राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार, 9 नवंबर 2025 को एक कार्यक्रम के दौरान ऐसा बयान दिया, जिसने राष्ट्रीय राजनीति और सामाजिक विमर्श में नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोग — चाहे वे हिंदू हों, मुसलमान हों या ईसाई — सभी के पूर्वज एक ही हैं। भागवत ने कहा कि “हम सबके पूर्वज हिंदू थे, बस कुछ लोग इसे भूल गए हैं या उन्हें भुला दिया गया है।”
नई दिल्ली में आयोजित “राष्ट्रीय एकता सम्मेलन” में बोलते हुए भागवत ने कहा कि संघ का उद्देश्य किसी पर प्रभुत्व स्थापित करना या सत्ता हासिल करना नहीं है, बल्कि समाज में समरसता, एकता और आत्मसम्मान की भावना को मजबूत करना है। उन्होंने कहा, “आरएसएस का मकसद लोगों को जोड़ना है, किसी को दबाना नहीं। हमारा प्रयास है कि समाज एक परिवार की तरह रहे, जहाँ सबका सम्मान हो और सबकी आवाज सुनी जाए।”
भागवत ने अपने संबोधन में भारतीय समाज की ऐतिहासिक जड़ों और सांस्कृतिक विरासत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “यह देश सभी का है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — सब भारतीय हैं। भले ही पूजा-पद्धतियाँ अलग हों, लेकिन हमारी मातृभूमि एक है। इतिहास ने हमें कभी-कभी अलग-अलग रास्तों पर खड़ा किया, लेकिन हमारी आत्मा और परंपरा एक ही रही है।”
उन्होंने इस दौरान यह भी स्पष्ट किया कि आरएसएस राजनीति से ऊपर एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है। “हम सत्ता या प्रमुखता नहीं चाहते। हमारा काम लोगों के जीवन में नैतिकता, अनुशासन और राष्ट्रीय चेतना जगाना है,” उन्होंने कहा। भागवत ने यह भी कहा कि भारत के विकास में सभी समुदायों की समान भूमिका है और किसी को भी हाशिए पर नहीं रखा जा सकता।
संघ प्रमुख के इस बयान को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ दीं। कुछ दलों ने इसे “समावेशी” बताया, तो कुछ ने “विभाजनकारी” कहकर आलोचना की। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि “संघ को अपने कार्यों से यह दिखाना चाहिए कि वह वाकई सभी धर्मों का सम्मान करता है।” वहीं, भाजपा नेताओं ने भागवत के वक्तव्य को “राष्ट्रीय एकता का सन्देश” बताया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोहन भागवत का यह बयान आगामी चुनावी माहौल में सामाजिक सौहार्द और धार्मिक पहचान की बहस को नया मोड़ दे सकता है। उनका यह कहना कि “संघ प्रमुखता नहीं चाहता, बल्कि समरसता चाहता है,” आने वाले समय में संघ की छवि को लेकर जनधारणा को भी प्रभावित कर सकता है।