बांग्लादेश में जारी हिंसा ने एक बार फिर क्षेत्रीय स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालिया घटनाक्रम में कट्टरपंथी समूहों का बॉर्डर की ओर मार्च, मंदिरों के बाहर उकसावे भरे नारे और एक छात्र नेता का शव पहुंचते ही भड़की आगजनी ने हालात को और विस्फोटक बना दिया है। स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए भारत ने भी अपनी सीमाओं पर सतर्कता बढ़ा दी है और भारतीय सेना को अलर्ट पर रखा गया है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बांग्लादेश के कई हिस्सों में बीते दिनों से तनाव बना हुआ है। कट्टरपंथी संगठनों ने न केवल सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शन तेज किए, बल्कि धार्मिक स्थलों के बाहर नारेबाजी कर सांप्रदायिक तनाव को हवा देने की कोशिश की। खास तौर पर सीमावर्ती इलाकों में इन गतिविधियों के बढ़ने से सुरक्षा एजेंसियों की चिंता और गहरी हो गई है। आशंका जताई जा रही है कि हिंसा की आड़ में असामाजिक तत्व सीमा पार घुसपैठ या अवैध गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश कर सकते हैं।
तनाव उस समय और बढ़ गया जब हिंसा में मारे गए एक छात्र नेता का शव उसके गृह क्षेत्र पहुंचा। शव के पहुंचते ही गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर तोड़फोड़ और आगजनी शुरू कर दी। कई दुकानों, वाहनों और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया। हालात को काबू में करने के लिए बांग्लादेशी सुरक्षा बलों को अतिरिक्त तैनाती करनी पड़ी और कुछ इलाकों में कर्फ्यू जैसे हालात बन गए।
इन घटनाओं का असर भारत-बांग्लादेश संबंधों और सीमा सुरक्षा पर भी साफ दिख रहा है। भारत ने सीमावर्ती राज्यों में सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी है। भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल (BSF) को हाई अलर्ट पर रखा गया है ताकि किसी भी तरह की घुसपैठ, तस्करी या हिंसक घटना को रोका जा सके। सुरक्षा एजेंसियां लगातार हालात पर नजर बनाए हुए हैं और खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान तेज किया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरपंथ और राजनीतिक अस्थिरता केवल आंतरिक चुनौती नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा पर पड़ सकता है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बांग्लादेश की सरकार हालात को काबू में लाने के लिए ठोस कदम उठाए और कट्टरपंथी तत्वों पर सख्ती करे। वहीं भारत के लिए भी सतर्कता बनाए रखना और कूटनीतिक स्तर पर संवाद जारी रखना बेहद जरूरी है, ताकि सीमा पर शांति और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।