भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां इसमें कोई दो राय नहीं है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस 21वीं सदी की वह तकनीकी क्रांति है जो न केवल औद्योगिक उत्पादन को नया स्वरूप दे रही है, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और सार्वजनिक प्रशासन जैसे क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन ला रही है। भारत, जिसकी युवा आबादी, डिजिटल बुनियादी ढांचे और नवाचार क्षमता दुनिया में सबसे तेज़ी से उभरती है, अब इस परिवर्तन की अगुवाई करने की तैयारी कर रहा है। ए आई के माध्यम से भारत अब सिर्फ तकनीक का उपभोक्ता नहीं बल्कि निर्माता और निर्यातक बनने की राह पर अग्रसर है। आइये समझते हैं भारत के ए आई मिशन के बारे में जिसमें भारत की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ग्लोबल हब बनने की झलक नजर आती है। भारत सरकार ने हाल ही में एक ऐतिहासिक पहल के तहत "इंडिया ए आई मिशन" की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य है भारत को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में वैश्विक नेता बनाना। यह मिशन इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसमें ₹10,371 करोड़ का निवेश प्रस्तावित है। इंडिया ए आई मिशन में 6 प्रमुख घटक शामिल हैं: इंडिया ए आई कंप्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: यह देशभर में 10,000 से अधिक जी पी यू आधारित हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग सिस्टम की स्थापना करेगा, जिससे ए आई प्रशिक्षण, मॉडल निर्माण और बड़े पैमाने पर इनोवेशन संभव होगा। इंडिया ए आई इनोवेशन सेंटर: यह एक अग्रणी शोध एवं विकास इकाई होगी जहां उन्नत जनरेटिव ए आई मॉडल और भाषा मॉडल विकसित किए जाएंगे। इंडिया ए आई डैटासेट प्लेटफॉर्म: एक केंद्रीकृत डाटा एक्सेस मंच तैयार किया जाएगा जो विभिन्न मंत्रालयों, एजेंसियों और निजी क्षेत्रों के डाटा को एकत्रित कर एआई नवाचार को बल देगा। ए आई एप्लिकेशन डेवलपमेंट पहल: स्वास्थ्य, कृषि, न्याय, शिक्षा और शहरी प्रशासन जैसे क्षेत्रों के लिए एआई-आधारित समाधान विकसित किए जाएंगे। स्टार्टअप फंडिंग: शुरुआती चरण के एआई स्टार्टअप्स को अनुदान और निवेश सहायता प्रदान की जाएगी ताकि नवाचार को प्रोत्साहित किया जा सके।इंडिया ए आई फ्यूचरस्किल पहल: यह लाखों युवाओं को ए आई, मशीन लर्निंग, डेटा एनालिटिक्स जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित करेगा जिससे भविष्य की कार्यशक्ति तैयार हो।भारत ने पिछले दशक में जो डिजिटल अवसंरचना खड़ी की है, उसने एआई अपनाने को सहज बना दिया है। सरकार ने डिजिटल पब्लिक गुड्स को विकसित करने में वैश्विक नेतृत्व किया है, और इन्हीं ढांचों पर अब एआई को एकीकृत कर सेवा वितरण को और भी अधिक कुशल, पारदर्शी और समावेशी बनाया जा रहा है। उदाहरण के लिए: स्वास्थ्य: आयुषमान भारत डिजिटल मिशन के तहत मरीजों का इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है, जिसे एआई आधारित विश्लेषण द्वारा रोगों की पहचान में उपयोग किया जा सकता है।कृषि: किसान कॉल सेंटर, मौसम पूर्वानुमान और भूमि डाटा को एआई से जोड़कर फसल उत्पादन और सिंचाई को बेहतर बनाया जा रहा है।शिक्षा: छात्र की सीखने की गति के अनुसार पाठ्यवस्तु को अनुकूल करने के लिए अनुकूलन एल्गोरिद्म का उपयोग। वर्तमान में अमेरिका और चीन जैसे देश एआई अनुसंधान और व्यापार में शीर्ष स्थान पर हैं, लेकिन भारत ने जिस प्रकार से डिजिटल समावेशन किया है, वह इसे एक विशेष स्थान देता है। भारत की बहुभाषीय, बहु-सांस्कृतिक विविधता एआई के लिए एक जीवंत प्रयोगशाला बन चुकी है।