भारत ने वैश्विक व्यापार पर अमेरिकी डॉलर की पकड़ को चुनौती देते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। अब मॉरीशस के साथ द्विपक्षीय कारोबार भारतीय रुपये और मॉरीशियन रुपी में होगा। यह फैसला न केवल भारत की आर्थिक कूटनीति को नया आयाम देगा, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को भी मजबूती प्रदान करेगा।
क्या है नई व्यवस्था?
अब तक भारत और मॉरीशस के बीच होने वाला व्यापार अमेरिकी डॉलर के जरिए होता था। लेकिन नई व्यवस्था के तहत आयात-निर्यात की भुगतान प्रक्रिया सीधे स्थानीय मुद्राओं में पूरी की जाएगी। इससे डॉलर पर निर्भरता कम होगी और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव घटेगा।
व्यापारिक रिश्तों पर असर
भारत और मॉरीशस लंबे समय से एक-दूसरे के विश्वसनीय साझेदार रहे हैं। मॉरीशस भारत के निवेश और व्यापार का अहम केंद्र है। दोनों देशों के बीच वस्त्र, समुद्री उत्पाद, आईटी सेवाओं और वित्तीय क्षेत्र में सक्रिय कारोबार होता है। स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन से व्यापारियों के लिए लागत कम होगी और लेन-देन तेज़ी से पूरा हो सकेगा।
डॉलर पर निर्भरता कम करने की रणनीति
पिछले कुछ वर्षों से भारत डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने की दिशा में सक्रिय है। रूस, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ भी रुपये में व्यापार को बढ़ावा दिया गया है। मॉरीशस के साथ यह कदम इस रणनीति को और गति देगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारतीय रुपये का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्व बढ़ेगा और वैश्विक लेन-देन में डॉलर की एकाधिकार स्थिति को चुनौती मिलेगी।
अर्थव्यवस्था और कारोबारी वर्ग के लिए फायदे
इस निर्णय से भारत और मॉरीशस दोनों को विदेशी मुद्रा की बचत होगी। साथ ही, डॉलर की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से होने वाले जोखिम से भी बचाव मिलेगा। खासकर छोटे और मध्यम व्यापारियों के लिए यह व्यवस्था काफी लाभकारी होगी क्योंकि उन्हें अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में अतिरिक्त शुल्क और जटिल प्रक्रियाओं से राहत मिलेगी।
भारत का यह कदम न केवल उसकी आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में अहम है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि दुनिया तेजी से बहुध्रुवीय आर्थिक व्यवस्था की ओर बढ़ रही है। मॉरीशस के साथ रुपये और रुपी में व्यापार की शुरुआत भारत के "लोकल करेंसी ट्रेड" मॉडल को मजबूती देगी और अमेरिकी डॉलर की वैश्विक वर्चस्वता को सीधी चुनौती पेश करेगी।