संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक महत्वपूर्ण मतदान के दौरान भारत ने फलस्तीन का समर्थन करते हुए इजरायल के खिलाफ वोट दिया। इस प्रस्ताव को कुल 141 देशों का समर्थन मिला, जबकि कुछ देशों ने अनुपस्थित रहकर या विरोध में अपना मत दिया। यह फैसला पश्चिम एशिया में जारी संघर्ष और मानवीय संकट के बीच वैश्विक राजनीति के लिहाज से अहम माना जा रहा है।
भारत का यह कदम कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में भारत ने इजरायल और फलस्तीन, दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की कोशिश की है। एक ओर भारत इजरायल से रक्षा, कृषि और तकनीकी क्षेत्र में गहरे रिश्ते रखता है, वहीं दूसरी ओर फलस्तीन के आत्मनिर्णय के अधिकार और स्वतंत्र राष्ट्र की मांग का भी समर्थन करता आया है।
संयुक्त राष्ट्र में पेश प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य गाजा और अन्य क्षेत्रों में हिंसा रोकने, नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और मानवीय सहायता पहुँचाने का था। इस पर हुई वोटिंग में भारत समेत अधिकांश देशों ने पक्ष में मतदान कर शांति और स्थिरता की आवश्यकता पर जोर दिया।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह रुख उसकी पारंपरिक विदेश नीति के अनुरूप है, जिसमें हमेशा फलस्तीन के मुद्दे पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाया गया है। साथ ही, यह संदेश भी दिया गया है कि किसी भी क्षेत्रीय संघर्ष का समाधान बातचीत और कूटनीति से ही संभव है।
वहीं, इजरायल समर्थक देशों ने इस प्रस्ताव की आलोचना करते हुए इसे पक्षपातपूर्ण बताया। उनका कहना है कि इसमें आतंकवादी गतिविधियों और सुरक्षा चुनौतियों का पर्याप्त उल्लेख नहीं किया गया। इसके बावजूद, भारी बहुमत में पारित यह प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्पष्ट राय को दर्शाता है।
भारत की ओर से मिले इस समर्थन को फलस्तीन नेतृत्व ने सराहा है। उन्होंने कहा कि यह कदम न्याय और मानवाधिकारों की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। क्षेत्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे निर्णय एशिया और मध्य-पूर्व में भारत की साख को और मजबूत करेंगे।
कुल मिलाकर, संयुक्त राष्ट्र में हुए इस मतदान ने एक बार फिर दिखाया है कि वैश्विक समुदाय हिंसा की जगह शांति और संवाद को प्राथमिकता देना चाहता है। भारत का समर्थन इस दिशा में एक अहम संकेत माना जा रहा है।