भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इस में कोई दो राय नहीं है कि पिछले पाँच वर्षों के दौरान भारत ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रणनीतिक दृष्टिकोण से बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाया है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक गतिविधियों और बंगाल की खाड़ी में उसकी बढ़ती उपस्थिति को देखते हुए, यह द्वीप समूह भारत के लिए एक अहम सामरिक चौकी के रूप में उभर रहा है। हालांकि, इन प्रयासों के केंद्र में स्थित ग्रेट निकोबार परियोजना कई पर्यावरणविदों और आदिवासी अधिकार समूहों के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है। शोंपेन जैसी दुर्लभ जनजातियाँ और लेदरबैक समुद्री कछुए जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ इस परियोजना के कारण खतरे में हैं। विकास और सुरक्षा की इस दौड़ में पारिस्थितिकी और आदिवासी संस्कृति का संतुलन कहीं खो न जाए, यही सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। मौजूदा हालात में भारत के लिए आवश्यक हो गया है कि वह इस संवेदनशील द्वीप क्षेत्र में सतत् विकास के सिद्धांतों को अपनाए। इसमें ऐसी नीतियाँ शामिल हों जो सामरिक आवश्यकताओं को तो पूरा करें, लेकिन साथ ही पर्यावरण संरक्षण और स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की अनदेखी न हो। जलवायु परिवर्तन की चुनौती, पारिस्थितिक असंतुलन और जैवविविधता की क्षति को नजरअंदाज़ करना इस क्षेत्र के लिए दीर्घकालिक संकट को न्योता देना होगा। आइये भारत के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के महत्त्व को समझें। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत की सैन्य रणनीति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं। आर्थिक दृष्टि से, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारत के समुद्री व्यापार और रसद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा इस क्षेत्र में ट्रांसशिपमेंट के लिये एक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह अपनी समृद्ध जैवविविधता के कारण पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, जिसमें कई स्थानिक प्रजातियाँ और प्रवाल भित्तियों एवं वर्षावनों जैसे विविध पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। भू-राजनीतिक दृष्टि से, ए एन आई हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भागीदारी के लिये प्रवेश द्वार के रूप मंे कार्य करता है, विशेष रूप से चीन की बढ़ती उपस्थिति के बीच। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कई स्थानीय समुदायों का निवास स्थान है, जिनमें अंडमान द्वीप समूह में ग्रेट अंडमानी, ओंगेस, जरावा और सेंटिनलीज़ तथा निकोबार द्वीप समूह में निकोबारी और शोंपेन शामिल हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की रणनीतिक स्थिति भी भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा (विशेष रूप से अपतटीय संसाधनों के माध्यम से) के क्षेत्र में अपार संभावनाएँ प्रदान करती है। द्वीपसमूह के प्राचीन समुद्र तट, प्रवाल भित्तियाँ और समृद्ध जैवविविधता इसे इको-टूरिज़्म के लिये एक आकर्षक गंतव्य बनाती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से जुड़े कई मुद्दे हैं। जैसे पर्यावरणीय क्षरण और जैव-विविधता की हानि, जनजातीय अधिकारों और मूलनिवासी समुदायों के लिये खतरा, सामरिक सैन्यीकरण और क्षेत्रीय तनाव, आर्थिक असमानता और स्थानीय विकास, जलवायु परिवर्तन और समुद्र के बढ़ते स्तर का बढ़ता खतरा, अपर्याप्त कनेक्टिविटी और बुनियादी अवसंरचना की समस्याएँ, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में प्रवाल भित्तियों का क्षरण आदि। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत कई तरीके अपना सकता है। इनमें पर्यावरणीय विनियमों और प्रभाव आकलन को सुदृढ़ बनाना, सतत् पर्यटन प्रथाओं को बढ़ावा देना, एकीकृत तटीय और समुद्री संसाधन प्रबंधन, विकास में स्वदेशी अधिकारों और समावेशन को बढ़ावा देना, आपदा समुत्थानशीलन और जलवायु अनुकूलन बढ़ाना, आत्मनिर्भरता के लिये नवीकरणीय ऊर्जा का लाभ उठाना, पारिस्थितिक पुनर्स्थापन और पुनर्वनीकरण कार्यक्रम, हरित अवसंरचना और कम प्रभाव वाले निर्माण का विकास, सतत् आजीविका के लिये स्थानीय क्षमता को मज़बूत करना आदि शामिल हैं। अंत में हम कह सकत हैं कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का सामरिक, आर्थिक और पारिस्थितिक महत्त्व विकास एवं संरक्षण के बीच संतुलन की माँग करता है। नवीकरणीय ऊर्जा, इको-टूरिज़्म और जलवायु परिवर्तन के प्रति समुत्थानशक्ति को प्राथमिकता देकर, भारत अपने विकास को संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से एस डी जी 13 (जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई) और एस डी जी 15 (थलीय जीवों की सुरक्षा) के अनुरूप बना सकता है।