Friday, July 04, 2025
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संपादकीय

The real purpose of technology: Development for all, progress for all!: टेक्नोलॉजी का असली मकसद: सबका विकास, सबकी तरक्की!

July 03, 2025 07:54 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़      

जी हां इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज से एक दशक पहले भारत ने डिजिटल इंडिया मिशन की नींव रखी थी, जिसका उद्देश्य तकनीक को हर नागरिक के लिए सुलभ बनाना था। इस मिशन ने उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं—देश में इंटरनेट उपयोगकर्ता 25 करोड़ से बढ़कर 97 करोड़ हो गए हैं, यू पी आई  के माध्यम से हर साल 100 अरब से अधिक लेन-देन किए जा रहे हैं, और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के ज़रिए ₹3.48 ट्रिलियन की बचत हुई है, जिससे एम एस एम ई को बड़ा सहारा मिला है। डिजिटल इंडिया अब एक सरकारी पहल न रहकर एक जन आंदोलन बन चुका है, जिसने शासन व्यवस्था, कारोबार और लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है। लेकिन जैसे-जैसे भारत डिजिटल प्रशासन से वैश्विक डिजिटल नेतृत्व की दिशा में बढ़ रहा है, आगे की राह में यह जरूरी है कि हम समावेशी नवाचार और तकनीकी समाधान विकसित करें, जो हर नागरिक को वास्तविक रूप से सशक्त बना सकें। आइये समझते हैं कि डिजिटल इंडिया मिशन के अंतर्गत भारत ने कितनी प्रगति की है।  डिजिटल अवसंरचना के विस्तार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दूरदराज के क्षेत्रों को जोड़ने और ऑनलाइन पहुँच बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण रही है। यह बुनियादी ढाँचा विभिन्न ई-गवर्नेंस और वित्तीय समावेशन पहलों के लिये रीढ़ की हड्डी के रूप में कार्य करता है।भारत में इंटरनेट की पहुँच वर्ष 2014 में 250 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2023 तक 970 मिलियन से अधिक हो गई है तथा ग्रामीण क्षेत्रों को भी तेज़ी से ऑनलाइन किया जा रहा है। 400,000 से अधिक सामान्य सेवा केंद्र स्थापित किये गए हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल विभाजन के अंतर को प्रत्यक्ष रूप से कम कर रहे हैं। डिजिटल इंडिया के वित्तीय समावेशन पर जोर ने भुगतान परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है, जिससे वित्तीय सेवाएँ सबसे वंचित वर्गों के लिये भी सुलभ हो गई हैं। यू पी आई एक अग्रणी उपकरण के रूप में उभरा है, जो निर्बाध और सुरक्षित लेनदेन की पेशकश करके डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा रहा है। वित्त वर्ष 23 में, यू पी आई ने 139 लाख करोड़ रुपए मूल्य के 8,375 करोड़ से अधिक लेनदेन संसाधित किये, जो वित्त वर्ष 18 में 92 करोड़ लेनदेन से तीव्र वृद्धि है। यह अभूतपूर्व वृद्धि वित्तीय समावेशन को बढ़ाने और सरकारी हस्तांतरण को सुव्यवस्थित करने में डिजिटल भुगतान की भूमिका को दर्शाती है। आधार ने भारत में कल्याणकारी सेवाएँ प्रदान करने के तरीके को बदल दिया है, जिससे सब्सिडी और लाभों का निर्बाध और पारदर्शी वितरण संभव हो गया है। 138 करोड़ से अधिक व्यक्तियों के नामांकन के साथ, यह जन धन-आधार-मोबाइल प्रणाली का आधार बन गया है, जिससे लाभार्थियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) संभव हो गया है तथा लीकेज कम हो गई है।  वर्ष 2024 तक, 48 मिलियन से अधिक ग्रामीण नागरिकों को पी एम जी दिशा के तहत प्रमाणित किया जा चुका है, जिससे उन्हें आवश्यक डिजिटल कौशल से लैस किया जा सकेगा। इस बदलाव को 6 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को डिजिटल प्रशिक्षण प्रदान करने, डिजिटल विभाजन को दूर करने और डिजिटल प्लेटफार्मों को अधिक समावेशी बनाने के सरकार के प्रयासों से भी समर्थन मिला है। भारत ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से, ब्लॉकचेन और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी उभरती हुई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिये रणनीतिक रूप से खुद को तैयार किया है। इन प्रौद्योगिकियों का उपयोग अब कृषि, स्वास्थ्य और शासन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में किया जा रहा है।  