भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज का भारत वैश्विक व्यवस्था में एक अहम मोड़ पर खड़ा है। एक ओर इसकी आर्थिक और रणनीतिक हैसियत लगातार बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर बहुपक्षीय संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। हाल ही में भारत-पाक तनाव के बीच पाकिस्तान को आई एम एफ द्वारा दिए गए 2.4 अरब डॉलर के ऋण ने वैश्विक शासन में संस्थागत पूर्वाग्रह और भू-राजनीतिक हस्तक्षेप की बहस को फिर से जीवित कर दिया है। ऐसे में भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह बहुपक्षीय मंचों के साथ-साथ क्षेत्रीय और लघु गठबंधनों के बीच सामंजस्य स्थापित कर वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर हो। आईए समझते हैं कि वैश्विक शासन और बहुपक्षीय मंच की भूमिका और महत्त्व को। बहुपक्षीय संस्थाएँ जलवायु परिवर्तन, महामारी, वित्तीय अस्थिरता जैसी चुनौतियों से निपटने हेतु साझा रणनीति का निर्माण करती हैं।यू एन एफ सी सी सी के अंतर्गत पेरिस समझौता 196 देशों को जलवायु कार्रवाई के लिए एक मंच पर लाता है। डबल्यू एच ओ की कोवेक्स पहल ने कोविड-19 के दौरान वैक्सीन समानता सुनिश्चित की, जिससे गरीब देशों को जीवनरक्षक टीके सुलभ हुए। संस्थाएँ जैसे डबल्यू टी ओ, आई एम एफ और यू एन वैश्विक मानकों, कानूनों और प्रक्रियाओं की संरचना कर देशों के व्यवहार को अनुशासित बनाती हैं। डबल्यू टी ओ की विवाद समाधान प्रणाली 1995 से 600 से अधिक व्यापार विवादों को हल कर चुकी है, जिससे वैश्विक व्यापार में विश्वास बहाल हुआ है।यू एन चार्टर आज भी संप्रभुता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का आधार बना हुआ है।बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से छोटे और विकासशील देश भी वैश्विक निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं।“वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ” जैसे भारत-प्रस्तावित मंचों ने जलवायु न्याय और वित्तीय समावेशन की मांग को प्रमुखता दी है।यह व्यवस्था शक्तिशाली देशों के वर्चस्व को संतुलित करने का माध्यम भी बनती है। विश्व बैंक, आई एम एफ, डबल्यू टी ओ जैसे मंच आर्थिक विकास, मानक समरूपता और वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था, जो अब 4 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गई है, डबल्यू टी ओ और जी 20 की साझेदारी के कारण निवेश, व्यापार और टेक्नोलॉजी हस्तांतरण में सफल हुई है। संस्थागत निगरानी और नियमित रिपोर्टिंग से देशों की जवाबदेही बढ़ती है और नीति निर्माण अधिक पारदर्शी होता है।डबल्यू टी ओ का नागरिक समाज की भागीदारी के प्रति खुलापन और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्टें इस पारदर्शिता की मिसाल हैं। बहुपक्षीय मंच लोकतंत्र, मानवाधिकार, पर्यावरण जैसे वैश्विक मूल्यों को प्रचारित करते हैं। भारत की लाइफ पहल और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन इसी दिशा में सफल प्रयास हैं। आतंकवाद, साइबर अपराध, महामारी आदि के खिलाफ सामूहिक रणनीति बहुपक्षीय मंचों की ही देन है। बहुपक्षीय व्यवस्था की गिरती प्रासंगिकता: कारण और चिंताएँ भी हैं। अमेरिका, चीन, रूस जैसे देशों के विरोधाभासी हित वैश्विक मंचों की निष्पक्षता को बाधित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच