भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां 7 जुलाई, 2025 को ब्राजील के रियो डी जनेरियो में संपन्न 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कूटनीतिक उपलब्धि दर्ज की। आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के दृढ़ रुख को सभी ब्रिक्स देशों ने अपनाया, और वैश्विक संस्थागत सुधारों पर भी सहमति बनी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्साहजनक नेतृत्व में भारत ने सम्मेलन के संवादों को वैश्विक दक्षिण के स्वरूप से जोड़ा और आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर अपनी सशक्त आवाज़ रखी। आगे बढ़ने से पहले आइये ब्रिक्स के बारे में समझे कि आखिर यह क्या संस्था है और इसका विश्व में क्या महत्त्व है। ब्रिक्स एक बहुपक्षीय संगठन है, जिसका गठन वर्ष 2009 में हुआ था। यह पाँच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं — ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका — का समूह है। इन देशों का उद्देश्य वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में विकासशील देशों की भागीदारी बढ़ाना और एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को स्थापित करना है। ब्रिक्स के इतिहास और विकास की बात करें तो 2001 में सबसे पहले " ब्रिक" शब्द गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने गढ़ा था, जब उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि ये चार देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाएंगे। 2006 में इन देशों के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक हुई। 2009 में रूस के येकातेरिनबर्ग शहर में पहली शिखर बैठक हुई। 2010 में दक्षिण अफ्रीका को शामिल किया गया और तब से यह " ब्रिक्स " कहलाने लगा। ब्रिक्स के उद्देश्य में वैश्विक शक्ति संतुलन में सुधार करना, ताकि केवल पश्चिमी देशों का प्रभुत्व न रहे। विकासशील देशों की आवाज़ को सशक्त करना, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, आई एम एफ, डबल्यू टी ओ जैसे वैश्विक संस्थानों में। विकास के लिए सहयोग बढ़ाना — व्यापार, निवेश, तकनीक, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और सुरक्षा के क्षेत्र में। डॉलर आधारित व्यवस्था से बाहर निकलने की कोशिश, जैसे कि ब्रिक्स बैंक और साझा करेंसी की योजनाएँ। आतंकवाद और वैश्विक खतरों के खिलाफ संयुक्त रणनीति अपनाना। ब्रिक्स की प्रमुख संस्थाओं में न्यू डवेल्पमेंट बैंक एन डी बी की स्थापना 2014 में हुई। इसका उद्देश्य: ब्रिक्स देशों व अन्य विकासशील देशों की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्त देना। इसका मुख्यालय: शंघाई, चीन में है। ब्रिक्स कंटिन्जैंट रिज़र्व अरेंजमेंट सी आर ए एक वैश्विक वित्तीय अस्थिरता से निपटने के लिए आपसी मदद की व्यवस्था है। आई एम एफ जैसी पश्चिमी संस्थाओं पर निर्भरता घटाने का प्रयास। ब्रिक्स देश विश्व की 40% आबादी और लगभग 25% वैश्विक जी डी पी का प्रतिनिधित्व करते हैं। व्यापार, ऊर्जा, डिजिटल भुगतान, अंतरिक्ष अनुसंधान, विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में इन देशों का योगदान तेजी से बढ़ रहा है। ब्रिक्स का रुख अंतरराष्ट्रीय संकटों (जैसे यूक्रेन युद्ध, गाज़ा संघर्ष) पर भी अब अहम माना जाने लगा है। भारत और ब्रिक्स की बात करें तो भारत ब्रिक्स का एक संस्थापक सदस्य है और इस मंच के माध्यम से उसने कई रणनीतिक कूटनीतिक सफलताएं हासिल की हैं। भारत ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, आयुर्वेद, पारंपरिक ज्ञान, वैश्विक दक्षिण की आवाज़ जैसे मुद्दों को ब्रिक्स मंच पर उठाया। भारत लगातार आतंकवाद विरोध, वैश्विक संस्थाओं में सुधार, जलवायु न्याय, और निष्पक्ष व्यापार व्यवस्था की वकालत करता रहा है। हाल के वर्षों में ब्रिक्स को ब्रिक्स + के रूप में विस्तारित करने की योजना चल रही है, जिसमें सऊदी अरब, ईरान, यू ए ई, मिस्र, अर्जेंटीना जैसे देशों को जोड़ा गया है।यह विस्तार संगठन को एक वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधि मंच बना सकता है, जो पश्चिमी वर्चस्व के विकल्प के रूप में खड़ा हो। दूसरी ओर 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के संपन्न समारोह में कश्मीर में 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में निर्दोष नागरिकों पर हुए क्रूर आतंकी हमले में 26 लोगों की जान गई, का मुद्दा भी उठा था। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे "मानवता पर हमला" करार दिया और ब्रिक्स के नेताओं से इस कृत्य की निंदा करने की अपील की। सम्मेलन के घोषणा-पत्र में इस हमले की "कड़ी शब्दों में" निंदा की गई। आतंकवाद को मानवता के खिलाफ अपराध करार देते हुए, सभी देशों पर जोर दिया कि वे सीमा-पार गतिविधियों, वित्तपोषण और परीक्षण सुविधाओं वाले पनाहगाहों की पहचान कर कठोर कार्रवाई करें। किसी भी प्रकार की दोहरी नीति सहनीय नहीं होगी। इस मौके पर मोदी का रुख एक दम स्पष्ट और चुनौतीपूर्ण नज़र आया। पीएम मोदी ने आतंकवाद का मुकाबला "मानसिकता की लड़ाई" बताया और स्पष्ट किया कि आतंकवादियों और उनके समर्थकों को समान दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। उन्होंने चीन और पाकिस्तान का नाम लिए बिना अप्रत्यक्ष रूप से कड़ी आलोचना भी की। उन्होंने सीमा-पार आतंकवाद का जिक्र करते हुए कहा कि राजनीतिक या निजी हित के लिए आतंकवाद को आश्रय नहीं देना चाहिए। यह बयान विशेष रूप से सार्थक है, क्योंकि पिछले ट्रैक रिकॉर्ड में पाकिस्तान-लिंक्ड तत्वों को सुरक्षा परिषद में लाने में चीन ने बाधा डाली थी। मोदी ने ब्रिक्स मंच के वैश्विक प्रतिष्ठा को विस्तार देने का ज़ोर दिया, ताकि “ग्लोबल साउथ” को उचित स्थान और प्रतिनिधित्व मिले। उन्नत देशों के विशिष्टाधिकार के बजाय समानुभूति आधारित आदान प्रदान के समर्थन में भारत ने सुझाव दिया कि जलवायु, स्वास्थ्य, डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में समावेशी बदलाव जरूरी हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, आई एम एफ, डबल्यू टी ओ और व्लर्ड बैंक में सुधार की मांग दोहराई। ब्रिक्स घोषणा-पत्र में आतंकबोधी सहयोग को गहरा करने की पहल की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया। सभी पंजीकृत आतंकवादी समूहों और व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई के समर्थन में एक आम मंच बनाने पर सहमति बनी। इस पहल में आतंकवाद के नेटवर्क, रसद, और धन प्रवाह को निगलना शामिल है। भारत ब्रिक्स की अगली अध्यक्षता करेगा जो रचनात्मक नेतृत्व की आशा के साथ होने की उम्मीद है। भारत 2026 में ब्रिक्स की अध्यक्षता लेने जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यह मंच दक्षिणी देशों की आवाज़ को वयस्कता और अधिकार प्रदान करने की दिशा में कार्य करेगा। डिजिटल भुगतान यू पी आई, आयुर्वेद, तकनीकी विकास, और कला- संस्कृति में सहकार्य के ज़रिए भारत ने सहयोग की स्पष्ट तस्वीर पेश की। कांग्रेस समेत विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री मोदी के आतंकवाद विरोधी रुख का समर्थन किया। मोदी ने कहा कि 21वीं सदी के वैश्विक संकट—आतंकवाद हो या आर्थिक असमानता—कई देशों के बिना नहीं सुलझ सकते। ग्लोबल साउथ को निर्णय प्रक्रिया में लाना समानुभूति और प्रभावशीलता को बढ़ाता है। ब्रिक्स नेताओं ने एकतरफा शुल्क और व्यापार अवरोधों को चिंता का विषय बताया। यह संदेश अमेरिका जैसे बड़े व्यापार सहयोगियों के नीति दृष्टिकोण को अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती देता है। भारत ने निष्पक्ष वैश्विक व्यापार व्यवस्था की वकालत की, जिससे सभी सदस्य देश लाभान्वित हों। मोदी ने गाजा की मानवीय स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि युद्ध समाधान नहीं है। भारत शांतिपूर्ण संवाद, सहयोग और वैश्विक सामाजिक-एटिकल संपर्क का पक्षधर रहेगा—गांधी और बुद्ध की परंपरा में। अंत में कह सकते हैं कि ब्रिक्स ने पहलगाम हमले की निंदा करते हुए आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहनशीलता की नीति अपनाई। सुधारवादी दृष्टिकोण से भारत ने यूनिवर्सल सिस्टम में सुधार का संदेश दिया।मोदी ने आतंकवाद समर्थकों पर अप्रत्यक्ष मगर स्पष्ट निशाना साधा। इस तरह, रियो शिखर सम्मेलन में भारत ने आतंकवाद विरोधी नेटवर्क को मजबूत किया, वैश्विक संस्थानों में सुधार के लिए आवाज़ उठाई और विश्व मंच पर ब्रिक्स को एक नया विजन प्रदान किया। पीएम मोदी के स्पष्ट संदेशों और रणनीतिक अपीलों ने भारत को एक प्रभावशाली वैश्विक नेतृत्व के रूप में स्थापित किया।