मौजूदा हालात में भारत की बात करें तो 4,500 से अधिक एआई स्टार्टअप्स कार्यरत हैं, 30+ यूनिकॉर्न्स ने एआई को अपने उत्पाद/सेवाओं में एकीकृत किया है, 90+ उच्च शिक्षा संस्थान एआई, एम एल और डेटा साइंस की पढ़ाई करवा रहे हैं। अब बात करते हैं रणनीतिक भागीदारी और वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका की। भारत अब वैश्विक मंचों पर एआई नीति निर्माण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। जी 20 सम्मेलन के दौरान भारत ने डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और एआई नैतिकता पर विशेष ध्यान दिलवाया। डिजिटल समावेशन, डेटा की संप्रभुता और भरोसेमंद एआई विकास जैसे सिद्धांतों को बढ़ावा देकर भारत वैश्विक एआई अनुशासन तय करने में सहयोग दे रहा है। एआई में भारत की प्रमुख चुनौतियाँ भी हैं। डेटा सुरक्षा और गोपनीयता: अभी भारत में व्यक्तिगत डेटा सुरक्षा कानून पूरी तरह से लागू नहीं हुए हैं।डिजिटल डिवाइड: ग्रामीण और शहरी भारत के बीच डिजिटल पहुंच में असमानता एआई के समावेशी विकास में बाधा बन सकती है।भाषाई विविधता: भारत की भाषाई विविधता के अनुरूप जनरेटिव एआई मॉडल तैयार करना एक जटिल कार्य है। एआई प्रतिभा की कमी: प्रशिक्षित और अनुभवी एआई प्रोफेशनल्स की मांग तेज़ी से बढ़ रही है लेकिन आपूर्ति सीमित है। इन चुनौतियों के मद्देनजर समाधान और सरकारी प्रयास भी हो रहे हैं। भाषिनी परियोजना: भारत सरकार की यह पहल है जो भाषाई विविधता को एआई के ज़रिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जोड़ने का प्रयास कर रही है। एआई शिक्षा को स्कूल-कॉलेज पाठ्यक्रम में शामिल करना: एन सी ई आर टी और यू जी सी एआई आधारित विषयों को नियमित शिक्षा प्रणाली में शामिल कर रहे हैं। एआई के आने से पारंपरिक नौकरियों में बदलाव निश्चित है, लेकिन यह भी स्पष्ट होता जा रहा है कि एआई खुद एक नया रोजगार सृजनकर्ता बनेगा। भारत में अनुमान है कि 2026 तक एआई से जुड़े क्षेत्रों में 20 लाख से अधिक नई नौकरियाँ पैदा होंगी:डेटा एनालिस्ट,मशीन लर्निंग इंजीनियर, भाषा मॉडल ट्रैनर, एआई नैतिकता सलाहकार, साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञ। भारत का दृष्टिकोण केवल तकनीकी उत्कृष्टता पर आधारित नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने पर भी केंद्रित है कि एआई का विकास नैतिक, न्यायपूर्ण और समावेशी हो। इसके तहत: सुनिश्चित किया जा रहा है कि एआई एल्गोरिद्म किसी वर्ग, जाति, लिंग या भाषा के विरुद्ध भेदभाव न करें। प्रत्येक निर्णय का पारदर्शी और स्पष्ट तर्क हो ताकि उपयोगकर्ता को भरोसा बना रहे। नीति निर्माता, डेवलपर और उपभोक्ता—सभी की जवाबदेही सुनिश्चित की जा रही है। अंत में कह सकते हैं कि एआई भारत के लिए केवल तकनीकी नवाचार नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक पुनर्निर्माण का साधन बन सकता है। इंडिया ए आई मिशन के माध्यम से भारत अब वैश्विक एआई मानचित्र पर अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। सही निवेश, नीति, भागीदारी और प्रशिक्षण के साथ भारत वह भूमिका निभा सकता है जो औद्योगिक क्रांति के दौरान ब्रिटेन ने निभाई थी—एक प्रर्वतक, निर्माता और मार्गदर्शक की। यदि इस दिशा में भारत अपने विजन पर अडिग रहा तो आने वाला दशक निश्चित रूप से भारत के लिए " एआई पावर्ड डैकेड" बन जाएगा।