नेपाल की राजनीति इन दिनों अस्थिर दौर से गुजर रही है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद नए नेता की तलाश तेज हो गई है। इस बीच, पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे आगे बताया जा रहा है। खास बात यह है कि उन्हें भारी समर्थन मिल रहा है, लेकिन यह समर्थन मुख्य रूप से Gen-Z युवाओं से आता दिख रहा है। सवाल यह है कि क्या सिर्फ युवाओं की ताकत उन्हें सत्ता के शिखर तक पहुंचा सकती है?
हाल ही में हुए एक वर्चुअल सम्मेलन में पांच हजार से अधिक युवाओं ने कार्की के नाम का समर्थन किया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी वे लगातार ट्रेंड कर रही हैं। उनकी छवि एक सख्त और ईमानदार न्यायाधीश की रही है, जिसने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। यही वजह है कि युवा उन्हें पारदर्शी और भ्रष्टाचार-मुक्त राजनीति का प्रतीक मानते हैं।
हालांकि, नेपाल की सत्ता समीकरण केवल जनभावना पर निर्भर नहीं करते। यहां गठबंधन की राजनीति और दलों के बीच आपसी सहमति अहम भूमिका निभाती है। यही कारण है कि सुशीला कार्की के सामने अन्य वरिष्ठ नेताओं की चुनौती बनी हुई है। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में चार और नाम चर्चा में हैं—पूर्व प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा, पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’, माधव कुमार नेपाल और उपेन्द्र यादव। ये सभी नेता अपने-अपने दलों में मजबूत पकड़ रखते हैं और संसदीय समीकरणों के हिसाब से निर्णायक साबित हो सकते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि कार्की को वास्तव में पीएम बनना है तो उन्हें सिर्फ युवाओं का समर्थन ही नहीं बल्कि संसदीय दलों का भी विश्वास जीतना होगा। इसके लिए उन्हें राजनीतिक दलों के बीच संवाद बढ़ाना होगा और साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर सहमति बनानी होगी।
Gen-Z की ऊर्जा और सोशल मीडिया की ताकत निश्चित रूप से सुशीला कार्की को चर्चा के केंद्र में ला चुकी है। लेकिन प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के लिए उन्हें गठबंधन राजनीति की बारीकियों को समझना और सीनियर नेताओं से सहयोग हासिल करना होगा।
कुल मिलाकर, नेपाल की सत्ता की गुत्थी अभी सुलझी नहीं है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सुशीला कार्की वास्तव में नेपाल की पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री बन पाती हैं या फिर पारंपरिक राजनीतिक चेहरे ही इस दौड़ में आगे निकलते हैं।