भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा हालात में देश और दुनिया में इलेक्ट्रिक व्हीकल को पेट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों के विकल्प के तौर पर तेजी से अपनाया जा रहा है। इसे एक हरित विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, जिससे प्रदूषण में कमी और ईंधन की खपत घटाई जा सके। लेकिन एक ताज़ा रिपोर्ट ने इलेक्ट्रिक कारों को लेकर एक नई चिंता खड़ी कर दी है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इलेक्ट्रिक कारें अपने पेट्रोल समकक्षों की तुलना में लगभग 80% ज्यादा तकनीकी समस्याएं उत्पन्न कर रही हैं। यह आंकड़ा न केवल आम उपभोक्ताओं के लिए, बल्कि ई वी निर्माण से जुड़े ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है। सवाल यह है कि क्या हम इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर जल्दबाजी में बढ़ रहे हैं? या फिर यह सिर्फ एक संक्रमण काल की तकनीकी बाधा है? आइये विस्तार से समझते हैं उस रिपोर्ट को जिसमें ई वी कारों से संबंधित महत्वपूर्ण खुलासा हुआ है। यह जानकारी अमेरिका की प्रतिष्ठित कंज़्यूमर रिसर्च एजेंसी जे डी पावर की एक हालिया रिपोर्ट से सामने आई है। रिपोर्ट में 2024 में बाजार में उपलब्ध ईवी, हाइब्रिड और पारंपरिक आई सी ई गाड़ियों की तुलना की गई। आंकड़ों के अनुसार, हर 100 इलेक्ट्रिक गाड़ियों में औसतन 266 शिकायतें दर्ज की गईं, जबकि पेट्रोल गाड़ियों के मामले में यह आंकड़ा केवल 180 रहा। यानी ईवी में तकनीकी दिक्कतों की दर 80% तक अधिक है। अब बात करते हैं इन गाड़ियों में पैदा होने वाली मुख्य समस्याओं की। रिपोर्ट में उपभोक्ताओं द्वारा बताई गई समस्याओं को मुख्यतः चार श्रेणियों में बांटा गया है: इनफोटेनमेंट सिस्टम – टचस्क्रीन, वॉइस कमांड, ब्लूटूथ कनेक्टिविटी, ऐप इंटीग्रेशन आदि में गड़बड़ी। बैटरी और चार्जिंग से संबंधित दिक्कतें – धीमी चार्जिंग, बैटरी ओवरहीटिंग, चार्जिंग स्टेशन से कनेक्टिविटी की दिक्कत। सॉफ्टवेयर अपडेट और इंटिग्रेशन – अपडेट के बाद फंक्शनल गड़बड़ियां और ड्राइविंग अनुभव में गिरावट। बॉडी फिटमेंट और बिल्ड क्वालिटी – ई वी निर्माताओं द्वारा तेज़ी में प्रोडक्शन करने के चलते निर्माण में गुणवत्ता की कमी। एसा नहीं है कि इन गाड़ियों के स्वदेशी निर्माता ही प्रभावित हुए हैं बल्कि टेस्ला से लेकर मर्सिडीज तक सब इससे प्रभावित हैं। ई वी निर्माताओं में दुनिया की अग्रणी कंपनियां जैसे कि टेस्ला, फोर्ड, हुंडई, कीया, रीविआन और मर्सेडीज़ बेंज भी इस रिपोर्ट में पीछे रही हैं। जे डी पावर के मुताबिक, कुछ मामलों में तो हाई-एंड इलेक्ट्रिक कारों में समस्याएं अपेक्षाकृत अधिक देखी गईं क्योंकि इनमें ज़्यादा तकनीकी फंक्शन और फीचर्स होते हैं जो बार-बार गड़बड़ियों का कारण बनते हैं। जे डी पावर के ऑटोमोटिव एनालिस्ट फ़्रैंक हनले के अनुसार, “ईवी वाहन एक नई तकनीकी क्रांति का हिस्सा हैं लेकिन इन्हें पेट्रोल वाहनों की तुलना में कहीं अधिक टेस्टिंग और सुधार की आवश्यकता है। कंपनियों को ‘टेक्नोलॉजी ओवरलोड’ से बचना चाहिए और बेसिक कार्यक्षमता पर अधिक ध्यान देना चाहिए।” गर हम अपने देश भारत की बात करें तो यहां भी ई वी कार मालिकों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि जे डी पावर की यह रिपोर्ट अमेरिका केंद्रित है, लेकिन भारत में भी इलेक्ट्रिक कारों को लेकर उपभोक्ताओं की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उपभोक्ता