अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के संकेत मिलते ही यूरोप की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। डोनाल्ड ट्रंप की संभावित वापसी ने नाटो देशों में नई चिंता खड़ी कर दी है। जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड और बाल्टिक देशों को आशंका है कि ट्रंप दोबारा सत्ता में आने पर अमेरिका की सुरक्षा नीतियों में तीखे बदलाव लाने से नहीं हिचकेंगे। वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की अपनी शर्तों और सुरक्षा मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे हैं।
यूरोप की असहजता की सबसे बड़ी वजह ट्रंप की वह नीति है जिसमें वे नाटो को "अमेरिका पर बोझ" बताते रहे हैं। अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने कई बार यूरोपीय देशों पर रक्षा बजट बढ़ाने का दबाव बनाया था। ट्रंप का यह रुख यूरोप को यह संकेत देता है कि यदि वॉशिंगटन की प्राथमिकताएँ बदलती हैं तो महाद्वीप की सुरक्षा व्यवस्था कमजोर पड़ सकती है। विशेष रूप से जर्मनी के लिए यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि उसकी सैन्य क्षमता अभी भी अमेरिकी सुरक्षा छाते पर काफी हद तक निर्भर मानी जाती है।
फ्रांस भी स्थिति को लेकर सतर्क है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पहले ही यूरोपीय "रणनीतिक स्वायत्तता" की बात करते रहे हैं, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने उन्हें भी व्यापक सहयोग के लिए अमेरिका पर निर्भर बना दिया है। यदि ट्रंप नाटो फंडिंग पर कठोर रुख अपनाते हैं, तो पेरिस को अपनी सुरक्षा रणनीति में बड़े बदलाव करने होंगे। बाल्टिक देश—एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया—तो पहले ही रूस की संभावित आक्रामकता का सामना करने को लेकर चिंतित हैं। उन्हें डर है कि अमेरिकी प्रतिबद्धताएँ कमजोर पड़ने पर वे सीधे खतरे के दायरे में आ सकते हैं।
इस पूरे परिदृश्य के बीच यूक्रेन युद्ध सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। ज़ेलेंस्की लगातार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे किसी भी ऐसे समझौते को स्वीकार नहीं करेंगे जिसमें यूक्रेन की संप्रभुता प्रभावित होती हो। वे पश्चिमी देशों से हथियार, आर्थिक सहायता और दीर्घकालिक सुरक्षा गारंटी की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन यूरोपीय देशों को इस बात की चिंता है कि ट्रंप यूक्रेन को मिल रही सहायता को "अंतहीन युद्ध" बताकर कम कर सकते हैं या नई शर्तें जोड़ सकते हैं।
कई विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप की संभावित नीतियों ने यूरोप की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को अनिश्चितता में डाल दिया है। जर्मनी और फ्रांस दोनों ही अब ऐसी रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें वे अमेरिका पर पूर्ण निर्भरता से बच सकें। सैन्य आधुनिकीकरण, संयुक्त यूरोपीय रक्षा फंड और ऊर्जा सुरक्षा पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है।
यूक्रेन भी इस स्थिति को समझ रहा है। हालांकि ज़ेलेंस्की अपनी स्थिति पर कायम हैं, लेकिन वे यूरोप से अधिक गहरे राजनीतिक-सैन्य समर्थन की मांग कर रहे हैं ताकि अमेरिका की नीति में बदलाव का असर युद्ध की दिशा पर न पड़े।
कुल मिलाकर, ट्रंप की संभावित वापसी ने यूरोप की राजनीति, सुरक्षा और कूटनीति पर गहरा प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। महाद्वीप के देश एक ऐसे दौर के लिए तैयार हो रहे हैं जहाँ उन्हें अपनी सुरक्षा की नींव दोबारा परिभाषित करनी पड़ सकती है—और यही अनिश्चितता उनकी सबसे बड़ी चिंता है।