प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत किसानों को 1 रुपए जैसे नाममात्र के क्लेम मिलने की खबरों ने केंद्र सरकार को भी हिला दिया है। हाल ही में सामने आए कई मामलों में किसानों को बेमेल दावों की राशि मिलने पर कृषि मंत्री ने अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है। उन्होंने कहा कि अगर किसान फसल बीमा ले रहे हैं, तो उन्हें उनके नुकसान के अनुरूप न्यायसंगत मुआवजा मिलना चाहिए।
किसानों में नाराजगी, सरकार सख्त
देश के कई राज्यों — मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और बिहार — में किसानों ने शिकायत की है कि बाढ़, सूखा या कीट हमले से फसल नष्ट होने के बावजूद बीमा क्लेम राशि मात्र 1, 5 या 10 रुपए तक ही मिली। इससे किसानों में भारी नाराजगी फैल गई है। कृषि मंत्रालय ने ऐसे सभी मामलों की जांच के आदेश दिए हैं। कृषि मंत्री ने विभागीय अधिकारियों को चेतावनी दी कि यदि किसी स्तर पर लापरवाही पाई गई तो जिम्मेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
डेटा में गड़बड़ी और सर्वे की खामियां
सूत्रों के अनुसार, कई जिलों में बीमा कंपनियों ने ‘क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट’ यानी फसल नुकसान सर्वे ठीक से नहीं किया। कई बार किसानों की जमीन और फसल की एंट्री गलत दर्ज हुई, जिससे क्लेम राशि अत्यंत कम आई। मंत्रालय अब उपग्रह आंकड़ों और डिजिटल सर्वे की मदद से डेटा की सटीकता बढ़ाने की योजना बना रहा है।
बीमा कंपनियों पर सवाल
विपक्षी दलों और किसान संगठनों ने बीमा कंपनियों पर आरोप लगाया है कि वे किसानों के हितों के बजाय अपने लाभ को प्राथमिकता दे रही हैं। पिछले तीन वर्षों में कंपनियों ने 58,000 करोड़ रुपये से अधिक का प्रीमियम वसूला, जबकि दावों के रूप में उससे बहुत कम राशि किसानों को मिली।
सरकार का दावा: पारदर्शिता बढ़ाने की तैयारी
कृषि मंत्रालय ने कहा है कि वर्ष 2026 से PMFBY में “डिजिटल क्लेम ट्रैकिंग सिस्टम” शुरू किया जाएगा, जिससे हर किसान अपने बीमा दावे की स्थिति ऑनलाइन देख सकेगा। इसके साथ ही, क्लेम के निपटारे की अधिकतम सीमा और समय-सीमा तय की जाएगी ताकि किसानों को महीनों इंतजार न करना पड़े।
सरकार का कहना है कि योजना का मकसद किसानों को सुरक्षा कवच देना है, न कि उन्हें क्लेम के नाम पर प्रतीकात्मक राशि थमाना। अब देखना यह होगा कि जांच के बाद 1 रुपए वाले इन मामलों में कितनी पारदर्शिता और जवाबदेही सामने आती है।