भुपेंद्र शर्मा, चंडीगढ़, 31 अगस्तः पुरुषों में इरेक्टाइल डिस्फंक्शन यानि लिंग का तनाव में न आना आजकल आम बीमारी होती जा रही है। इसके कई कारण हो सकते हैं।
पी.जी.आई. में युरॉलजी विभाग के वरिष्ठ डाक्टर एवं प्रोफेसर संतोष कुमार से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि हमें इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को एक कलंक की तरह बिलकुल नहीं लेना चाहिए और न ही इस से परेशान होकर नीम हकीम के पास जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि देश के हर कोने में आज नॉन क्वालीफाइड कथित सेक्सॉलॉजिस्टों का भी बोलबाला है जो इस बीमारी से ग्रस्त पुरुषों अथवा युवाओं को इलाज के नाम पर न केवल गुमराह करते हैं बल्कि उनसे मोटी रकम भी एंठ लेते हैं और उनका इलाज फिर भी नहीं हो पाता। नतीजा रोगी अंदर ही अंदर घुटता रहता है और किसी से इस रोग का जिक्र तक नहीं करता कई बार तो वह डिप्रेशन में भी चला जाता है और तो और कई बार कई लोगों की तो शादियां भी इस रोग की वजह से टूट जाती हैं तो कई बार जीना मुहाल हो जाता है। प्रो. संतोष का कहना है कि इस रोग से ग्रस्त लोगों को बिलकुल घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका शतप्रतिशत इलाज युरॉलजिस्टों के पास होता है। पी.जी.आई. में वे इस समस्या से ग्रस्त रोगियो का पूरी तरह से इलाज करते हैं पहले यह समस्या 40-50 वर्ष से ज्यादा की उम्र के लोगों को आती थी अब यह छोटी उम्र के युवाओं को भी परेशान करने लगी है।
प्रो. संतोष ने बताया कि इरेक्टाइल डिसफंक्शन कई कारणों से हो सकता है। इनमें हद से ज्यादा मानसिक तनाव रहना, नशों का सेवन करना, डाइबिटीज मेलिटस होना, एथेरोस्क्लेरोसिस नाड़ियों में चर्बी के जमा होना की वजह से ब्लड में कमी का होना और हार्मोनल असंतुलन का होना, हाइपरलिपिमीडिया, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, खून की सप्लाई का कम होना शामिल हैं। इनसे नाड़ियां सूखने लगती है।
उन्होंने बताया कि यह जरूरी नहीं कि हर इरेक्टाइल डिसफंक्शन से ग्रस्त रोगी का इलाज केवल सर्जरी से ही होता है इसमें वे रोगी को दवा और इंजेक्शन से भी ठीक करते हैं मगर जिन्हें दवा अथवा इंजेक्शन से फर्क नहीं पड़ता या उनके लिए उक्त उपयुक्त नहीं है उन्हें भी मायूस होने की जरूरत नहीं है। उनके लिए भी उनके पास इरेक्टाइल डिसफंक्शन का स्थायी इलाज है जिसका नाम है- पेनाइल इंप्लांट।
प्रो. सतोष का कहना है कि आज पेनाइल प्रॉस्थीसिस इंप्लांटेशन दुनिया की सबसे बेहतरीन डिवाइस है, यह इंसान में कुदरती तौर पर सेक्स की क्षमता डिवेल्प करती है।
पेनाइल इंप्लांट दो अलग-अलग प्रकारों में उपलब्ध होते हैं, जिन्हें नॉन-इंफ्लेटेबल इंप्लांट और इंफ्लेटेबल इंप्लांट के नाम से जाना जाता है।
नॉन इंफ्लेटेबल इंप्लांट में स्थायी रूप से तनाव रहता है और इंफ्लेटेबल इंप्लांट में सिलेंडर, रिजरवियर और पंप काम करता है।
