भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इस में कोई दो राय नहीं है कि 21वीं सदी में डेटा को नया तेल कहा जाता है, लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक और विविधता से भरे देश के संदर्भ में यह केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि जन-कल्याण का औजार भी है। डिजिटल इंडिया, यू पी आई, आधार और डी बी टी जैसी योजनाओं के ज़रिये भारत में डेटा का संग्रहण और उपयोग अभूतपूर्व स्तर तक पहुँचा है। इस डिजिटल विस्तार के केंद्र में "डेटा गवर्नेंस" की अवधारणा है, जो न केवल निजता की रक्षा करती है बल्कि नीति-निर्माण, सार्वजनिक सेवाओं और नवाचार को सशक्त बनाती है। आईये विस्तर से समझते हैं डेटा की भूमिका के बारे में। डिजिटल डेटा आज हर क्षेत्र की रीढ़ बन चुका है। भारत में आधार की 1.3 अरब से अधिक बायोमेट्रिक पहचानें विश्व की सबसे बड़ी डिजिटल पहचान प्रणाली का उदाहरण हैं। यह ई-केवाईसी, डिजिटल भुगतान और डी बी टी को सरल बनाता है। इससे सरकारी योजनाओं की पारदर्शिता, निजी सेवाओं की वैयक्तिकरण और प्रशासनिक निर्णयों की दक्षता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। सरकारी विभागों द्वारा संचित सूक्ष्म स्तर पर विभाजित डेटासेट नीति निर्माण में क्रांति ला रहे हैं। जैसे यू डी आई एस ई प्लस ने 2023-24 में 15 लाख स्कूलों का विवरण रिकॉर्ड किया, जिसमें छात्र नामांकन, शिक्षक उपस्थिति, अवसंरचना की स्थिति, परीक्षा परिणाम आदि शामिल हैं। इससे लक्षित शैक्षिक हस्तक्षेप और संसाधन वितरण बेहतर हुए हैं।निजी कंपनियाँ जैसे क्रॉपइन, रिमोट सेंसिंग और आई ओ टी आधारित डेटा से कृषि क्षेत्र में नवाचार ला रही हैं। सैटेलाइट इमेजिंग और लेन-देन विश्लेषण जैसे डेटा स्रोत निर्णय-निर्माण की सटीकता बढ़ाते हैं, जिससे परिशुद्ध कृषि, बीमा और आपूर्ति शृंखला में सुधार होता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आज जटिल डेटासेट को सहजता से समझने और उसका विश्लेषण करने में सक्षम है। इससे न केवल शासन प्रणाली में सुधार हुआ है, बल्कि छोटे व्यवसायों और स्टार्टअप्स को भी डेटा संचालित निर्णय लेने का अवसर मिला है। ए आई अब डेटा से अंतर्दृष्टियाँ उत्पन्न करने में प्रशिक्षित विश्लेषकों की सहायता करता है। ओपन गवर्नमेंट डेटा प्लेटफॉर्म जैसे पोर्टल्स पर लाखों डेटा सेट्स का प्रकाशन—जैसे वायु गुणवत्ता, वर्षा, बिजली की उपलब्धता—सार्वजनिक निगरानी और पारदर्शिता को सशक्त करता है। इससे नागरिक समाज संगठनों को प्रदूषण या अवसंरचना से जुड़ी समस्याओं पर निगरानी करने का अवसर मिलता है। भारत में सार्वजनिक आँकड़ों में अप्रयुक्त आर्थिक मूल्य छिपा है। उदाहरण के लिये, जीएसटी डेटा विश्लेषण से महामारी के बाद आर्थिक सुधार के संकेत मिले, जिससे नीतिगत हस्तक्षेपों में सुविधा हुई। 2024 में 15% की जी एस टी संग्रह वृद्धि इसका प्रमाण है। इसी प्रकार, कर राजस्व, श्रम डेटा और एम एस एम ई से संबंधित आंकड़े देश की समष्टि आर्थिक योजना का मार्गदर्शन कर सकते हैं। भारत सरकार ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 पारित कर देश में डेटा अधिकारों और जिम्मेदारियों की स्पष्ट परिभाषा की है। इस अधिनियम के तहत नागरिकों को ‘डेटा प्रिंसिपल’ और डेटा एकत्रित करने या संसाधित करने वाली संस्थाओं को ‘डेटा न्यासी’ माना गया है। यह परिभाषा पारदर्शिता, जवाबदेही और