नेपाल की राजनीति में एक बार फिर बड़ा भूचाल आया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। बताया जा रहा है कि लंबे समय से उनके खिलाफ पनप रही नाराजगी और हालिया जनविद्रोह के दबाव में उन्होंने यह कदम उठाया। सूत्रों के अनुसार, इस्तीफे के बाद ओली देश छोड़ने की तैयारी में हैं।
पिछले कुछ महीनों से नेपाल राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा था। जनता के बीच बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के आरोपों ने ओली सरकार की छवि कमजोर कर दी थी। हाल ही में युवाओं के नेतृत्व में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने सरकार के खिलाफ माहौल को और गरम कर दिया। काठमांडू सहित कई शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे, जिनमें बड़ी संख्या में छात्र और पेशेवर शामिल थे। सोशल मीडिया पर भी "ओली इस्तीफा दो" अभियान तेज़ी से ट्रेंड कर रहा था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओली सरकार लगातार विपक्ष और जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रही। चीन और भारत के साथ रिश्तों को लेकर उनकी विदेश नीति पर भी सवाल उठते रहे। एक ओर, उन्होंने चीन के साथ नजदीकी बढ़ाई, वहीं दूसरी ओर भारत से रिश्ते तल्ख़ हुए। नतीजा यह हुआ कि घरेलू स्तर पर उन्हें मजबूत समर्थन नहीं मिल सका।
इस्तीफे के बाद नेपाली कांग्रेस और माओवादी दलों ने राजनीतिक समीकरण साधने की कवायद तेज़ कर दी है। माना जा रहा है कि अंतरिम सरकार बनाने पर चर्चा शुरू हो गई है। विपक्षी खेमे का दावा है कि देश को इस वक्त स्थिर नेतृत्व की ज़रूरत है, ताकि आर्थिक संकट और जनता के असंतोष को दूर किया जा सके।
इधर, ओली के करीबी सूत्रों ने संकेत दिया है कि उन्हें सुरक्षा को लेकर आशंका है। यही वजह है कि वह परिवार समेत विदेश जाने पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, अभी तक इस पर आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है।
कुल मिलाकर, नेपाल एक बार फिर राजनीतिक अनिश्चितता के दौर में प्रवेश कर चुका है। ओली का इस्तीफा न केवल सत्ता परिवर्तन की शुरुआत है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि आखिर जनता के भरोसे को जीतने वाला अगला नेतृत्व कौन होगा।