रूस-यूक्रेन युद्ध में निष्क्रिय नजर आए। आई एम एफ द्वारा पाकिस्तान को दिया गया 2.4 अरब डॉलर का ऋण भारत-पाक संघर्ष के दौरान जारी किया जाना, वैश्विक संस्थाओं की तटस्थता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। देश अब बहुपक्षीय वार्ताओं के बजाय द्विपक्षीय समझौतों को प्राथमिकता दे रहे हैं। कई बहुपक्षीय संस्थाओं के पास अपने निर्णयों को लागू करने का प्रभावी तंत्र नहीं है। डबल्यू टी ओ की अपीलीय निकाय प्रणाली कई वर्षों से ठप है। जलवायु समझौतों के उल्लंघन पर भी कोई ठोस दंडात्मक व्यवस्था नहीं है। संस्थाओं की निर्णय प्रक्रिया पर शक्तिशाली देशों का प्रभुत्व है, जबकि आर्थिक सहयोग में भारी असंतुलन है।आई एम एफ और विश्व बैंक की वोटिंग प्रणाली में भारत जैसे उभरते देशों का प्रतिनिधित्व सीमित है। नीति निर्धारण में विकासशील देशों की प्राथमिकताओं की उपेक्षा होती है। भारत का दृष्टिकोण: बहुपक्षीयता और मिनीलेटरलिज़्म के बीच संतुलन भी हो सकता है। भारत अब केवल भागीदार नहीं, बल्कि नीति-निर्माता की भूमिका निभा रहा है। जी 20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का नेतृत्व अब जलवायु न्याय, वैश्विक डिजिटल आचार संहिता, खाद्य सुरक्षा आदि में दिख रहा है।ये मंच बहुपक्षीय प्रणाली की जटिलताओं से इतर तेज निर्णय क्षमता और रणनीतिक संवाद का मंच बनते हैं। कुआड के माध्यम से हिंद-प्रशांत रणनीति, आई2यू2 के माध्यम से खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा में साझेदारी के उदाहरण सामने हैं। भारत ने लगातार यू एन एस सी में स्थायी सदस्यता, आई एम एफ-वोटिंग सुधार और डबल्यू टी ओ में निष्पक्षता की मांग उठाई है। “ग्लोबल साउथ की आवाज़” बनकर भारत ने वैश्विक मंचों को अधिक समावेशी और न्यायसंगत बनाने की दिशा में कार्य किया है। वैश्विक मंचों पर सशक्त प्रतिनिधित्व के लिए भारत को अपनी संस्थागत क्षमताओं को सशक्त करना होगा। पेशेवर राजनयिकों की संख्या बढ़ाना, बहुभाषी वार्ताकारों को प्रशिक्षित करना और वैश्विक कानूनों की विशेषज्ञता विकसित करना आवश्यक है। भारत के लिए रणनीतिक प्राथमिकताओं पर गौर करेँ। भारत को यू एन एस सी, आई एम एफ और विश्व बैंक में अपने अधिकार और भागीदारी के लिए वैश्विक सहमति बनानी चाहिए।संस्कृति, योग, आयुर्वेद, डिजिटलीकरण, टिकाऊ जीवनशैली आदि के ज़रिए भारत अपनी सॉफ्ट पॉवर को वैश्विक एजेंडे में रूपांतरित कर सकता है। भारत को अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, अफ्रीका और एसिआन जैसे भागीदारों के साथ संतुलित और मुद्दा-आधारित गठजोड़ करने होंगे। जलवायु संकट, महामारी, खाद्य आपूर्ति श्रृंखला जैसे मुद्दों पर भारत को पहले-संवेदनशील, तत्पर और समाधानकारी दृष्टिकोण अपनाना होगा।अंत में कह सकते हैं कि आज जब वैश्विक शासन पुनः परिभाषित हो रहा है, भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक अवसर है कि वह बहुपक्षीय मंचों और लघु गठबंधनों के बीच एक विवेकपूर्ण संतुलन स्थापित करे। केवल दर्शक नहीं, बल्कि दिशा निर्धारक की भूमिका निभाते हुए भारत को वैश्विक उत्तरदायित्व और नेतृत्व दोनों के लिए तैयार होना होगा। बहुपक्षीय संस्थाओं की कमजोरियों को सुधारने, न्यायसंगत व्यवस्था के निर्माण और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के बीच भारत को अपनी कूटनीतिक सूझबूझ का परिचय देना होगा।