गोपनीयता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उपयोगकर्ता अधिकारः डेटा तक पहुँच, उसमें सुधार और उसे मिटाने का अधिकार, मृत्यु या अक्षमता की स्थिति में प्रतिनिधि नियुक्त करने की सुविधा, सहमति वापस लेने और नियंत्रण करने के लिये सहमति प्रबंधक की सहायता। न्यासियों की जिम्मेदारियाः डेटा की सटीकता और सुरक्षा सुनिश्चित करना, अवांछित डेटा का समय पर मिटाना, उल्लंघन होने पर डेटा संरक्षण बोर्ड और प्रभावित नागरिकों को तुरंत सूचित करना। सहमति और प्रसंस्करणः डेटा संसाधन के लिये नागरिक की सहमति अनिवार्य है, सिवाय कुछ आपातकालीन या सरकारी सेवा स्थितियों के। बच्चों (18 वर्ष से कम) के डेटा प्रसंस्करण के लिये अभिभावकों की सत्यापन योग्य सहमति आवश्यक है। डी पी बी आई डेटा उल्लंघनों की जाँच करता है, शिकायतों का समाधान करता है और दंड लगाता है। इसके निर्णयों के विरुद्ध अपील दूरसंचार विवाद समाधान एवं अपील अधिकरण में की जा सकती है। इससे कई चुनौतियाँ और चिंताएँ भी पनप रही हैं। हालांकि अधिनियम राज्य को राष्ट्रीय हित और न्यायिक उद्देश्यों के लिये छूट देता है, पर इन शक्तियों के विवेकाधीन उपयोग और न्यायिक निगरानी के अभाव ने नागरिक स्वतंत्रता पर संभावित खतरे को जन्म दिया है। भारत के बाहर डेटा भेजने की अनुमति दी गई है, लेकिन अधिसूचित देशों की सूची और सुरक्षा स्तर की स्पष्टता अभी अपेक्षित है। इससे डेटा स्थानीयकरण और रणनीतिक डेटा संप्रभुता की बहस को बल मिलता है। जो संस्थाएँ बड़े या संवेदनशील डेटा सेट्स का प्रसंस्करण करती हैं, उन्हें 'प्रमुख डाटा न्यासी' घोषित किया जा सकता है। ऐसे संस्थानों को अतिरिक्त शर्तों जैसे डाटा प्रोटेक्शन इम्पैक्ट असेसमेंट, डाटा ऑफिसर की नियुक्ति और तृतीय-पक्ष ऑडिट्स का पालन करना होगा। यूरोपीय संघ का सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन यानि जी डी पी आर विश्व में सबसे कठोर डेटा संरक्षण कानूनों में से एक है, जिसने डेटा प्रोसेसिंग की पारदर्शिता, उपयोगकर्ता नियंत्रण और जुर्माने की स्पष्ट व्यवस्था की है। भारत का डी पी डी पी अधिनियम इसी के प्रभाव में तैयार किया गया है, परंतु उसमें सरकारी छूटों और अनुपालन लचीलापन को लेकर मतभेद हैं। अमेरिका में डेटा सुरक्षा राज्य स्तर पर विनियमित है और कोई एकीकृत संघीय कानून नहीं है। हालांकि, टेक कंपनियाँ डेटा संप्रभुता पर बढ़ती चिंता को लेकर आत्मनियमन के प्रयास कर रही हैं। भारत को यहाँ से लचीलापन और नवाचार के संतुलन की सीख मिल सकती है। चीन ने डेटा लोकलाइज़ेशन और सरकारी निगरानी को कड़ा बनाया है, जिससे सुरक्षा तो सुनिश्चित होती है, पर नागरिक स्वतंत्रताओं पर प्रश्न उठते हैं। भारत को एक संतुलित मॉडल विकसित करना होगा जो नागरिक अधिकारों की रक्षा करते हुए नवाचार को बढ़ावा दे। अंत में कह सकते हैं कि डिजिटल युग में डेटा शक्ति है—पर यह शक्ति तभी कल्याणकारी बनेगी जब इसका उपयोग न्यायोचित, पारदर्शी और नागरिकोन्मुख तरीके से हो। भारत ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 के माध्यम से एक दिशा तय की है, लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन के लिये संस्थागत पारदर्शिता, सार्वजनिक सहभागिता और तकनीकी नवाचार का समन्वय अनिवार्य है। भारत के पास दुनिया को एक "डिजिटल लोकतंत्र मॉडल" देने का अवसर है, जो न केवल अर्थव्यवस्था को गति देगा, बल्कि नागरिकों के अधिकारों को भी संरक्षित रखेगा।