भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां भारत एक उभरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था है, जिसकी ऊर्जा मांग प्रतिवर्ष तीव्र गति से बढ़ रही है। जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भरता भारत को न केवल आर्थिक रूप से झटका देती है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी गंभीर संकट पैदा करती है। ऐसे में इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम भारत की हरित ऊर्जा नीति में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है। आइये समझते हैं इथेनॉल और इसकी महत्ता के बारे में। इथेनॉल एक बायोफ्यूल है, जिसे मुख्य रूप से गन्ना, मक्का, चावल आदि जैसे कृषि उत्पादों से प्राप्त किया जाता है। जब इसे पेट्रोल में मिश्रित किया जाता है, तो यह न केवल प्रदूषण को कम करता है, बल्कि तेल आयात पर निर्भरता भी घटाता है। भारत ने वर्ष 2025 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 2024 तक यह दर लगभग 12% तक पहुँच चुकी है, जो सरकार की योजनाओं की सफलता की ओर संकेत करता है। भारत हर वर्ष लाखों करोड़ रुपये कच्चे तेल के आयात पर खर्च करता है। इथेनॉल मिश्रण से इस आयात पर लगाम लगाई जा सकती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 2014 से 2024 तक लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की बचत इथेनॉल उपयोग से हुई है। इसने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को नया आयाम दिया है। इथेनॉल क्लीन बर्निंग फ्यूल है, जिससे गाड़ियों से होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम होता है। यह पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों की दिशा में एक प्रभावी कदम है। भारत के इथेनॉल कार्यक्रम ने 544 लाख मीट्रिक टन सी ओ 2 उत्सर्जन को रोका है, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ है। इथेनॉल उत्पादन में मुख्य कच्चा माल कृषि उपज होती है, विशेषकर गन्ना और मक्का। इससे किसानों को वैकल्पिक आमदनी का स्रोत प्राप्त होता है। वर्ष 2014 से अब तक किसानों को 87,558 करोड़ रुपये इथेनॉल की बिक्री के ज़रिये प्राप्त हुए हैं। इथेनॉल मिश्रण नीति ने फ्लेक्स फ्यूल वाहनों को विकसित करने की दिशा में नवाचार को प्रेरित किया है। ये वाहन ई85 और ई100 जैसे उच्च इथेनॉल मिश्रणों पर चल सकते हैं। सरकार ने 2024 में ई100 ईंधन लॉन्च भी किया है, जो विशेष रूप से उच्च ऑक्टेन इंजनों के लिये है। इथेनॉल आधारित जैव-हब बायोगैस, बायोफर्टिलाइज़र और बायो-एनर्जी के एकीकृत केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। इससे न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं बल्कि संसाधनों का अधिकतम उपयोग भी संभव होता है। सरकार ने इथेनॉल पर जी एस टी घटाकर 5% कर दिया है, ब्याज सब्सिडी योजना शुरू की है और राज्यों के बीच आवाजाही पर नियंत्रण को भी शिथिल किया है। इससे निवेशकों का विश्वास बढ़ा है और उत्पादन क्षमता में विस्तार हुआ है। सार्वजनिक तेल कंपनियों ने अब तक 1.45 ट्रिलियन रुपये का इथेनॉल खरीदा है। इथेनॉल सम्मिश्रण के सामने कई चुनौतियाँ भी है। गन्ना, मक्का और चावल जैसे खाद्यान्न फसलों को ईंधन के लिये उपयोग में लेने से खाद्य आपूर्ति पर असर पड़ता है। इससे मुद्रास्फीति और भोजन की कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। वर्ष 2024 में भारत मक्के का शुद्ध आयातक बन गया – यह संकेत है कि इथेनॉल उत्पादन के कारण खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है। गन्ने से एक लीटर इथेनॉल बनाने में लगभग 2,860 लीटर पानी लगता है। यह आँकड़ा जल संकट वाले राज्यों के लिये विशेष रूप से चिंताजनक है। नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि यह दीर्घकालीन जल सुरक्षा के लिये खतरा बन सकता है। गन्ने और खाद्यान्न की अनियमित उपलब्धता से इथेनॉल उत्पादन बाधित होता है। 2024 में कीट प्रकोप और विलंबित मानसून के कारण गन्ना उत्पादन में गिरावट आई, जिससे इथेनॉल लक्ष्य अधर में पड़ गए। ई 20 जैसे मिश्रणों से उन गाड़ियों की ईंधन दक्षता 6–7% तक कम हो जाती है, जो इसके लिए डिजाइन नहीं हैं। इससे उपभोक्ताओं की जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। बार-बार ईंधन भरवाने की ज़रूरत और संभावित मरम्मत खर्च भी उपभोक्ताओं के लिए चिंता का विषय हैं। अभी भी भारत के कई राज्यों में इथेनॉल भंडारण, परिवहन और मिश्रण की सुविधाएं सीमित हैं। राज्य स्तरीय नियंत्रण और भिन्न नीतियों के कारण इथेनॉल की निर्बाध आपूर्ति में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। भविष्य में हम इस के समाधान के लिए कई कदम उठा सकते हैं। द्वितीय पीढ़ी की इथेनॉल तकनीकें (2 जी इथेनॉल) – जो कृषि अवशेषों से ईंधन बनाती हैं – को तेजी से अपनाने की आवश्यकता है। इससे खाद्यान्न संकट से भी बचा जा सकता है। फ्लेक्स फ्यूल वाहनों का उत्पादन और उपयोग बढ़ाया जाए ताकि उच्च इथेनॉल मिश्रणों का अधिक प्रभावी उपयोग हो सके। एकीकृत नीति निर्माण, जिसमें जल संरक्षण, कृषि नीति और ऊर्जा नीति को जोड़कर योजना बनाई जाए। इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेडेशन पर केंद्रित निवेश से लॉजिस्टिक और भंडारण की दिक्कतें कम होंगी। निजी क्षेत्र और स्टार्टअप्स को प्रेरित कर जैव ईंधन के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देना होगा। अंत में कह सकते हैं कि इथेनॉल भारत को आत्मनिर्भर ऊर्जा राष्ट्र बनाने की दिशा में एक बेहद प्रभावशाली माध्यम बन चुका है। यह न केवल आर्थिक और पर्यावरणीय संतुलन स्थापित करता है, बल्कि किसानों के जीवन में भी परिवर्तन लाने की क्षमता रखता है। हालांकि इसके सामने कई चुनौतियाँ हैं – जैसे खाद्य सुरक्षा, जल संकट और आपूर्ति श्रृंखला की अस्थिरता – लेकिन नीति, नवाचार और निवेश के माध्यम से इनका समाधान संभव है। यदि भारत एक सतत, समावेशी और टिकाऊ ऊर्जा मॉडल बनाना चाहता है, तो इथेनॉल इसमें परिवर्तन की चाबी साबित हो सकता है।