सकती हैं की रिपोर्ट बताती है कि G7 में ट्रंप ने भारत की स्थिति कमजोर करने की कोशिश की, जिससे यह स्पष्ट है कि सिर्फ व्यक्तित्व आधारित कूटनीति पर्याप्त नहीं
🔍 भारत की विदेश नीति में बदलाव की जरूरत
विश्लेषकों का मानना है कि भारत को अब अपनी विदेश नीति को बहुध्रुवीय दृष्टिकोण (multi-aligned strategy) पर आधारित करना होगा। ट्रंप की आवेशपूर्ण नीति ने भारत को अपने संबंधों को पुनः समीक्षा करने के लिए प्रेरित किया — चीन, रूसी और अन्य देशों के साथ संतुलन बनाना ज़रूरी हो गया है .
वैश्विक व्यापार टैरिफ से बचने के लिए भारत को अपने घरेलू आर्थिक ढांचे को मजबूत करना होगा जिससे रीफ़ॉर्म की गति तेज हो सके — जैसा कि 1991 और 1998 में हुआ . इसके अलावा, भारत को अमेरिकी घरेलू राजनीति में अधिक सक्रिय भागीदारी और अन्य साझेदारों जैसे ईयू, यूके, ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों को समृद्ध करने की जरूरत है .
🧭 स्पष्ट रणनीति की ओर
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स्टेटिक रणनीति से हटकर बहु-आधारित नीति: अमेरिका, चीन, रूस के बीच संतुलन और अन्य क्षेत्रों में समय-समय पर रणनीतिक ट्यूनिंग।
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आर्थिक संरचना में गहरा सुधार: व्यापार प्रवर्तनीयता बढ़ाना, निवेश आकर्षित करना।
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अमेरिकी घरेलू राजनीति में साझेदारी: लोकल स्तर से रिश्तों को मजबूत करना, जैसे कांसुलरेट खोलना या प्रशासन से संवाद बढ़ाना .
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रक्षा एवं सुरक्षा भागीदारी: क्वाड मंच और टेक्नोलॉजी साझेदारी को आगे बढ़ाना, लेकिन ट्रंप की लेन-देन नीति से सावधान रहना .
ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत-यूएस संबंधों में अवसर और जोखिम दोनों दिख रहे हैं। 'मोदी मैजिक' की व्यक्तिगत कूटनीति सीमाओं में फँसती नजर आ रही है। समय की मांग है कि भारत बहु-आधारित, संरचनात्मक और कार्यात्मक विदेश नीति अपनाए — व्यापार, रक्षा और तकनीकी सहयोग को नया मोड़ देने के साथ ही, वैश्विक शक्ति संतुलन के अनुसार लचीलापन रखें।
इस रणनीति से भारत ट्रंप के अप्रत्याशित रवैये के बीच अपनी स्वायत्तता सुरक्षित रख सकता है और वैश्विक प्रभाव को बढ़ा सकता है।