अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले कई उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक का भारी टैरिफ लागू कर दिया है। यह नया शुल्क 27 अगस्त 2025 से प्रभावी हो गया है और इसका सीधा असर भारत के लगभग 48 अरब डॉलर के निर्यात पर पड़ने की संभावना है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को लेकर पहले से ही तनाव बना हुआ है।
अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह फैसला घरेलू उद्योगों की सुरक्षा और व्यापार संतुलन सुधारने के लिए लिया गया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत-अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्तों में खटास और बढ़ सकती है। प्रभावित वस्तुओं में वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स, स्टील, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। इन सेक्टरों के लिए यह फैसला बड़ा झटका साबित हो सकता है।
भारत सरकार ने इस निर्णय पर गहरी नाराजगी जाहिर की है। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, इस तरह का एकतरफा कदम विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सिद्धांतों के खिलाफ है। मंत्रालय ने संकेत दिया है कि भारत इस मसले को WTO में उठाने पर विचार कर रहा है। इसके अलावा, भारत की तरफ से अमेरिका को कूटनीतिक स्तर पर जवाब देने और अपने निर्यातकों को राहत देने के लिए विकल्प तलाशे जा रहे हैं।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि टैरिफ बढ़ने से भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा अमेरिकी बाजार में कम हो जाएगी। इससे न केवल निर्यात प्रभावित होगा, बल्कि कई उद्योगों में रोजगार पर भी दबाव बढ़ सकता है। खासकर टेक्सटाइल और स्टील जैसे क्षेत्रों में सबसे ज्यादा असर देखने को मिल सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह टकराव भारत को वैकल्पिक बाजार तलाशने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति मजबूत करने की दिशा में काम करने के लिए मजबूर कर सकता है। वहीं, यह फैसला अमेरिकी कंपनियों को भी महंगा पड़ सकता है, क्योंकि उच्च टैरिफ का असर उपभोक्ता कीमतों पर पड़ना तय है।
भारत और अमेरिका के बीच यह व्यापारिक तनाव वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि दोनों देश दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं।