इस्लामिक देश ईरान इन दिनों अपने इतिहास के सबसे भयावह सूखे और जल संकट का सामना कर रहा है। हालात इतने गंभीर हैं कि राष्ट्रपति मसीह अब्दुल्लाही ने मंगलवार को राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि “अगर हालात नहीं सुधरे, तो हमें राजधानी तेहरान को अस्थायी रूप से खाली करना पड़ सकता है।” यह बयान पूरे देश में चिंता और भय का माहौल पैदा कर रहा है।
🔸 लगातार घट रहे जलस्तर से संकट गहराया
ईरान के पर्यावरण मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 70% जलाशय लगभग सूख चुके हैं, और कई बड़े बांधों में पानी का स्तर “खतरे की रेखा” से नीचे पहुंच गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले एक दशक में ईरान में औसत वर्षा 40% तक कम हो गई है। राजधानी तेहरान, जहां करीब एक करोड़ से अधिक लोग रहते हैं, अब पीने के पानी की भीषण कमी झेल रहा है।
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, यह संकट केवल जलवायु परिवर्तन का परिणाम नहीं है, बल्कि अत्यधिक भूजल दोहन, अव्यवस्थित शहरीकरण और कृषि नीति की गलतियों का भी नतीजा है। देश के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में तो कई नदियाँ पूरी तरह सूख चुकी हैं।
🔸 राष्ट्रपति का आपात संदेश
अपने संबोधन में राष्ट्रपति अब्दुल्लाही ने कहा —
“तेहरान और आसपास के इलाकों में पानी की आपूर्ति अब आपात स्थिति में है। यदि बारिश नहीं हुई तो आने वाले हफ्तों में लाखों लोगों को सुरक्षित इलाकों में शिफ्ट करना पड़ सकता है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि देश को “पानी की राष्ट्रीय आपदा” घोषित करने की तैयारी चल रही है। सरकार ने सभी मंत्रालयों को जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, औद्योगिक इकाइयों में पानी की खपत पर सख्त नियंत्रण और गैर-आवश्यक निर्माण गतिविधियों पर अस्थायी प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
🔸 लोगों में बढ़ती बेचैनी
तेहरान और इस्फहान जैसे बड़े शहरों में पानी की सप्लाई दिन में केवल कुछ घंटों के लिए दी जा रही है। नागरिक बोतलबंद पानी पर निर्भर हो गए हैं, जिससे कीमतें आसमान छू रही हैं। कई जगहों पर लोग पानी के टैंकरों के पीछे लंबी कतारों में खड़े दिखाई दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर सरकार की जल प्रबंधन नीतियों की कड़ी आलोचना हो रही है।
🔸 अंतरराष्ट्रीय चिंता और सहायता की उम्मीद
संयुक्त राष्ट्र (UN) और विश्व बैंक ने ईरान की स्थिति पर चिंता जताई है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा है कि अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो यह “मानवीय संकट” में बदल सकती है। कुछ पश्चिम एशियाई देश ईरान को तकनीकी सहायता देने की पेशकश कर चुके हैं, ताकि देश के सूखते जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया जा सके।
ईरान का यह जल संकट केवल एक देश की पर्यावरणीय त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन के दौर में यह साबित करता है कि यदि समय रहते जल संसाधनों का संरक्षण नहीं किया गया, तो आधुनिक शहर भी रहने योग्य नहीं रह जाएंगे।