भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां जैसे कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्ज़िऑम मिशन 4 के तहत अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में प्रवेश करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बनकर इतिहास रच चुके हैं और यह मिशन भारत के 2026 में प्रस्तावित गगनयान कार्यक्रम की अहम तैयारी है। वैसे ही अगले दो हफ्तों में शुक्ला और उनकी टीम, इस्रो द्वारा विकसित आठ वैज्ञानिक प्रयोगों को अंजाम देंगे, जो स्वास्थ्य, कृषि, सामग्री विज्ञान और तकनीक में आम जीवन को बदलने की क्षमता रखते हैं। आइये समझते हैं कि कैसे एक्ज़िऑम-4 प्रयोग भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान और अनुप्रयोग को बढ़ा सकते हैं। यह प्रयोग अंतरिक्ष यात्रा के दौरान फसल बीजों के अंकुरण और वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करता है, जो लंबे अंतरिक्ष अभियानों पर गये अंतरिक्षयात्रियों के लिये सतत् खाद्य स्रोत उपलब्ध कराने हेतु अनिवार्य है। यह शोध अंतरिक्ष में प्रभावी रूप से खाद्य उत्पादन की प्रक्रिया को समझने में सहायक होगा। इस अध्ययन के निष्कर्षों का व्यापक उपयोग शहरी कृषि तथा इनडोर कृषि में हो सकता है, जिससे नगरों में संधारणीय खाद्य उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और शहरी आबादी को स्वयं अपना भोजन उगाने की प्रेरणा मिलेगी, जिससे बाह्य आपूर्ति पर निर्भरता घटेगी। सायनोबैक्टीरिया जीवन-समर्थन के लिये: सायनोबैक्टीरिया अंतरिक्ष यानों के जीवन-समर्थन प्रणालियों के विकास में अत्यंत उपयोगी हैं क्योंकि वे प्रकाश-संश्लेषण करने में सक्षम होते हैं। यह प्रयोग अंतरिक्ष में उनकी वृद्धि और जैव रासायनिक गतिविधि का अध्ययन करेगा, जिससे अंतरिक्ष में ऑक्सीजन और खाद्य उत्पादन के लिये बंद लूप प्रणाली के निर्माण में सहायता मिलेगी। इस प्रयोग से प्राप्त ज्ञान पृथ्वी पर पर्यावरण नियंत्रण प्रणालियों को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है, विशेषकर सतत् भवन-डिज़ाइन, जल-शोधन और शहरी या पृथक क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में। सूक्ष्मशैवाल आहार, ईंधन और जीवन-समर्थन का एक संभावित संसाधन हैं। इस प्रयोग में यह अध्ययन किया जाएगा कि सूक्ष्मगुरुत्व सूक्ष्मशैवाल की वृद्धि और चयापचय को किस प्रकार प्रभावित करता है, जिसका उपयोग अंतरिक्ष मिशनों के लिये जैव-पुनर्योजी जीवन समर्थन प्रणालियों में किया जा सकता है।सूक्ष्म शैवाल का उपयोग पृथ्वी पर पहले से ही जैव ईंधन, अपशिष्ट प्रबंधन और पोषण संबंधी पूरकों के लिये किया जा रहा है। इस शोध से हरित ऊर्जा स्रोतों एवं सतत् खाद्य विकल्पों की खोज़ हो सकती है, जो खाद्य उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा के बारे में हमारी सोच में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। यह अध्ययन सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में उत्पन्न होने वाली मांसपेशीय अक्षमता को समझने का प्रयास करता है, जो अंतरिक्ष यात्रियों में मांसपेशियों के क्षय का कारण बनती है। इसमें शामिल आणविक प्रक्रियाओं का अभिनिर्धारण कर, लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के दौरान मांसपेशियों की हानि को रोकने के उपाय विकसित किये जा सकते हैं। इस शोध से पृथ्वी पर मांसपेशियों के क्षय से पीड़ित रोगियों, विशेष रूप से वृद्धजनों तथा मांसपेशीय दुर्विकास या दीर्घकालीन निष्क्रियता से जूझ रहे लोगों के लिये उपचार पद्धतियों में सुधार संभव हो सकेगा। यह प्रयोग यह जानने के लिये किया जायेगा कि माइक्रोग्रैविटी का प्रभाव इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के प्रयोग से जुड़े संज्ञानात्मक तथा शारीरिक कार्यों पर क्या पड़ता है। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष यान की प्रौद्योगिकी की बनावट तथा उसके उपयोग की प्रणाली को और अधिक उपयुक्त बनाना है। यह शोध पृथ्वी पर स्मार्ट उपकरणों, गेमिंग प्रणालियों तथा स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी तकनीकों में उपयोगकर्ता-अनुभव तथा उत्पादकता को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है, जिससे दैनिक जीवन की तकनीकों के लिये अधिक कार्यकुशल एवं तनाव-रहित डिज़ाइन तैयार हो सकेंगे। टार्डीग्रेड्स अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रहने के लिये प्रसिद्ध हैं। यह अध्ययन उनके अंतरिक्ष में जीवित रहने, पुनर्जीवन और प्रजनन की प्रक्रियाओं को समझने का प्रयास करेगा, जिससे इनकी अनुकूलन से जुड़ी आणविक क्रियाविधियों की पहचान की जा सके। इन तत्त्वों को समझने से पृथ्वी पर जैव-प्रौद्योगिकी तथा चिकित्सकीय अनुसंधान में प्रगति हो सकती है, विशेष रूप से जैव-संरक्षण, अत्यधिक वातावरण में सहनशीलता और संभवतः पुनरुत्पादक चिकित्सा के क्षेत्र में। यह सच है कि अंतरिक्ष अन्वेषण प्रगति से कई प्रमुख प्रौद्योगिकियाँ उभरी हैं जैसे स्वास्थ्य देखभाल नवाचार, संचार प्रणालियाँ, खाद्य संरक्षण, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, जल शोधन प्रणालियाँ:, ऊर्जा समाधान और बैटरी नवाचार, सोलर पैनल मूलत, चिकित्सा इमेजिंग, आपदा प्रबंधन और प्रतिक्रिया, सुविधा एवं सहायक सामग्री में नवाचार आदि। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत आगामी अंतरिक्ष मिशनों का व्यापक उपयोग कर सकता है। इसमें सतत् विकास के लिये पृथ्वी अवलोकन का लाभ उठाना, स्वास्थ्य सेवा और जैव प्रौद्योगिकी का संवर्द्धन, नवीकरणीय ऊर्जा समाधान और जलवायु परिवर्तन शमन को आगे बढ़ाना, नेविगेशन और संचार प्रौद्योगिकियों में सुधार, संसाधन प्रबंधन के लिये चंद्र अन्वेषण का उपयोग, उन्नत अनुसंधान के लिये अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करना आदि शामिल हैं। अंत में कह सकते हैं कि गगनयान कार्यक्रम, एन आई एस आर ए और चंद्रयान 3 सहित भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों में स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरणीय संवहनीयता में वैश्विक प्रगति के लिये परिवर्तनकारी क्षमताएँ हैं। ये नवाचार न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की स्थिति को बढ़ाएँगे बल्कि पृथ्वी पर चुनौतियों के समाधान को भी बढ़ावा देंगे।