डिजिटल इंडिया मिशन ने उमंग, डिजीलॉकर और ई-साइन जैसे ई-गवर्नेंस प्लेटफार्मों के माध्यम से सरकारी सेवा वितरण को सुव्यवस्थित किया है, जिससे पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित हुई है। उमंग अब 2,077 से अधिक सेवाएँ प्रदान करता है, जिसमें 7 करोड़ से अधिक उपयोगकर्त्ता सरकारी सेवाओं का निर्बाध उपयोग कर रहे हैंभारत के डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना में तेजी से वृद्धि देखी गई है, विशेष रूप से ई-संजीवनी जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से, जो टेलीमेडिसिन सेवाएँ प्रदान करता है तथा कोविन, जिसने दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान को सुविधाजनक बनाया। 38.18 करोड़ पंजीकृत मरीजों और लाखों लोगों को ऑनलाइन परामर्श से लाभान्वित करने के साथ, इन पहलों ने यह सुनिश्चित किया है कि स्वास्थ्य सेवाएँ सबसे दूरस्थ क्षेत्रों तक भी पहुँचे। आयुष्मान भारत डिजिटल स्वास्थ्य मिशन 67 मिलियन से अधिक आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खातों को एकीकृत करने के लिये तैयार है। भारत की डी पी आई, जिसका प्रतीक आधार, यू पी आई और डिजीलॉकर जैसे प्लेटफॉर्म हैं, ने डिजिटल गवर्नेंस में एक वैश्विक मानदंड स्थापित किया है। ये प्लेटफॉर्म सुरक्षित, अंतर-संचालनीय सेवाएँ प्रदान करते हैं, पारदर्शिता, जवाबदेही और पहुँच को बढ़ाते हैं। वर्ष 2024 तक, आधार ने 2 बिलियन से अधिक मासिक प्रमाणीकरण लेनदेन उत्पन्न किये हैं। ये प्रौद्योगिकियाँ न केवल सार्वजनिक सेवा वितरण को सुव्यवस्थित करती हैं, बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देती हैं, जो डिजिटल महाशक्ति के रूप में भारत के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं। फ्यूचरस्किल्स प्राइम जैसी पहलों और तकनीकी पारिस्थितिकी प्रणालियों के विस्तार के माध्यम से कार्यबल को पुनः कुशल बनाने के सरकार के प्रयासों ने प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को बढ़ाया है। भारत 180,000 से अधिक स्टार्टअप के साथ विश्व का सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गया है। भारत के डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े कई मुद्दे हैं जैसे डिजिटल विभाजन और असमानता, साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता संबंधी चिंताएँ, विखंडित डिजिटल अवसंरचना और अंतर-संचालन, डिजिटल साक्षरता और कौशल अंतराल, उभरती प्रौद्योगिकियों में विनियामक और नीतिगत अंतराल, सरकारी-निजी क्षेत्र समन्वय और विक्रेता लॉक-इन, हाशिये पर स्थित समुदायों का डिजिटल बहिष्कार आदि। भारत में डिजिटल सशक्तीकरण और समावेशन को बढ़ाने के लिये भारत कई तरीके अपना सकता है। इनमें सार्वभौमिक डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम, सुदूर क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना का विस्तार, स्थानीयकृत कंटेंट क्रिएशन और एक्सेस, डिजिटल कौशल विकास के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी, डिजिटल स्टार्टअप और नवाचारों के लिये प्रोत्साहन, डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा कार्यढाँचे को मज़बूत करना, ग्रामीण भारत में डिजिटल स्वास्थ्य अवसंरचना को बढ़ावा देना, एकीकृत डिजिटल गवर्नेंस प्लेटफॉर्म, डिजिटल साक्षरता को सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में एकीकृत करना, एकीकृत प्रौद्योगिकी केंद्रों के साथ ग्रामीण डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार आदि शामिल हैं। अंत में कह सकते हैं कि भारत का 'डिजिटल इंडिया' मिशन वास्तव में देश को रूपांतरित कर चुका है—जिसने प्रौद्योगिकी को सुलभ बनाया है, नागरिकों को सशक्त किया है और विभिन्न क्षेत्रों के बीच के अंतराल को पाटने का कार्य किया है। प्रस्तावित 'डिजिटल इंडिया अधिनियम' इस परिवर्तन को और अधिक सुव्यवस्थित तथा सुरक्षित बना सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य में भी प्रौद्योगिकी समान विकास का साधन बनी रहे। अंततः, "प्रौद्योगिकी की शक्ति केवल नवोन्मेष में नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक को उन्नत करने और समावेशी विकास लाने की उसकी क्षमता में निहित होती है।"

 

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