मध्य पूर्व में शक्ति संतुलन एक बार फिर बदलने की दिशा में है। ईरान और रूस ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत रूस आने वाले वर्षों में ईरान में 8 नए न्यूक्लियर पावर प्लांट (परमाणु संयंत्र) बनाने में मदद करेगा। यह समझौता तेहरान में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में हुआ, जिसमें दोनों देशों के ऊर्जा मंत्रियों और वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।
ऊर्जा सहयोग में नया अध्याय
यह करार रूस के "रोसएटम" (Rosatom) और ईरान की "एटॉमिक एनर्जी ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ ईरान" (AEOI) के बीच हुआ है। दोनों पक्षों ने इस समझौते को “रणनीतिक साझेदारी” बताया है। पहले से संचालित बुशेहर परमाणु संयंत्र रूस की ही तकनीकी सहायता से बनाया गया था, और अब उसी मॉडल को आधार बनाकर 8 नए संयंत्र विकसित किए जाएंगे।
रूसी मंत्री अलेक्सेई लिहाचोव ने कहा, “यह समझौता सिर्फ ऊर्जा उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परमाणु सुरक्षा, तकनीकी प्रशिक्षण और संयुक्त अनुसंधान को भी मजबूत करेगा।” वहीं ईरान के परमाणु प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने कहा कि इन परियोजनाओं से देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और बिजली संकट को स्थायी रूप से दूर करने में मदद मिलेगी।
पश्चिमी देशों की बढ़ी चिंता
ईरान और रूस के इस समझौते ने अमेरिका और यूरोपीय देशों की चिंता बढ़ा दी है। वाशिंगटन ने पहले ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा रखे हैं, जबकि रूस यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। ऐसे में यह समझौता दोनों देशों के लिए एक ‘रणनीतिक प्रतिरोध गठबंधन’ के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पश्चिमी देशों की परमाणु निगरानी व्यवस्था को चुनौती मिल सकती है।
परियोजना का दायरा और उद्देश्य
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, इन 8 नए संयंत्रों में से 3 दक्षिणी प्रांत होरमुज़गान में, 2 इस्फहान में, और शेष उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में स्थापित किए जाएंगे। प्रत्येक प्लांट की उत्पादन क्षमता 1000 मेगावाट होगी, जिससे ईरान की कुल परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता 10,000 मेगावाट से अधिक पहुंच जाएगी। रूस न केवल तकनीकी सहायता देगा, बल्कि शुरुआती चरण में ईंधन आपूर्ति और स्टाफ ट्रेनिंग की भी जिम्मेदारी संभालेगा।
पर्यावरण और रोजगार पर असर
ईरान सरकार का दावा है कि ये संयंत्र कार्बन उत्सर्जन घटाने में अहम भूमिका निभाएंगे। साथ ही, निर्माण के दौरान हजारों स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। परियोजना के पूर्ण होने के बाद लगभग 20,000 प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियां सृजित होने की उम्मीद है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह समझौता ईरान की ऊर्जा कूटनीति को नया आयाम देगा। इससे देश न केवल बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि परमाणु तकनीक के क्षेत्र में भी एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरेगा।
रूस और ईरान, जो दोनों ही पश्चिमी प्रतिबंधों से घिरे हैं, अब मिलकर ऊर्जा क्षेत्र में ऐसा सहयोग कर रहे हैं जो आने वाले वर्षों में वैश्विक रणनीति का संतुलन बदल सकता है।