भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
यह सौलह आने सच है कि भारत अपनी स्वास्थ्य सेवा यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, आयुष्मान भारत पहल ने वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को लक्षित किया है, जबकि निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र वर्ष 2026 तक अनुमानित 610 बिलियन डॉलर तक तेज़ी से विस्तार कर रहा है। आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय को 60-70% से घटाकर 39.4% करने की प्रगति के बावजूद, लगभग 400 मिलियन भारतीयों के पास अभी भी स्वास्थ्य बीमा कवरेज नहीं है, विशेष रूप से आउट पेशेंट (बाह्य रोगी) देखभाल को प्रभावित करता है, जो स्वास्थ्य सेवा पर होने वाले व्यय का दो-तिहाई हिस्सा है। आगे की राह के लिये निजी क्षेत्र के विकास को निवारक और प्राथमिक देखभाल में मज़बूत सार्वजनिक निवेश के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है ताकि क्रय शक्ति के बजाय आवश्यकता के आधार पर स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सुनिश्चित की जा सके। आइये समझते हैं भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में हाल ही में हुए प्रमुख विकास को। सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और तृतीयक सुविधाओं पर भार कम करने के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है। आयुष्मान भारत पहल के तहत मार्च 2024 तक 1.7 लाख से अधिक स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों का कायाकल्प इस फोकस का उदाहरण है। ये केंद्र समग्र स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करते हुए योग और आयुष सहित निवारक, प्रोत्साहन एवं पुनर्वास देखभाल को एकीकृत करते हैं। वर्ष 2018-19 से वर्ष 2023-24 तक आम में 46.6% की सी ए जी आर से वृद्धि हुई। सुदृढ़ स्वास्थ्य सेवा वितरण बुनियादी अवसंरचना की उपलब्धता पर निर्भर करता है; इसलिये, सार्वजनिक अस्पतालों की वृद्धि से सुगम्यता और सामर्थ्य में सुधार होता है। वर्ष 2005 में 7,008 अस्पतालों से वर्ष 2021 में 60,621 तक, भारत ने सार्वजनिक अस्पतालों में 14.4% की सी ए जी आर दर्ज की, जो बड़े पैमाने पर बुनियादी अवसंरचना के विस्तार को दर्शाती है। इस विस्तार से शहरी अस्पतालों पर दबाव कम हुआ है और ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की सुगम्यता में भी सुधार हो रहा है, जो समतापूर्ण स्वास्थ्य परिणामों के लिये महत्त्वपूर्ण है। डिजिटल उपकरण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में क्रांतिकारी बदलाव ला रहे हैं, दक्षता, पारदर्शिता और डेटा-संचालित निर्णय लेने में सुधार कर रहे हैं। स्वास्थ्य पेशेवर रजिस्ट्री पर 2.96 लाख से अधिक स्वास्थ्य पेशेवर पंजीकृत हैं, जिससे देश भर में अंतर-संचालनीय डिजिटल सेवाएँ संभव हो रही हैं।वित्तीय जोखिम संरक्षण और व्यापक स्वास्थ्य बीमा कवरेज, विनाशकारी खर्चों को कम करने के लिये आवश्यक हैं।पी एम जे ए वाई लगभग 15 करोड़ परिवारों को कवरेज प्रदान करता है, जिसमें प्रति परिवार 5 लाख रुपए प्रतिवर्ष, 1,900 पैकेजों के साथ द्वितीयक एवं तृतीयक देखभाल शामिल है तथा इसमें कोई पूर्व-मौजूदा स्थिति अपवर्जन नहीं है। अब तक 81,979 करोड़ रुपए मूल्य के 6.5 करोड़ अस्पताल में भर्ती की अनुमति दी गई है, जो पैमाने और प्रभाव को दर्शाता है। संचारी रोगों का शीघ्र पता लगाना और रोकथाम स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। वर्ष 2004 से क्रियाशील एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम प्रकोप की त्वरित प्रतिक्रिया के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी को सुदृढ़ करता है। जननी सुरक्षा योजनाओं के साथ मिलकर ये कार्यक्रम रुग्णता और मृत्यु दर को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में बढ़ता विश्वास स्पष्ट है, क्योंकि वर्ष 2014 के बाद से सरकारी अस्पतालों की ओ पी डी एवं आई पी डी की हिस्सेदारी में 25% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो बेहतर पहुँच एवं सामर्थ्य को दर्शाता है। अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिये राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानकों के कार्यान्वयन से मानक सेवा गुणवत्ता सुनिश्चित होती है तथा