भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र निजी कंपनियों की बढ़ती भागीदारी के साथ बदलाव के दौर में है। इसरो ने उपग्रह लांचर निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को सौंपकर पुन: प्रयोज्य रॉकेट और कक्षीय सुरक्षा जैसी तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया है। यह स्काईरूट, अग्निकुल और पिक्सल जैसे स्टार्टअप्स के प्रयासों को मजबूती देता है। वैश्विक अंतरिक्ष हब बनने की राह में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का तालमेल बेहद अहम है। आइये बात करते हैं भारत के अंतरिक्ष उद्योग के विस्तार में निजी क्षेत्र के अतुल्य योगदान की। इन-स्पेस के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी: वर्ष 2020 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र की स्थापना एक ऐतिहासिक बदलाव था, जिससे भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ गई। इसरो और गैर-सरकारी संस्थाओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, इन-स्पेस ने उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को काफी हद तक बढ़ा दिया है। उदाहरण के लिये, एक निजी कंपनी, स्काईरूट एयरोस्पेस, वर्ष 2022 में सबऑर्बिटल रॉकेट, विक्रम-एस, लॉन्च करने वाली पहली कंपनी बन गई। भारत के अंतरिक्ष स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में तीव्र वृद्धि देखी गई है, जिसमें अग्निकुल कॉसमॉस और ध्रुव स्पेस जैसे स्टार्टअप प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी, उपग्रह निर्माण और अंतरिक्ष सेवाओं में अग्रणी हैं।सिर्फ वर्ष 2021 में ही भारतीय अंतरिक्ष स्टार्टअप्स ने 68 मिलियन डॉलर का निवेश प्राप्त किया, जो वर्ष-दर-वर्ष 196% की वृद्धि को दर्शाता है।महत्त्वपूर्ण अंतरिक्ष अवसंरचना के निर्माण के लिये इसरो और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, गोदरेज एयरोस्पेस और एल एंड टी जैसी उद्योग की दिग्गज कंपनियों के बीच साझेदारी के माध्यम से सार्वजनिक-निजी सहयोग को और बढ़ावा मिला है। ये कंपनियाँ प्रक्षेपण वाहनों, अंतरिक्ष यान और उपग्रह उप-प्रणालियों के लिये घटकों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ती है। निजी क्षेत्र के साथ भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के सहयोग से प्रक्षेपण वाहनों में नवाचारों को बढ़ावा मिला है, जैसे लघु उपग्रह प्रक्षेपण वाहन और पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन का विकास। देश भर में अंतरिक्ष पार्कों की स्थापना छोटे उपग्रह निर्माण और प्रक्षेपण सेवाओं के लिये केंद्र के रूप में भी काम करेगी, जिससे निजी क्षेत्र की भागीदारी को और बढ़ावा मिलेगा। वर्ष 2023 में, एस एस एल वी प्रौद्योगिकी के सफल परीक्षण हुए, जो वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के लिये आवश्यक छोटे उपग्रहों के लिये सस्ती, मांग पर प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करने की दिशा में एक कदम होगा। अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिये खोलने से वैश्विक अंतरिक्ष बाज़ार में भारत की स्थिति मज़बूत हुई है। विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण जैसी पहलों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ, इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ने भारत की उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं के निर्यात में मदद की है।वर्ष 2023 में, इसरो विदेशी देशों के लिये 42 उपग्रहों को लॉन्च करेगा, जिससे वैश्विक अंतरिक्ष व्यावसायीकरण में भारत की बढ़ती उपस्थिति में योगदान मिलेगा।अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोगों, विशेषकर संचार, सुदूर संवेदन और पृथ्वी अवलोकन में, इसरो और निजी क्षेत्र दोनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। ये प्रौद्योगिकियाँ डिजिटल समावेशन को बढ़ावा, कृषि में सुधार और आपदा प्रबंधन को बढ़ा रही हैं। इसरो और निजी संस्थाओं द्वारा उपग्रह समूहों और पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के प्रक्षेपण से कृषि, दूरसंचार और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में बदलाव आ रहा है। वर्ष 2025 तक उपग्रह सेवाओं से अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 36% का योगदान होने की उम्मीद है, जिसमें रिमोट सेंसिंग भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि दर दर्ज करेगी। भारत का अंतरिक्ष उद्योग रॉकेटों के लिये हरित प्रणोदन प्रणालियों जैसी धारणीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के विकास में भी अग्रणी है। बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस जैसी स्टार्टअप कंपनियाँ इन प्रौद्योगिकियों में अग्रणी हैं, जिनका लक्ष्य अंतरिक्ष मिशनों के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है। यह अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह प्रक्षेपण प्रणालियों में पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों को अपनाने की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है। बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस ने पहले ही ब्रिटेन और फ्राँस की कंपनियों के साथ प्रणोदन प्रणालियों के लिये समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जो अंतरिक्ष स्थिरता में भारत के नवाचार का परिचायक है। भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी संस्थाओं के एकीकरण से संबंधित कई चिंताएं भी हैं जैसे नियामक एवं नीतिगत चुनौतियाँ, बौद्धिक संपदा संबंधी चिंताएँ, वित्तीय स्थिरता और निवेश अंतराल, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक चिंताएँ, तकनीकी अंतराल और विशेषज्ञता संबंधी बाधाएँ, विखंडित उद्योग और बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव कुशल कार्यबल की कमी आदि। आइये समझते हैं कि भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सक्रिय सार्वजनिक-निजी भागीदारी को किस प्रकार बढ़ावा दे सकता है। निजी अभिकर्ताओं के लिये नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करना, एकीकृत अंतरिक्ष नवाचार पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण, वित्तीय सहायता के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी नवाचार को प्रोत्साहित करना, निजी विकास को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी अनुबंधों का लाभ उठाना, विशिष्ट अंतरिक्ष कार्यबल का विकास, अंतरिक्ष अवसंरचना में निजी निवेश को प्रोत्साहित करना, उन्नत बौद्धिक संपदा एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नीति की स्थापना, भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के निर्यात को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं। अंत में कह सकते हैं कि भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र बढ़ी हुई सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से महत्त्वपूर्ण वृद्धि के लिये तैयार है । बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) तथा अंतरिक्ष मलबे शमन दिशा-निर्देशों (2007) के अनुरूप विनियमों को सुव्यवस्थित करके, भारत नवाचार को बढ़ावा दे सकता है और अंतर्राष्ट्रीय अनुपालन सुनिश्चित कर सकता है। कार्यबल विकास एवं बौद्धिक संपदा अधिकारों को प्राथमिकता देने से भारत को राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अधिक प्रभावी ढंग से एकीकरण में सहायता प्राप्त होगी।