बिहार की राजनीति इस समय बेहद गरमाई हुई है। 2025 का विधानसभा चुनाव राज्य की सियासत में नया मोड़ ला सकता है। इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में हैं पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह चुनाव उनके लिए किसी ‘करो या मरो’ की जंग से कम नहीं है।
तेजस्वी यादव पिछले एक दशक से राज्य की राजनीति में सक्रिय हैं और खुद को जनता के विकल्प के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बड़ी संख्या में सीटें जीतकर यह साबित भी किया था कि जनता में उनकी पकड़ मजबूत हो रही है। लेकिन अब 2025 का चुनाव उनके लिए निर्णायक साबित हो सकता है। अगर वे सत्ता तक पहुंचने में सफल होते हैं तो उन्हें नई पीढ़ी के नेता के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी। वहीं, अगर हार का सामना करना पड़ा तो पार्टी की स्थिति कमजोर हो सकती है।
राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो एनडीए गठबंधन अपनी पुरानी रणनीति के साथ मैदान में है, जबकि महागठबंधन आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है। विपक्ष का नेतृत्व करने वाले तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती है – जनता को यह विश्वास दिलाना कि वे स्थिर सरकार दे सकते हैं। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे इस चुनाव में प्रमुख रहेंगे। खासकर युवाओं और किसानों की नाराजगी को दूर करना उनके लिए अहम होगा।
तेजस्वी यादव लगातार रोजगार के मुद्दे को उठाते रहे हैं। उन्होंने वादा किया है कि सत्ता में आने पर युवाओं को बड़े पैमाने पर नौकरियां दी जाएंगी। वहीं, ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे के विकास और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार को भी अपने घोषणापत्र का हिस्सा बना रहे हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बार का चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन का नहीं बल्कि नेतृत्व परिवर्तन का भी संकेत दे सकता है। तेजस्वी के लिए यह अवसर है कि वे साबित करें कि वे सिर्फ लालू यादव के उत्तराधिकारी नहीं बल्कि एक स्वतंत्र और प्रभावी नेता भी हैं।
कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 राज्य की राजनीति को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है। तेजस्वी यादव के लिए यह जंग निर्णायक होगी—या तो वे सत्ता पर काबिज होंगे या फिर उन्हें राजनीतिक सफर को नए सिरे से परिभाषित करना होगा।