राष्ट्रव्यापी स्तर पर रोगी सुरक्षा एवं संतुष्टि को बढ़ावा मिलता है। भारत का फार्मा क्षेत्र, जिसे ‘विश्व की फार्मेसी’ कहा जाता है, वर्ष 2030 तक 130 बिलियन डॉलर के अनुमानित बाज़ार आकार के साथ विस्तार कर रहा है, जिससे किफायती पहुँच और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। चिकित्सा उपकरण नीति-2023 घरेलू विनिर्माण क्षमता एवं गुणवत्ता को बढ़ाती है तथा आयात निर्भरता को कम करने एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिये मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहलों के साथ संरेखित करती है। पर्याप्त, कुशल कार्यबल गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ है; इसलिये, भारत ने चिकित्सा और नर्सिंग शिक्षा को बढ़ावा दिया है। पंजीकृत नर्सों की संख्या वर्ष 2005 में 14.81 लाख से बढ़कर वर्ष 2022 में 36.14 लाख हो गई जबकि एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या 6.6 लाख से बढ़कर 13.08 लाख हो गई । वित्त वर्ष 2023 के बजट में 157 नए नर्सिंग कॉलेजों से कार्यबल की कमी और भारतीय नर्सों की वैश्विक मांग को पूरा किया जाएगा। भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की प्रभावशीलता में बाधा डालने वाले कई प्रमुख मुद्दे रहे हैं। अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय, निरंतर उच्च आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय, अपर्याप्त बीमा कवरेज और बाह्य रोगी देखभाल पर ध्यान, स्वास्थ्य सेवा कार्यबल का विषम वितरण और कमी, सार्वजनिक सुविधाओं में बुनियादी अवसंरचना की कमी और गुणवत्ता का अंतर, निवारक और प्राथमिक देखभाल पर सीमित ज़ोर, डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण में डेटा गोपनीयता के मुद्दे प्रमुख हैं। बावजूद इनके स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को बढ़ाने के लिये भारत कई उपाय अपना सकता है जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल नेटवर्क को सुदृढ़ और एकीकृत करना, स्वास्थ्य कार्यबल क्षमता में क्रांतिकारी बदलाव, बाह्य रोगी, निवारक और दीर्घकालिक देखभाल को समग्र रूप से कवर करने के लिये सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा का विस्तार करना, डिजिटल निगरानी के साथ निजी स्वास्थ्य सेवा के लिये एकीकृत नियामक कार्यढाँचा, डेटा-सक्षम, रोगी-केंद्रित देखभाल को बढ़ावा देना, फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों में नवाचार और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना आदि शामिल हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा में भारत अन्य देशों से भी सीख ले सकता है। जैसे सार्वभौमिक प्राथमिक देखभाल पहुँच: समुदाय-आधारित प्राथमिक देखभाल कवरेज के लिये ब्राज़ील की परिवार स्वास्थ्य रणनीति को अपनाना चाहिये। कुशल स्वास्थ्य वित्तपोषण: आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय को कम करने के लिये थाईलैंड की सार्वभौमिक कवरेज योजना से सीख लेनी चाहिये।डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण: निर्बाध डेटा साझाकरण के लिये एस्टोनिया की राष्ट्रव्यापी ई-स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रणाली का अनुकरण करना चाहिये।सार्वजनिक-निजी सहयोग: जर्मनी के विनियमित निजी बीमा और सार्वजनिक प्रणाली तालमेल का अध्ययन करना चाहिये।निवारक स्वास्थ्य फोकस: फिनलैंड के सफल गैर-संचारी रोग निवारण कार्यक्रमों को शामिल करना (उत्तरी करेलिया परियोजना) चाहिये। अंत में कह सकते हैं कि भारत का स्वास्थ्य सेवा परिवर्तन सतत् विकास लक्ष्य 3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली) के साथ संरेखित सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाता है। प्रतिक्रियात्मक देखभाल से निवारक देखभाल की ओर बढ़ने के लिये भारत को अपने निजी स्वास्थ्य क्षेत्र की तीव्र वृद्धि को प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणालियों में सार्वजनिक निवेश, डिजिटल एकीकरण एवं स्वास्थ्य कार्यबल के विस्तार के साथ संतुलित करना आवश्यक है। एक जन-केंद्रित, समावेशी और समुत्थानशील स्वास्थ्य देखभाल पारितंत्र अनिवार्य है, ताकि वर्ष 2030 तक सभी के लिये समतामूलक पहुँच एवं वित्तीय संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।