भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां इसमें कोई दो राय नहीं है कि पश्चिम एशिया के साथ भारत के रिश्तों में खाड़ी सहयोग परिषद (जी सी सी) की भूमिका निरंतर मजबूत होती जा रही है। भारत की "वेस्ट एशिया नीति" का प्रमुख आधार बन चुके ये संबंध केवल कच्चे तेल की आपूर्ति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह आर्थिक, रणनीतिक, सांस्कृतिक और डिजिटल एकीकरण तक विस्तारित हो चुके हैं। वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता और ऊर्जा आपूर्ति संकट के समय, भारत और जी सी सी के रिश्ते क्षेत्रीय स्थिरता, ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक सहयोग का महत्त्वपूर्ण आधार बनते जा रहे हैं। आइये समझते हैं कि आखिर जी सी सी होती क्या है। खाड़ी सहयोग परिषद (जी सी सी) की स्थापना वर्ष 1981 में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, कुवैत और ओमान—इन छह खाड़ी देशों द्वारा की गई थी। ये देश साझा इस्लामी विरासत, भाषाई समानता और जनजातीय संस्कृति से जुड़े हुए हैं। जी सी सी का उद्देश्य अपने सदस्य देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा मामलों में समन्वय स्थापित करना है। इसकी सर्वोच्च संस्था 'सुप्रीम काउंसिल' है, जबकि कार्यकारी निर्णय 'मंत्री परिषद' और 'सचिवालय' द्वारा लिए जाते हैं। इसका मुख्यालय रियाद, सऊदी अरब में स्थित है। फारस की खाड़ी से लगे ये देश यूरोप, एशिया और अफ्रीका को जोड़ने वाले महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर स्थित हैं। यहाँ के जलमार्ग – विशेषकर होर्मुज जलडमरूमध्य – विश्व के तेल व्यापार के लिये नाड़ी समान हैं। भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा जी सी सी देशों से पूरा होता है। भारत अपने कुल कच्चे तेल का लगभग 60% और प्राकृतिक गैस का 70% आयात इन्हीं देशों से करता है। सऊदी अरब और यू ए ई भारत के सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ता हैं। कतर, भारत की तरलीकृत प्राकृतिक गैस की 48% आपूर्ति करता है। यह आपूर्ति न केवल भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को शक्ति प्रदान करती है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजारों में स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक है। वर्ष 2023-24 में भारत और जी सी सी के बीच द्विपक्षीय व्यापार 161 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गया। इसमें यू ए ई (85 अरब डॉलर) और सऊदी अरब (52 अरब डॉलर) अग्रणी साझेदार रहे। जी सी सी अब भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार समूह बन चुका है। गहनों, पेट्रोलियम उत्पादों, कृषि वस्तुओं और मशीनरी में प्रमुख व्यापार होता है। जी सी सी देशों में लगभग 90 लाख भारतीय प्रवासी रहते हैं। वे हर वर्ष भारत में 50 अरब डॉलर से अधिक की विदेशी मुद्रा भेजते हैं।भारतीय प्रवासी मुख्यतः निर्माण, हेल्थकेयर, सेवा, शिक्षा और रिटेल जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। इन प्रवासियों ने दोनों क्षेत्रों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को गहराई दी है।भारत और जी सी सी देशों के बीच सामरिक सहयोग भी लगातार सशक्त हो रहा है। भारत ने:'अल मोहम्मद-अल हिंदी' जैसे नौसैनिक अभ्यास सऊदी अरब के साथ शुरू किए हैं।ओमान के दूक्म बंदरगाह पर लॉजिस्टिक्स और नेवी बेस सुविधा प्राप्त की है।कतर और बहरीन के साथ संयुक्त समुद्री प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए हैं।