पंजाब में बाढ़ का संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य के करीब 2000 गांव अब भी पानी में डूबे हुए हैं, जहां जनजीवन पूरी तरह प्रभावित है। कई इलाकों में लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम जारी है, जबकि प्रशासन राहत और पुनर्वास कार्यों को तेज करने में जुटा है। फसलों को भारी नुकसान हुआ है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि यदि जल्द राहत नहीं मिली तो उनकी मेहनत पर पानी फिर जाएगा।
इसी बीच, जम्मू-कश्मीर से राहत की खबर आई है। लगातार बारिश और भूस्खलन के कारण बंद पड़ा जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे 16 दिन बाद मंगलवार को खोल दिया गया। इस रास्ते के खुलने से यात्रियों और मालवाहक ट्रकों की आवाजाही बहाल हुई है। लंबे समय से फंसे यात्रियों और कारोबारियों को बड़ी राहत मिली है। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि अभी भी कुछ संवेदनशील जगहों पर निगरानी रखी जा रही है ताकि किसी आपदा की स्थिति में त्वरित कार्रवाई की जा सके।
हरियाणा में मानसून इस बार सामान्य से 46 प्रतिशत ज्यादा सक्रिय रहा। इससे राज्य के कई जिलों में निचले इलाके जलमग्न हो गए। लगातार बारिश से गांवों में सड़कों, पुलों और घरों को नुकसान पहुंचा है। किसानों की खरीफ फसल भी इस अतिरिक्त बारिश से प्रभावित हुई है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जलभराव से धान और सब्जियों की फसल पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है।
पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ और बारिश से जुड़ी यह स्थिति उत्तर भारत के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। एक ओर जहां प्रशासन राहत शिविरों और मेडिकल कैम्पों के जरिए प्रभावितों की मदद कर रहा है, वहीं दूसरी ओर विशेषज्ञ दीर्घकालिक समाधान पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि हर साल आने वाली इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर ड्रेनेज सिस्टम, तटबंधों की मजबूती और मौसम पूर्वानुमान तंत्र को और सटीक बनाना जरूरी है।
फिलहाल, हालात धीरे-धीरे सामान्य होते दिख रहे हैं, लेकिन प्रभावित क्षेत्रों में जीवन पटरी पर लौटने में अभी वक्त लगेगा।