फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने राजनीतिक हलकों में सभी को चौंकाते हुए रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब फ्रांस घरेलू असंतोष, यूरोप में बदलते सुरक्षा समीकरण और वैश्विक कूटनीतिक दबावों से जूझ रहा है। लेकोर्नु का कार्यकाल कई मायनों में चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है।
लेकोर्नु का राजनीतिक सफर
सेबेस्टियन लेकोर्नु फ्रांस की राजनीति में अपेक्षाकृत युवा और ऊर्जावान चेहरा माने जाते हैं। उन्होंने स्थानीय प्रशासन से अपने करियर की शुरुआत की और धीरे-धीरे राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई। रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने फ्रांस की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने और यूक्रेन संकट में सक्रिय भूमिका निभाने में अहम योगदान दिया। उनकी यही छवि राष्ट्रपति मैक्रों के लिए भरोसे का कारण बनी।
क्यों लिया गया यह फैसला?
पिछले कुछ महीनों से फ्रांस में सामाजिक असंतोष गहराता जा रहा था। पेंशन सुधारों, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर जनता सरकार से नाराज थी। साथ ही, संसद में राष्ट्रपति मैक्रों की पार्टी को बहुमत न मिल पाने के कारण सरकार को लगातार राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे हालात में मैक्रों को एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो जनता और विपक्ष दोनों का विश्वास जीत सके। लेकोर्नु का सादगीपूर्ण व्यक्तित्व और संतुलित छवि इस संदर्भ में सही विकल्प साबित हुए।
नई जिम्मेदारियों के साथ चुनौतियां
प्रधानमंत्री बनने के बाद लेकोर्नु के सामने कई बड़ी चुनौतियां होंगी:
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घरेलू असंतोष को संभालना – पेंशन सुधार और सामाजिक नीतियों को लेकर जनता की नाराजगी को दूर करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी।
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आर्थिक मोर्चा – यूरोपीय संघ की मंदी और ऊर्जा संकट ने फ्रांस की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। रोजगार सृजन और महंगाई पर नियंत्रण लेकोर्नु के लिए अहम मुद्दे होंगे।
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विदेश नीति और सुरक्षा – यूक्रेन युद्ध में फ्रांस की भूमिका, नाटो (NATO) के साथ समन्वय और अफ्रीकी देशों में घटते प्रभाव को फिर से स्थापित करना उनकी कूटनीतिक परीक्षा होगी।
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राजनीतिक स्थिरता – संसद में बहुमत की कमी के कारण उन्हें विपक्ष के साथ समझौते और सहयोग का रास्ता तलाशना होगा।
मैक्रों की रणनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि लेकोर्नु को प्रधानमंत्री बनाकर मैक्रों ने दो लक्ष्य साधने की कोशिश की है। पहला, जनता के बीच सरकार की छवि को मजबूत करना और दूसरा, यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर फ्रांस की स्थिति को और मजबूत करना। रक्षा पृष्ठभूमि वाले प्रधानमंत्री से यह संदेश भी जाता है कि फ्रांस वैश्विक सुरक्षा और रणनीतिक मोर्चे पर सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
लेकोर्नु का कार्यकाल फ्रांस की राजनीति में निर्णायक साबित हो सकता है। यदि वे घरेलू असंतोष को कम करने और अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में सफल रहते हैं, तो यह मैक्रों की पार्टी के लिए आगामी चुनावों में फायदेमंद होगा। लेकिन असफलता की स्थिति में विपक्ष का दबाव और बढ़ सकता है।
कुल मिलाकर, राष्ट्रपति मैक्रों का यह दांव न केवल फ्रांस की राजनीति बल्कि यूरोप की रणनीतिक दिशा को भी प्रभावित करेगा। अब निगाहें इस बात पर हैं कि लेकोर्नु प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारियों को कैसे निभाते हैं और चुनौतियों को अवसर में कैसे बदलते हैं।