भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इस में कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा हालात में भारत और अमेरिका के बीच सामरिक सहयोग तेजी से प्रगाढ़ होता जा रहा है। जहां एक ओर अमेरिका भारत को एशिया में चीन की शक्ति का संतुलन मानता है तो वहीं भारत अमेरिका को तकनीकी, आर्थिक और रक्षा क्षेत्र में एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में भी देखता है। दोनों देशों के बीच बढ़ता सामरिक रिश्ता न केवल द्विपक्षीय हितों को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन को भी नई दिशा प्रदान कर रहा है। आइये इसे विस्तार से समझते हैं। भारत और अमेरिका के रिश्तों की शुरुआत शीत युद्ध काल में अविश्वास से हुई थी। 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका की नीतियों ने भारत को सोवियत संघ के करीब ला दिया था। लेकिन 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन और भारत की नई आर्थिक नीतियों ने समीकरण बदल दिए। 2005 में हुए भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने इन रिश्तों में निर्णायक मोड़ लाया और द्विपक्षीय सहयोग का नया युग शुरू हुआ। आज भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, खुफिया साझेदारी, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष सहयोग और सामरिक संवाद जैसे कई क्षेत्रों में मजबूत गठजोड़ है। दोनों देश क्वाड जैसे बहुपक्षीय मंचों पर मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मुक्त, समावेशी और नियम आधारित व्यवस्था के लिए काम कर रहे हैं। भारत और अमेरिका के बीच चार प्रमुख ‘बुनियादी रक्षा समझौतों’ पर हस्ताक्षर हो चुके हैं: लिमोआ (2016): एक-दूसरे के सैन्य अड्डों का लॉजिस्टिक इस्तेमाल। कोमकासा (2018): संचार और सूचना साझेदारी। बेका (2020): भौगोलिक और उपग्रह सूचनाओं का आदान-प्रदान और ग्सोमिआ: खुफिया जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इन समझौतों से भारत को अमेरिकी सैन्य तकनीक, हथियार प्रणालियों और निगरानी तंत्रों तक पहुंच मिली है। इंडो-पैसिफिक रणनीति में साझेदारी की बात करें तो चीन के बढ़ते वर्चस्व को संतुलित करने के लिए अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक रणनीति की शुरुआत की। भारत इस रणनीति का अहम स्तंभ बन चुका है। क्वाड समूह — भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया — के माध्यम से चारों देश समुद्री सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, आपूर्ति शृंखला लचीलापन और तकनीकी सहयोग पर कार्य कर रहे हैं। भारत-अमेरिका के बीच 'युद्ध अभ्यास', 'टाइगर ट्रायंफ' और 'मालाबार' जैसे साझा सैन्य अभ्यास नियमित होते हैं। अमेरिका, रूस के बाद भारत को हथियार बेचने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है। सी-130 जे, सी-17, पी-8आई, अपाचे और चिनूक हेलिकॉप्टर जैसे अत्याधुनिक रक्षा उपकरण भारत ने अमेरिका से खरीदे हैं। भारत और अमेरिका अब साइबर सुरक्षा, एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, और स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ा रहे हैं। 2023 में दोनों देशों ने इन्शिएटिव ऑन क्रीटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नॉलजी लॉन्च किया, जिसके तहत उन्नत तकनीकी साझेदारी को मजबूती दी जा रही है। गर भू-राजनीतिक संदर्भ में सहयोग के महत्व पर गौर करें तो भारत और अमेरिका दोनों ही चीन के विस्तारवादी रवैये से चिंतित हैं। भारत को लद्दाख और अरुणाचल में सीमा विवादों में चीनी आक्रामकता का सामना करना पड़ रहा है, वहीं अमेरिका को दक्षिण चीन सागर में। ऐसे में यह साझेदारी एक रणनीतिक संतुलन बनाती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत से रूस के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की अपेक्षा की, परंतु भारत ने रणनीतिक संतुलन बनाए रखते हुए अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं और रक्षा जरूरतों को प्राथमिकता दी। इसके बावजूद अमेरिका ने भारत के साथ संवाद बनाए रखा, जिससे स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के रिश्ते अब परिपक्वता की ओर बढ़ चुके हैं। भारत ने हमेशा अपनी "रणनीतिक स्वायत्तता" को प्राथमिकता दी है। भारत न तो अमेरिका के सैन्य गठबंधन का हिस्सा है और न ही वह किसी सैन्य ब्लॉक का हिस्सा बनना चाहता है। भारत की नीति स्पष्ट है — राष्ट्रीय हितों के आधार पर वैश्विक साझेदारी। भारत की 60-70% सैन्य आवश्यकताएं अब भी रूस से पूरी होती हैं। अमेरिका भारत से रूस पर निर्भरता कम करने की अपेक्षा करता है, परंतु यह प्रक्रिया समयसाध्य और संवेदनशील है। एच-1बी वीजा से जुड़े मुद्दे, भारत की डेटा लोकलाइजेशन नीति और व्यापार शुल्कों को लेकर भी दोनों देशों में समय-समय पर मतभेद उभरते रहते हैं। अमेरिका अक्सर भारत में अल्पसंख्यकों, मीडिया स्वतंत्रता और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर चिंता जताता है। भारत इसे आंतरिक मामला बताकर खारिज करता है। भारत की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीतियों के तहत अमेरिका भारत में रक्षा उत्पादन के लिए निवेश कर सकता है। एच ए एल और जी इ के बीच लड़ाकू जेट इंजन निर्माण को लेकर हालिया समझौता इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। भारत और अमेरिका के बीच सेमीकंडक्टर उत्पादन को लेकर रणनीतिक सहयोग तेज हो रहा है। इससे भारत तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। अमेरिका समय-समय पर भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन करता रहा है। भारत को जी 7, जी 20 जैसे वैश्विक मंचों पर भी अधिक सक्रिय भूमिका मिल रही है। अंत में कह सकते हैं कि भारत-अमेरिका सामरिक स्थिति आज भले ही साझा हितों पर आधारित हो, लेकिन यह सहयोग गहरे रणनीतिक दृष्टिकोण और दीर्घकालिक सोच का परिणाम है। जहां अमेरिका को एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत की आवश्यकता है, वहीं भारत को तकनीक, रक्षा, आर्थिक प्रगति और वैश्विक मंचों पर प्रभाव के लिए अमेरिका की साझेदारी जरूरी है। भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए इस साझेदारी को और अधिक व्यापक और गहन बना सकता है। आने वाले वर्षों में यह द्विपक्षीय रिश्ता न केवल दक्षिण एशिया बल्कि वैश्विक कूटनीति की दिशा को भी निर्णायक रूप से प्रभावित करेगा।