उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 6 अगस्त की रात अचानक बादल फटने की भयावह घटना ने तबाही का मंजर पैदा कर दिया। धराली और मनेरी गांव समेत कई इलाके मलबे में दब गए, नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ गया और स्थानीय जनजीवन थम सा गया। चारों ओर मलबा, टूटी हुई सड़कें, बिखरे मकान और रुदन करती आवाजें — यह तस्वीरें बताने के लिए काफी हैं कि तबाही कितनी भयानक थी।
रात लगभग 11 बजे हुई इस घटना के तुरंत बाद प्रशासन और आपदा प्रबंधन टीम हरकत में आई। हालांकि भारी बारिश और अंधकार के चलते राहत कार्यों में प्रारंभिक बाधाएं आईं, लेकिन ITBP, SDRF और सेना के जवानों ने बिना रुके मोर्चा संभाला। अब तक 14 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 35 से अधिक लोग लापता हैं। दर्जनों घायल हैं, जिन्हें उत्तरकाशी जिला अस्पताल और देहरादून रेफर किया गया है।
सेना के जवानों ने जान जोखिम में डालकर गांवों में फंसे बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को निकाला। रातभर चली रेस्क्यू ऑपरेशन में ड्रोन, हेलिकॉप्टर और सर्च डॉग्स की मदद ली गई। NDRF और राज्य पुलिस की टीमों ने तेजी से मलबा हटाने का कार्य शुरू किया।
स्थानीय निवासी बता रहे हैं कि उन्होंने कभी ऐसा विनाश नहीं देखा। “एक मिनट में सब कुछ खत्म हो गया,” — ये शब्द एक पीड़ित बुजुर्ग के हैं जो अपने तीन परिजनों को खो चुके हैं। वहीं दूसरी ओर, लगातार हो रही बारिश से स्थिति और बिगड़ने की आशंका बनी हुई है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तत्काल उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं और पीड़ित परिवारों को 4 लाख रुपये की मुआवजा राशि घोषित की है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी हालात पर नज़र बनाए हुए है और हर संभव सहायता का आश्वासन दिया है।
उत्तरकाशी की यह त्रासदी एक बार फिर जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन की कमजोरियों की ओर संकेत करती है। सवाल यही है — क्या हम अब भी सबक लेंगे या अगली त्रासदी का इंतजार करेंगे?