भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इस में कोई दो राय नहीं है कि भारत वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अग्रसर है। इस महत्वाकांक्षा को साकार करने के लिए एक मजबूत, सुव्यवस्थित और एकीकृत शहरी नेटवर्क की आवश्यकता है। परंतु वर्तमान में देश की शहरी विकास रणनीति दो परस्पर विरोधी प्रतिमानों—ग्रीनफील्ड शहर (जैसे अमरावती) और ब्राउनफील्ड सुधारों—के बीच उलझी हुई प्रतीत होती है। इससे योजना और निवेश में भ्रम की स्थिति बनी हुई है, जिससे अनियंत्रित शहरी विस्तार, अवसंरचना पर बढ़ता दबाव और शासन की जटिलताएं उत्पन्न हो रही हैं। आइये समझते हैं भारत में तीव्र शहरी विकास के प्रमुख कारकों के बारे में। जनांकिकीय बदलाव और ग्रामीण-शहरी प्रवासनः भारत में बढ़ती शहरी जनसंख्या और बेहतर जीवन की चाहत ने ग्रामीण क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन को प्रोत्साहित किया है। 2011 में शहरी जनसंख्या 31% थी, जो 2036 तक 40% तक पहुँचने का अनुमान है—यानी लगभग 600 मिलियन लोग। यह शहरों पर आवास, रोजगार, परिवहन और जल आपूर्ति जैसी मूलभूत सेवाओं की मांग को बढ़ा रहा है। आर्थिक संरचना में बदलावः कृषि से उद्योग और सेवा क्षेत्र की ओर संक्रमण के चलते शहरी केंद्र आर्थिक गतिविधियों के केंद्र बनते जा रहे हैं। वर्तमान में भारत के शहर जी डी पी का लगभग 63% योगदान दे रहे हैं, जो 2030 तक बढ़कर 75% हो सकता है। स्मार्ट सिटी मिशन और अमृत जैसी योजनाएं, टियर-2 और टियर-3 शहरों को सशक्त कर रही हैं। सशक्त सरकारी योजनाएः भारत सरकार की कई योजनाएं जैसे–स्मार्ट सिटी मिशन (8000+ परियोजनाएं), अमृत. पी एम ओ वाई-आर्बन-शहरों को आधुनिक, टिकाऊ और नागरिकोन्मुखी बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य शहरों को केवल आवास और सेवाओं का केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक समावेशन और नवाचार का केंद्र बनाना है। तकनीकी नवाचार और स्मार्ट समाधानः शहरों में अब ए आई, आई ओ टी और बिग डाटा एनालीटिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग बढ़ा है। पुणे की सी एन जी बस सेवा, वडोदरा का एकीकृत कमांड सेंटर—शहरी प्रबंधन को डिजिटल बना रहे हैं। स्मार्ट जल/अपशिष्ट प्रबंधन और डिजिटल ट्रैफिक सिस्टम, संवहनीय शहरीकरण के रास्ते खोलते हैं। शहरीकरण को विकास रणनीति में शामिल करना की बात करें तो भारत की 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना शहरों के बिना अधूरा है।'वोकल फॉर लोकल' और स्टार्टअप इंडिया जैसे अभियानों के जरिए, शहरों को स्थानीय नवाचार केंद्र के रूप में उभारने का प्रयास जारी है। भारत के शहरी विकास की प्रमुख समस्याएं भी हैं जैसे बुनियादी अवसंरचना की कमीः तेजी से बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में अवसंरचना का विकास नहीं हो पा रहा है। शहरों में आवास, साफ पानी, स्वच्छता और सार्वजनिक परिवहन की भारी कमी है। 2011-18 के बीच भारत ने शहरी अवसंरचना में जी डी पी का औसतन 0.6% निवेश किया, जबकि न्यूनतम आवश्यकता 1.2% थी। खंडित योजना और विकास दृष्टिकोणः भारत की शहरी नीति दो ध्रुवों पर झूलती है—ग्रीनफील्ड परियोजनाएं जैसे अमरावती और पारंपरिक शहरों का ब्राउनफील्ड विकास। यह खंडित दृष्टिकोण परिवहन लागत, भूमि उपयोग संघर्ष, और पर्यावरणीय गिरावट को जन्म देता है।सीमित वित्तीय संसाधनः भारत के शहरी स्थानीय निकाय वित्तीय दृष्टि से कमज़ोर हैं।शहरी अवसंरचना का 72% हिस्सा सरकारें फंड करती हैं, पर निजी भागीदारी महज़ 5% है। नगर निगम बॉन्ड, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और नवाचार आधारित वित्तीय उपकरण अब भी प्रारंभिक अवस्था में हैं। पर्यावरणीय तनावः भारत के कई शहर जल संकट, वायु प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन की असफलता, और जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 60 करोड़ लोग गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं। अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण (सूरत) और जल प्रबंधन (धरमपुरी) जैसे मॉडल बहुत सीमित हैं। डेटा और प्रौद्योगिकी में असमानताः स्मार्ट शहरीकरण के लिए आवश्यक डिजिटल डेटा संग्रह, निगरानी और विश्लेषण में देश अभी पिछड़ा है। इससे नीतिगत निर्णयों और वास्तविक जमीनी क्रियान्वयन में अंतर बना रहता है। गर हम इनके समाधान पर गौर करें तो इसके लिए एकीकृत राष्ट्रीय शहरी रणनीति की आवश्यकता महसूस होती दिखती है। शहरी विकास का पुनर्गठनः भारत को चाहिए कि वह एकीकृत शहरी नेटवर्क की कल्पना को साकार करे—जो केवल महानगरों पर आधारित न हो, बल्कि टियर-2 और टियर-3 शहरों को भी साथ ले।इस नेटवर्क को आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक रूप से टिकाऊ बनाया जाए। नीति और नियोजन का समन्वयः मल्टी-लेवल प्लानिंग फ्रेमवर्क तैयार किया जाए जो राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर परस्पर जुड़ा हो। शहरों में लैंड यूज़ प्लानिंग, मास ट्रांजिट, डिजिटल सर्विस डिलीवरी और हरित विकास का समन्वय आवश्यक है। वित्तीय नवाचारः नगर निगम बांड, इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट और पी पी पी मॉडल को बढ़ावा दिया जाए।निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए स्थिर नीतिगत माहौल और जोखिम में कमी लाना अनिवार्य है। पर्यावरणीय स्थायित्वः हर शहर में एकीकृत पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली की स्थापना की जाए। जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन, हरित आवास और कार्बन न्यूट्रल इनिशिएटिव पर बल दिया जाए। डिजिटल सशक्तिकरण और स्मार्ट गवर्नेंसः शहरों को डेटा-संचालित निर्णय प्रणाली के साथ जोड़ना होगा। नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु डिजिटल मंचों और मोबाइल ऐप का विस्तार जरूरी है। भारत का विकसित राष्ट्र बनने का सपना तभी साकार होगा जब हमारे शहर सुनियोजित, सशक्त, समावेशी और संवहनीय बनेंगे। इसके लिए केवल नवाचार और पूंजी निवेश ही नहीं, बल्कि एक दृढ़, समन्वित और एकीकृत राष्ट्रीय शहरी नीति की आवश्यकता है। शहरों को आर्थिक विकास के इंजन, सांस्कृतिक विविधता के केंद्र और पर्यावरणीय संतुलन के प्रहरी के रूप में ढालना होगा। यदि भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प रखता है, तो उसे शहरीकरण को अवसर के रूप में देखते हुए, एकीकृत शहरी नेटवर्क की स्थापना को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना ही होगा।