इन साझेदारियों से हिंद महासागर और अरब सागर में भारत की रणनीतिक पकड़ मजबूत हुई है। जी सी सी के सॉवरेन वेल्थ फंड भारत में प्रौद्योगिकी, बुनियादी ढाँचा, नवीकरणीय ऊर्जा और हेल्थटेक जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश कर रहे हैं। कतर की योजना 2030 तक भारत में 10 अरब डॉलर निवेश की है।भारत बहरीन में छठा सबसे बड़ा निवेशक है, जहाँ वह फिनटेक, रियल एस्टेट, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में केंद्रित है। भारत की यू पी आई और रुपे कार्ड सेवाओं को यू ए ई और ओमान के डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म से जोड़ा जा चुका है।इससे पर्यटन, खुदरा और क्रॉस-बॉर्डर लेन-देन में तेजी आई है।आने वाले समय में यह संपर्क फिनटेक स्टार्टअप्स और डिजिटल बैंकिंग के लिये नई राहें खोलेगा।भारतीय संस्कृति का खाड़ी देशों में व्यापक प्रभाव है। कई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और सांस्कृतिक संगठन वहाँ सक्रिय हैं। बी ए पी एस मंदिर (अबू धाबी) खाड़ी क्षेत्र का पहला पारंपरिक हिंदू मंदिर है। श्रीनाथजी मंदिर (बहरीन) और लगभग 7,500 से अधिक भारतीय कंपनियाँ जी सी सी में कार्यरत हैं। यह सांस्कृतिक जुड़ाव आपसी समझ, सम्मान और धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहन देता है। सऊदी अरब और यू ए ई ने अपने आर्थिक मॉडल को विविधीकृत करने के लिए "विजन 2030" नीति अपनाई है, जो नवीकरणीय ऊर्जा, स्टार्टअप्स और ए आई आधारित तकनीकों को बढ़ावा देती है।भारत की डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और ग्रीन हाइड्रोजन मिशन इस रणनीति के साथ पूरी तरह मेल खाते हैं। भारतीय आई टी कंपनियाँ और सौर ऊर्जा क्षेत्र की इकाइयाँ इन परियोजनाओं में जी सी सी के प्रमुख भागीदार बन रही हैं। आई एम ई सी , भारत, खाड़ी और यूरोप को जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विकल्प बनकर उभरी है। यह गलियारा भारत से यू ए ई होते हुए यूरोप तक माल और ऊर्जा पहुँचाने का वैकल्पिक मार्ग बनेगा। इससे विकासशील देशों की आपूर्ति श्रृंखला अधिक लचीली और कुशल होगी। भारत और जी सी सी के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर वार्ता जारी है, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय वस्तु, सेवा और डिजिटल व्यापार को बढ़ावा देना है। भारत की खाड़ी नीति, एक संतुलित कूटनीति पर आधारित है: एक ओर वह ईरान और इजरायल जैसे विरोधी ध्रुवों से अपने संबंध बनाए रखता है। वहीं दूसरी ओर, भारत ने जी सी सी, अमेरिका और रूस से भी प्रगाढ़ रणनीतिक सहयोग स्थापित किया है। इस बहुस्तरीय संतुलन नीति ने भारत को पश्चिम एशिया में 'साझा हितों का सेतु' बना दिया है। इसमें कई चुनौतियां भी हैं यमन, ईरान और गाज़ा में राजनीतिक अस्थिरता।तेल की कीमतों में अस्थिरता और वैश्विक आपूर्ति संकट। भारत और जी सी सी में प्रवासी मजदूरों के अधिकारों से जुड़ी चिंताएँ। इसी प्रकार उनके समाधान पर अवसर भी मौजूद जलवायु परिवर्तन से लड़ने में संयुक्त प्रयास। ए आई, अंतरिक्ष सहयोग, साइबर सुरक्षा और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में भागीदारी। ब्लू इकॉनमी, हेल्थ डिप्लोमेसी और डिफेंस टेक्नोलॉजी में संयुक्त निवेश। अंत में कह सकते हैं भारत और जी सी सी देशों के बीच संबंध अब केवल तेल और व्यापार तक सीमित नहीं हैं। ये संबंध एक सामरिक साझेदारी का रूप ले चुके हैं, जो ऊर्जा सुरक्षा, डिजिटल एकीकरण, आर्थिक विकास और सामरिक स्थिरता के चार स्तंभों पर आधारित है।