भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां यह सच है कि चीन द्वारा दुर्लभ मृदा चुंबकों (तत्त्वों) के निर्यात पर हाल ही में लगाए गए प्रतिबंधों ने भारत के बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र के लिये आपूर्ति संबंधी चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि देश क्रिटिकल मिनरल्स के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है। यद्यपि भारत के पास कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे क्रिटिकल मिनरल्स का पर्याप्त भंडार है, फिर भी देश ने पारंपरिक रूप से अन्वेषण और प्रसंस्करण अवसंरचना के विकास पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया है। यह आयात-निर्भरता लिथियम, ग्रेफाइट एवं प्राकृतिक हाइड्रोजन और थोरियम जैसे उभरते संसाधनों सहित अन्य आवश्यक खनिजों तक भी विस्तृत है। चूँकि भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में अग्रसर है, इसलिये खनिज आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने तथा आयात-निर्भरता को घटाने के लिये देश में स्वदेशी खनन एवं प्रसंस्करण क्षमताओं का विकास अत्यावश्यक है। आइये समझते हैं भारत की विकास यात्रा में क्रिटिकल मिनरलों की भूमिका के बारे में । सोलर पैनल और पवन टरबाइनों के निर्माण में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण खनिज — जैसे कि सिलिकॉन, टेल्यूरियम एवं रेयर अर्थ एलिमेंट्स (दुर्लभ मृदा तत्त्व) भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों की आधारशिला हैं। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 50% गैर-जीवाश्म ऊर्जा प्राप्त करना है, जो कि मुख्य रूप से इन खनिजों पर निर्भर करता है। इलेक्ट्रिकल इलेक्ट्रिकल व्हीकल के केंद्र स्थापित करने के लिये इलेक्ट्रानिक इलेक्ट्रिक वाहन का केंद्र होना आवश्यक है। वर्तमान में, भारत में 100% लिथियम और कोबाल्ट का आयात होता है, जिसमें चीन 70% से अधिक लिथियम आयात की आपूर्ति करता है। यह आपूर्ति भारत के ई वी उद्योग के विकास को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन को सुदृढ़ करना: गैलियम, जर्मेनियम और इंडियम जैसे खनिज सेमीकंडक्टर एवं उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मूलभूत घटक हैं, जो भारत की उच्च-प्रौद्योगिकी निर्माण में आत्मनिर्भरता की लक्ष्यपूर्ति के लिये अत्यंत आवश्यक हैं। भारत इन खनिजों के लिये लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है, विशेषकर चीन से। हाल ही में मिनरल्स सिक्योरिटी पार्टनरशिप जैसे रणनीतिक साझेदारियों में सम्मिलित होने के माध्यम से भारत इन खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करने और घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रयासरत है।टाइटेनियम, दुर्लभ मृदा तत्त्व और निकेल जैसे खनिज, एयरोस्पेस, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं रणनीतिक उपकरण निर्माण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।भारत का रक्षा क्षेत्र इन खनिजों के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है — टाइटेनियम के लिये 50% से अधिक और दुर्लभ मृदा तत्त्वों के लिये भी भारी मात्रा में निर्भरता है। सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय नीलामी प्रणाली, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये इन क्रिटिकल मिनरल्स पर नियंत्रण को सुदृढ़ करती है।क्रिटिकल मिनरलों का देश में खनन और प्रसंस्करण, खनिज-समृद्ध क्षेत्रों में औद्योगिक विकास एवं रोज़गार सृजन को गति दे सकता है।राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन का लक्ष्य वर्ष 2031 तक 10,000 कुशल श्रमिकों को प्रशिक्षित करना और 1,200 अन्वेषण परियोजनाएँ शुरू करना है।