प्रो. संतोष ने बताया कि नॉन इंफ्लेटेबल इंप्लांट में दो सिलेंडर होते हैं, जिन्हें लिंग के अंदर लगा दिया जाता है। इस इंप्लांट के लगने के बाद लिंग में स्थायी रूप से तनाव आ जाता है। इसमें यौन गतिविधियां करने के दौरान लिंग को सीधा कर दिया जाता है और बाकी समय लिंग नीचे लटका रहता है।
इसी प्रकार इंफ्लेटेबल इंप्लांट में दो सिलेंडर, एक रिजरवियर और एक पंप होता है। रिजरवियर में नमक वाला पानी होता है। पंप इस नमक वाले पानी को सिलेंडर तक पहुंचा देता है, जिससे इन सिलेंडर में तनाव आ जाता है। उन्होंने बताया कि आज तकनीक ज्यादा विकसित हो चुकी है अतैव इंफ्लेटेबल इंप्लांट भी दो प्रकार के होते हैः-
टू-चैंबर इंफ्लेटेबल इंप्लांट और थ्री-चैंबर इंफ्लेटेबल इंप्लांट
इस इंप्लांट में दो सिलिंडर होते हैं और एक बॉल होता है। पेनाइल के दो पार्ट होते हैं, सर्जरी के दौरान दोनों पार्ट में सिलिंडर डाल दिया जाता है। सिलिंडर पेनाइल के साइज के अनुसार फिट किया जाता है, आमतौर पर दो साइज के सिलिंडर और बॉल होते हैं। दोनों सिलिंडर एक बॉल से जुड़े रहते हैं और सर्जरी के दौरान बॉल या बॉटल पेट के नीचे यूरिन थैली के नीचे बगल में स्पेस बनाकर डाला जाता है। इसमें ऑन और ऑफ करने के लिए एक बटन होता है, यह बटन टेस्टिस के दोनों तरफ होता है। उन्होंने बताया कि नेचुरल इरेक्शन में ब्लड फ्लो से इरेक्शन होता है और पेनाइल में ब्लड का प्रेशर बनता है और इससे इरेक्शन यानी उत्तेजना होती है। जब मरीज इरेक्शन चाहता है, तो बटन प्रेस करता है और इसके बाद बॉटल से पानी निकलकर पेनिस में लगे इंप्लांट में जाने लगता है, जिससे उसमें इरेक्शन हो जाता है और फिर वह सेक्स कर सकता है। जब वह इरेक्शन नहीं चाहता है तो दूसरा बटन प्रेश कर देता है, जिससे पेनाइल के सिलिंडर से पानी निकलकर बॉटल में आकर जमा हो जाता है और इसका पेनिस नीचे इरेक्शन की प्रक्रिया छोड़ देता है।
विशेषज्ञों के अनुसार जिन लोगों ने पेनाइल इंप्लांट सर्जरी करवाई है, उनमें से 90 प्रतिशत लोग इसके रिजल्ट से संतुष्ट होते हैं। आजकल लगाए जाने वाले पेनाइल इंप्लांट डिवाइस 10 से 20 साल तक चलते हैं। जब प्रोस्थेसिस काम करना बंद कर देता है, तो इस डिवाइस को बदल दिया जाता है।
रोगियों की मदद के लिए पी.जी.आई. के युरॉल्जी विभाग में एक व्हाट्सअप न.
गौरतलब है कि पी.जी.आई. में युरॉलजी विभाग के वरिष्ठ डाक्टर एवं प्रोफेसर संतोष कुमार ने इरेक्टाइल डिस्फंक्शन से परेशान रोगियों की मदद के लिए पी.जी.आई. के युरॉल्जी विभाग में एक व्हाट्सअप न. 7347266963 भी दिया है रोगी इस नंबर पर कॉल अथवा मैसेज छोड़ सकते हैं और प्रो. संतोष से अपने रोग संबंधी बातचीत के लिए अप्वाइंटमेंट भी तय कर सकते हैं।
प्रो. संतोष ने यह भी कहा कि जो लोग इस रोग से ग्रस्त नहीं है वे रोजाना कसरत और योगा करके इस समस्या से बच सकते हैं।