बैटरी फेलियर, चार्जिंग में देरी, और सर्विस नेटवर्क की कमजोरियों को लेकर आवाज उठा रहे हैं। विशेषकर मध्यवर्गीय खरीदारों को उम्मीद होती है कि वे ई वी पर स्विच करके ईंधन खर्च बचाएंगे, लेकिन बैटरी रिप्लेसमेंट लागत, चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और कम रेंज जैसे मुद्दे उनके अनुभव को प्रभावित कर रहे हैं। अगर हम सरकार की ई वी नीति और बाजार में तेजी का तुलनात्मक अध्यन करें तो पायेंगे कि भारत सरकार ने 2030 तक 30% वाहन इलेक्ट्रिक करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए फेम-2 जैसी योजनाओं के तहत सब्सिडी दी जा रही है। इसके साथ ही चार्जिंग स्टेशनों का विस्तार भी किया जा रहा है। लेकिन तकनीकी समस्याएं यदि इसी तरह बनी रहीं तो यह योजना आम जनता का विश्वास खो सकती है। भारत में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री 2024-25 में 50% तक बढ़ी है, लेकिन इन वाहनों की पोस्ट-सेल सर्विस और मेंटेनेंस अब चिंता का विषय बनती जा रही है। आइये समझते हैं ऑटोमोबाइल एक्सपर्ट्स की भाषा को। भारतीय ऑटो एक्सपर्ट होरमाड्ज़ सोरबजी कहते हैं कि "ई वी सेगमेंट अब भी नवजात अवस्था में है। निर्माताओं को सॉफ्टवेयर, बैटरी थर्मल मैनेजमेंट और लॉन्ग टर्म ड्युरेबिलिटी जैसे पहलुओं पर गंभीरता से काम करना होगा।"वहीं ऑटो उद्योग पर नज़र रखने वाले आर सी भार्गवा का मानना है कि "यदि ग्राहक अनुभव खराब हुआ तो ई वी ट्रांजिशन पर नकारात्मक असर पड़ेगा। कंपनियों को भरोसेमंद ब्रांड बनकर उभरना होगा।" अब बात करते हैं कि क्या ई वी से संबंधित मुश्किलें परमानेंट हैं? तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि ये समस्याएं अस्थायी हैं और ई वी टेक्नोलॉजी समय के साथ परिपक्व होगी। स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसी तकनीकें भी शुरुआती दौर में समस्याग्रस्त रहीं, लेकिन समय के साथ उनमें सुधार हुआ। ई वी निर्माताओं के सामने अब तीन बड़ी प्राथमिकताएं हैं: क्वालिटी कंट्रोल में सुधार, ग्राहक सेवा का विस्तार और लॉन्ग टर्म भरोसा कायम करना। अब सवाल पैदा होता है कि आखिर उपभोक्ताओं को क्या करना चाहिए? यदि आप इलेक्ट्रिक कार खरीदने की सोच रहे हैं, तो निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है: वाहन की वारंटी और सर्विस सपोर्ट को जांचें, चार्जिंग सुविधा की उपलब्धता का आकलन करें, कंपनी के कस्टमर फीडबैक और समस्या निवारण समय को समझें, सस्ते ब्रांड की बजाय स्थायित्व देने वाले ब्रांड पर भरोसा करें। दूसरी ओर ई वी कंपनियों की बात करें तो उनका तर्क है कि ई वी सेक्टर की कई कंपनियों ने जे डी पावर की रिपोर्ट को सकारात्मक आलोचना के रूप में लिया है। टेस्ला ने कहा है कि उनकी ओ टी ए अपडेट्स तकनीकी दिक्कतों को तेजी से हल कर रही हैं। हुंडई और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियां भारत में विशेष ई वी मेंटेनेंस हब्स स्थापित कर रही हैं ताकि ग्राहकों को बेहतर अनुभव मिल सके। अंत में कह सकते हैं कि इलेक्ट्रिक कारें यकीनन भविष्य का विकल्प हैं। लेकिन वर्तमान में यह स्पष्ट हो रहा है कि यह तकनीक अब भी विकासशील अवस्था में है और पेट्रोल गाड़ियों की तुलना में विश्वसनीयता के मोर्चे पर पिछड़ रही है। सरकार को चाहिए कि वह ई वी नीति में अब ‘क्वालिटी एश्योरेंस’ जैसे मानकों को अनिवार्य करे। वहीं कंपनियों को चाहिए कि वे बिक्री की होड़ के बजाय उपभोक्ता संतुष्टि पर ध्यान केंद्रित करें।