वेदांता और ओला इलेक्ट्रिक जैसी कंपनियों की भागीदारी वाली नीलामियाँ निजी क्षेत्र की बढ़ती सक्रियता को दर्शाती हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाएँ मज़बूत होती हैं तथा आयात पर निर्भरता घटती है। भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला से जुड़े कई प्रमुख मुद्दे हैं जैसे चीन पर अत्यधिक निर्भरता, घरेलू अन्वेषण और नीलामी में अवरोध, खनिज प्रसंस्करण और परिष्करण पारितंत्र का अल्पविकास, पर्यावरणीय और सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियाँ, अस्थिर वैश्विक बाज़ार मूल्य और निवेश जोखिम, तकनीकी कमी और मानव पूंजी अंतराल, नवीन चक्रीय अर्थव्यवस्था और पुनर्चक्रण अवसंरचना आदि हैं। भारत अपनी क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने के लिये कई उपाय अपना सकता है इनमें विनियामक कार्यढाँचे को सुव्यवस्थित करना और खनिज नीलामी प्रक्रियाओं को सरल बनाना, एकीकृत खनिज प्रसंस्करण पार्क, वैकल्पिक सामग्रियों के लिये अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश, रणनीतिक खनिज भंडारण और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण, विकास कौशल और विशेष कार्यक्रम प्रशिक्षण को बढ़ावा देना शामिल हैं इन में एक दक्ष कार्यबल विकसित करने हेतु व्यापक क्षमतावर्द्धन पहलों की शुरुआत की जानी चाहिये, जो उन्नत खनन, खनिज प्रसंस्करण और पर्यावरण प्रबंधन में कुशल हो। स्थानीय विशेषज्ञता को शीघ्र उन्नत करने के लिये वैश्विक उत्कृष्टता केंद्रों से सहयोग किया जाना चाहिये। औद्योगिक उत्कृष्टता और घरेलू खनिज महत्त्वपूर्ण उद्यमों को बढ़ाने के लिये एक मज़बूत प्रतिभा संयंत्र महत्त्वपूर्ण है। ई-अपशिष्ट, बैटरी के स्क्रैप और खनन से उत्पन्न अपशिष्ट से क्रिटिकल मिनरल्स की पुनर्प्राप्ति हेतु वित्तीय अनुदानों एवं नियामकीय समर्थन के साथ नीतियाँ तैयार की जानी चाहिये।प्रमाणित पुनर्चक्रण अवसंरचना की स्थापना की जानी चाहिये तथा देशभर में अपशिष्ट संग्रहण तंत्र को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये।'शहरी खनन' तकनीकों में नवाचार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये और विनिर्माण में न्यूनतम पुनर्चक्रित सामग्री के मानकों को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। इससे मूल खनिजों की मांग में कमी आएगी और पर्यावरणीय प्रभाव घटेगा।खनिजों की उत्पत्ति, गुणवत्ता और आपूर्ति शृंखला में गति की निगरानी हेतु ब्लॉकचेन एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित प्लेटफॉर्म अपनाए जाने चाहिये, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी तथा अवैध खनन एवं व्यापार में कमी आएगी। रियल-टाइम डेटा एनालिसिस से भंडारण प्रबंधन का अनुकूलन और आपूर्ति-मांग में असंतुलन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। डिजिटलीकरण से नियामकीय अनुपालन सरल होता है, निवेशकों का विश्वास बढ़ता है और भारत की 'जिम्मेदार स्रोत-प्राप्ति'में वैश्विक साख मज़बूत होगी। अंत में कह सकते हैं कि भारत की क्रिटिकल मिनरल आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करना उसकी स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति, आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। आयात निर्भरता को कम करने और स्थिरता स्थापित करने के लिये समग्र उपाय—जिनमें नियामक सुधार, उन्नत संसाधन प्रक्रमण, रणनीतिक विविधीकरण और चक्रीय अर्थव्यवस्था की पहल शामिल हैं, अति आवश्यक हैं। एक सक्रिय एवं समेकित दृष्टिकोण भारत को क्रिटिकल मिनरल्स के क्षेत्र में आत्मनिर्भर और अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा।