भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
यह सौलहा आने सच है कि पिछले एक दशक से भी अधिक समय में भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ने आश्चर्यजनक रूप से विकास की लंबी छलांग लगाई है। कभी बुनियादी ढांचे और संसाधनों की भारी कमी से जूझने वाली यह प्रणाली अब समावेशी, सुलभ और नागरिक-केंद्रित स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में तेज़ी से अग्रसर हो रही है। इस परिवर्तन के केंद्र में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की निर्णायक भूमिका रही है, जिसने देश के ग्रामीण और दूर-दराज़ इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती देने में अहम योगदान दिया। विशेष रूप से 1.77 लाख से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना, एक क्रांतिकारी पहल मानी जा रही है, जो न केवल प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को जन-जन तक पहुंचा रही है, बल्कि डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से भी उपचार की सुविधा को आसान बना रही है। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन जैसे तकनीकी प्लेटफॉर्म ने इस दिशा में निर्णायक बदलाव लाने में मदद की है। अब नागरिकों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड से लेकर परामर्श और टेलीमेडिसिन जैसी सेवाएं एक क्लिक में सुलभ हो गई हैं, जिससे 'डिजिटल हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर' को मजबूती मिली है। यह समूचा बदलाव भारत को उसके सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के लक्ष्य की ओर न केवल ले जा रहा है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ती, न्यायसंगत और गुणवत्तापूर्ण बनाने की दिशा में भी ऐतिहासिक पहल सिद्ध हो रहा है। आगे बढ़ने से पहले आइये समझते हैं भारत में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की वर्तमान संरचना के बारे में।प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा चिकित्सा सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये संपर्क का पहला बिंदु है। यह रोकथाम, स्वास्थ्य शिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करता है। मुख्य रूप से राज्य सरकारों द्वारा ज़िला स्वास्थ्य प्राधिकरणों और पंचायतों जैसे स्थानीय शासन निकायों के माध्यम से प्रबंधित किया जाता है।प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उप-केंद्र और स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र। टीकाकरण, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, बाह्य रोगी देखभाल, मलेरिया जैसी सामान्य बीमारियों की रोकथाम और स्वास्थ्य शिक्षा। द्वितीयक स्वास्थ्य देखभाल में विशिष्ट चिकित्सा देखभाल शामिल होती है जो आमतौर पर ज़िला अस्पतालों या क्षेत्रीय केंद्रों में प्रदान की जाती है।ज़िला और क्षेत्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरणों के माध्यम से राज्य सरकारों द्वारा प्रबंधित। कुछ विशेष अस्पताल कुछ स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।ज़िला अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और विशेष क्लिनिक।तृतीयक स्वास्थ्य सेवा अत्यधिक विशिष्ट सेवाएँ प्रदान करती है, आमतौर पर जटिल स्थितियों के लिये जिनके लिये उन्नत उपचार की आवश्यकता होती है। केंद्रीय और राज्य दोनों मंत्रालयों द्वारा प्रबंधित एम्स और पी जी आई जैसे प्रमुख संस्थान केंद्रीय शासन के अधीन हैं।भारत में स्वास्थ्य देखभाल के विभिन्न पहलुओं की देखरेख के लिये कई नियामक प्राधिकरण हैं: केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन , भारतीय चिकित्सा परिषद , फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया , अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड , भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण आदि हैं। आइये बात करते हैं भारतीय स्वास्थ्य सेवा से जुड़े प्रमुख मुद्दों की। ग्रामीण-शहरी स्वास्थ्य देखभाल असमानता, स्वास्थ्य देखभाल की सामर्थ्य, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता, गैर-संचारी रोगों का बोझ, सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाओं का कम उपयोग, स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना में अंतराल, स्वास्थ्य बीमा का प्रसार, निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र का विनियमन आदि हैं। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को बढ़ाने के लिये भारत कई उपाय कर सकता है जैसे एकीकृत मॉडल के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत बनाना, स्वास्थ्य कार्यबल प्रशिक्षण और तैनाती में तेज़ी लाना, टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य प्लेटफॉर्मों का लाभ उठाना, बुनियादी अवसंरचना के विस्तार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी, सार्वभौमिक कवरेज प्राप्त करने के लिये स्वास्थ्य बीमा में सुधार,निवारक और स्वास्थ्य देखभाल पर ज़ोर देना, स्वास्थ्य देखभाल वित्तपोषण तंत्र को मज़बूत करना, निजी स्वास्थ्य सेवा के लिये नियामक कार्यढाँचे में सुधार, स्टार्टअप और प्रौद्योगिकी के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल नवाचार को बढ़ावा देना आदि हैं। भारत अपने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सुधार के लिये अन्य देशों से भी काफी कुछ सीख सकता है जैसे सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल यू के, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान (ब्राज़ील), डिजिटल स्वास्थ्य एकीकरण (एस्टोनिया), सार्वजनिक-निजी भागीदारी (सिंगापुर) के तहत सिंगापुर ने विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना के निर्माण के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी का सफलतापूर्वक लाभ उठाया है। भारत अस्पतालों की क्षमता बढ़ाने, सुविधाओं को आधुनिक बनाने तथा विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये इसी प्रकार के सहयोग को बढ़ावा देकर अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बेहतर बना सकता है।निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ज़ोर (जापान): नियमित जाँच, स्वास्थ्य शिक्षा और जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर जापान के फोकस के परिणामस्वरूप उच्च जीवन प्रत्याशा एवं कम रोग का बोझ हुआ है। भारत गैर-संचारी रोगों के बोझ को कम करने के लिये अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में नियमित स्वास्थ्य जाँच और जागरूकता कार्यक्रमों को एकीकृत करके रोकथाम पर अधिक ज़ोर दे सकता है। अंत में हम कह सकते हैं कि भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली सार्वभौमिक पहुँच, गुणवत्तापूर्ण देखभाल और डिजिटल एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुज़र रही है। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत करना, बीमा कवरेज का विस्तार करना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना इन अंतरालों को पाटने के लिये महत्त्वपूर्ण है। इन प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र के एस डी जी 3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली) और हाल ही में जारी वैश्विक महामारी संधि के साथ जोड़ना सभी के लिये संधारणीय, समान स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने की कुंजी होगी।