फिलिस्तीन के गाजा पट्टी में जारी युद्ध ने एक बार फिर दुनिया को दहला कर रख दिया है। पिछले 24 घंटे के भीतर गाजा में 74 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और मासूम बच्चे शामिल हैं। चारों ओर सिर्फ तबाही और मातम पसरा है। मलबे में दबे शव, भूख और डर से कांपते बच्चे, और मदद को तरसते परिवार – यह मंजर अब गाजा की एक कड़वी सच्चाई बन गया है।
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने एक बार फिर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए बयान दिया है कि "हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक दुश्मन को पूरी तरह मिटा न दें।" इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि संघर्ष अभी और तेज़ हो सकता है।
गाजा शहर में हुए हवाई हमलों के बाद कई रिहायशी इमारतें पूरी तरह ढह गईं हैं। बचाव दल मलबे में दबे लोगों को निकालने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन संसाधनों की कमी और लगातार बमबारी के बीच राहत कार्य बाधित हो रहा है। अस्पतालों में घायलों की भरमार है और दवाओं की कमी से हालात और बिगड़ रहे हैं।
UN और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इस हिंसा की तीव्र निंदा करते हुए दोनों पक्षों से तत्काल संघर्ष विराम की मांग की है। लेकिन फिलहाल इसके कोई संकेत नहीं दिख रहे। गाजा की नागरिक आबादी मानवीय त्रासदी से गुजर रही है। कई परिवार बिना पानी, बिजली और खाने के दिन काट रहे हैं। बच्चों के लिए दूध और प्राथमिक दवाएं तक उपलब्ध नहीं हैं।
एक स्थानीय नागरिक ने मीडिया को बताया, "हमारे घर अब कब्रिस्तान बन गए हैं। बच्चे रात में डर से सो नहीं पाते। बम गिरने की आवाज़ ने हर किसी का मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया है।"
दूसरी ओर, इजरायली सेना का दावा है कि उसने हमास के कई ठिकानों को नष्ट किया है और यह कार्रवाई आत्मरक्षा में की जा रही है। लेकिन इस बीच आम नागरिकों की हो रही मौतें और तबाही सवाल खड़े कर रही हैं – क्या यह लड़ाई आतंक के खिलाफ है या निर्दोष जिंदगियों के खिलाफ?
दुनियाभर के मानवाधिकार संगठन गाजा में तत्काल मानवीय सहायता की मांग कर रहे हैं, लेकिन सीमाएं बंद हैं और मदद का पहुंच पाना बेहद मुश्किल हो रहा है।
अब सवाल यह है कि क्या यह युद्ध वाकई समाधान की ओर ले जा रहा है या एक पूरे इलाके को तबाह कर देने का रास्ता बन रहा है?