देश में एक बार फिर धार्मिक प्रतीकों और स्मारकों को लेकर विवाद की स्थिति गहराती दिख रही है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में मस्जिद निर्माण को लेकर उठा विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब हैदराबाद में प्रस्तावित बाबरी मेमोरियल ने माहौल को और संवेदनशील बना दिया है। स्थानीय मुस्लिम संगठनों ने इस स्मारक को “स्मृति और न्याय का प्रतीक” बताते हुए प्रक्रिया आगे बढ़ाने की बात कही है, लेकिन हिंदू संगठनों ने इसे “उकसाने वाली पहल” करार देते हुए कड़ा विरोध शुरू कर दिया है।
सूत्रों के अनुसार, हैदराबाद में जिस स्थल पर बाबरी मेमोरियल के निर्माण की बात चल रही है, वहां एक सामुदायिक सांस्कृतिक केंद्र की योजना पहले से प्रस्तावित थी। संबंधित संगठन अब इसे “ऐतिहासिक स्मारक” के रूप में विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। इस प्रस्ताव में बाबरी विध्वंस की पृष्ठभूमि, उससे जुड़े घटनाक्रम और समुदाय की स्मृतियों को प्रदर्शित करने का विचार शामिल बताया जा रहा है।
हिंदू संगठनों ने राज्य सरकार और नगर प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर आपत्ति जताई है। उनका तर्क है कि इस तरह के स्मारक समाज में तनाव बढ़ा सकते हैं और वर्षों से प्रयासरत सद्भाव के वातावरण को आहत कर सकते हैं। उन्होंने मांग की है कि सरकार इस परियोजना को मंजूरी न दे और यदि प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तो इसे तत्काल रोक दिया जाए।
इसके जवाब में स्थानीय मुस्लिम प्रतिनिधियों का कहना है कि स्मारक का उद्देश्य किसी समुदाय को आहत करना नहीं, बल्कि इतिहास की घटनाओं को संरक्षित करना है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि परियोजना के हर चरण में कानून और प्रशासन की अनुमति को प्राथमिकता दी जाएगी।
राज्य सरकार की ओर से अभी तक आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन प्रशासनिक सूत्रों ने बताया कि परियोजना के दस्तावेजों और भूमि उपयोग से जुड़े प्रावधानों की समीक्षा की जा रही है। किसी भी निर्णय से पहले सुरक्षा पहलुओं और सामाजिक सामंजस्य पर संभावित प्रभाव का आकलन किया जाएगा।
इस मुद्दे के राजनीतिक रंग लेने की संभावना भी तेजी से बढ़ रही है। विपक्षी दलों ने सरकार पर “साम्प्रदायिक माहौल को न संभाल पाने” का आरोप लगाया है, जबकि सत्तापक्ष ने कहा है कि हर कदम कानून के दायरे में और शांति बनाए रखते हुए ही उठाया जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि स्मारकों और धार्मिक स्थलों को लेकर बार-बार उभरते विवाद समाज में गहरी संवेदनशीलता का संकेत हैं। फिलहाल सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि सरकार और स्थानीय प्रशासन इस प्रस्ताव पर क्या अंतिम फैसला लेते हैं।