भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां भारत आज एक ऐसे दौर में प्रवेश कर चुका है जहाँ वह केवल 'बाजार' नहीं बल्कि 'विनिर्माण और निर्यात हब' बनने की दिशा में अग्रसर है। भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक निर्यात को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचाना है, और इस दिशा में सबसे अहम भूमिका निभाता है – लॉजिस्टिक्स सेक्टर।दुनिया में आपूर्ति शृंखला की पुनःसंरचना, भू-राजनीतिक तनावों और तकनीकी बदलावों के बीच, लॉजिस्टिक्स दक्षता केवल सुविधाजनक नहीं रही, बल्कि प्रतिस्पर्धा और आर्थिक नेतृत्व का अनिवार्य स्तंभ बन गई है।आइये समझते हैं लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की संरचना और महत्व के बारे में। भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र आज लगभग 14.4% जी डी पी में योगदान देता है और करीब 2.2 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से रोजगार देता है। वर्ष 2023 में इसका अनुमानित मूल्य 338 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो 2030 तक 800 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की संभावना है।हालाँकि इस क्षेत्र का 90% हिस्सा अब भी असंगठित है, लेकिन हाल की सरकारी पहलों जैसे पी एम गति शक्ति योजना, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति, और यूलिप ने इसे संगठित और प्रतिस्पर्धी रूप देने की नींव रख दी है। वैश्विक व्यापार में लॉजिस्टिक्स का रणनीतिक महत्व भी किसी से छिपा नहीं है। विश्व बैंक के अनुसार, लॉजिस्टिक्स दक्षता में सुधार से विकासशील देशों का व्यापार 15% तक बढ़ाया जा सकता है।कुशल लॉजिस्टिक्स से परिवहन लागत घटती है, डिलीवरी तेज होती है और ग्राहक संतोष बढ़ता है।जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट एस ई जैड जैसे उदाहरण भारत के निर्यात को मजबूत करने में सफल रहे हैं।लॉजिस्टिक्स पार्कों और एकीकृत भंडारण की मदद से निर्यात समय में 15-20% की कमी आई है। ए आई, आई ओ टी और रियल टाइम ट्रैकिंग जैसे उपकरण आज लॉजिस्टिक्स का चेहरा बदल रहे हैं।डबल्यू टी ओ के अनुसार, डिजिटल व्यापार सुविधा अपनाने से व्यापार लागत में 14.3% तक की कमी संभव है।भारत ने लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करने के लिए वित्त वर्ष 2024-25 में 133 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है।सागरमाला परियोजना के तहत बंदरगाहों को औद्योगिक क्लस्टरों से जोड़ा जा रहा है। भारत अगले 5 वर्षों में 20 लाख युवाओं को लॉजिस्टिक्स कौशल से लैस करने की योजना पर काम कर रहा है। लॉजिस्टिक्स स्टार्टअप्स जैसे देल्हीवेरी, ब्लैक बक, रीविगो तकनीकी नवाचार ला रहे हैं। भारत की रसद रणनीति की बात करें तो नीतिगत, संरचनात्मक और डिजिटल सुधार पर ध्यान देना खासा आवश्यक है। इसका उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को जी डी पी के 13-14% से घटाकर 8% करना। जबकि फोकस सरलीकरण, मानकीकरण और डिजिटल एकीकरण है। पी एम गति शक्ति - राष्ट्रीय मास्टर प्लान के तहत यह योजना सड़क, रेल, जलमार्ग और हवाई मार्ग को एक ही प्लेटफॉर्म पर एकीकृत करती है। 1300 से अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ इस प्लेटफॉर्म से जोड़ी गई हैं। यूलिप के मद्देनजर यह 30+ सरकारी लॉजिस्टिक्स डेटाबेस को जोड़ने वाला डिजिटल गेटवे है। रियल टाइम ट्रैकिंग, एआई आधारित निर्णय, और आपूर्ति शृंखला दृश्यता को बेहतर बनाता है।लॉजिस्टिक्स डाटा बैंक में भारत के प्रमुख बंदरगाहों और रेलमार्गों पर 3000 से अधिक आर एफ आई डी रीडर्स लगाए गए हैं। इससे कंटेनरों की गति, रुकने का समय और राज्यवार प्रदर्शन का डेटा प्राप्त होता है।इसमें कई गंभीर चुनौतियां भी हैं। खंडित मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी यानि सड़क, रेल, वायु और जलमार्ग के बीच प्रभावी समन्वय की कमी लॉजिस्टिक्स समय बढ़ाती है। तकनीक अपनाने में असमानता यानि छोटे ट्रक मालिक और गोदाम ऑपरेटर अभी भी तकनीक का सीमित उपयोग करते हैं।अपर्याप्त बंदरगाह आधारित औद्योगिक क्षेत्र यानि कई बंदरगाहों पर अब भी कोल्ड स्टोरेज, पैकेजिंग जैसी सुविधाओं की कमी है। इसी प्रकार मानव संसाधन में कौशल अंतराल में डिजिटली सक्षम कार्यबल की मांग के बावजूद पर्याप्त प्रशिक्षण संस्थानों की कमी है।भारत की लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने के लिये कई रणनीतियाँ बनाई जा सकती हैं। सेक्टर-विशिष्ट लॉजिस्टिक्स पार्कः इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, वस्त्र जैसे क्षेत्रों के लिये डेडिकेटेड लॉजिस्टिक्स हब विकसित करने होंगे। एआई-संचालित सीमा शुल्क प्रणालीः स्मार्ट बोर्डर कंट्रोल और पेपरलेस क्लियरेंस से समय और लागत में कमी लाई जा सकती है। हरित लॉजिस्टिक्सः ई-वाहन, सौर ऊर्जा आधारित वेयरहाउस और कार्बन फुटप्रिंट निगरानी प्रणाली को बढ़ावा देना होगा। पी पी पी मॉडल में निवेश को बढ़ावा।सार्वजनिक-निजी भागीदारी से रेलवे फ्रेट कॉरिडोर, स्मार्ट वेयरहाउस और ट्रक टर्मिनलों का निर्माण तेज़ हो सकता है। डिजिटल ट्विन और पूर्वानुमान विश्लेषणः ए आई-एम एल आधारित मॉडल से डिमांड की भविष्यवाणी और सप्लाई चेन लचीलापन बेहतर हो सकता है।अंत में कह सकते हैं। लॉजिस्टिक्स भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा की कुंजी है।भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र न केवल एक सपोर्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर है, बल्कि यह देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व का आधार बनता जा रहा है। जहाँ एक ओर पी एम गति शक्ति, एन एल पी, और यूलिप जैसी योजनाओं ने दिशा और ढांचा दिया है, वहीं भारत को अगला कदम तकनीक, कौशल और नवाचार को और तीव्र गति से अपनाने का उठाना होगा। यदि भारत को ‘विश्व कारखाना’ बनना है, तो रसद दक्षता को केवल एक नीति नहीं, बल्कि रणनीति के मूल में रखना होगा।