भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले से बीते दिनों सामने आई ‘छांगुर बाबा’ की कहानी ने पूरे देश को चौंका ही नहीं बल्कि दहला दिया है। दावा है कि एक धार्मिक स्थल की आड़ में बड़ी संख्या में युवा लड़कियों अथवा महिलाओं का धर्मांतरण, लव जिहाद की साजिश और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई एस आई से जुड़ी कड़ियाँ सक्रिय थीं। छांगुर बाबा नामक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती यह कहानी फिलहाल जांच के दायरे में है, लेकिन इससे उठे सवाल बेहद गंभीर हैं—आख़िर ऐसी घटनाओं पर कब तक चुप्पी साधी जाएगी? और कितने ‘छांगुर बाबा’ और उनके कितने गुर्गे हैं इस गोरखधंधे में। आइये समझते हैं पूरे मामले को। जौनपुर के केराकत थाना क्षेत्र में स्थित एक ‘मज़ार’ को लेकर सनसनी तब फैली जब पुलिस को सूचना मिली कि वहाँ गैर-कानूनी गतिविधियाँ चल रही हैं। छापेमारी में सामने आया कि यह जगह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं थी, बल्कि वहां युवा खास कर महिलाओं को धर्मांतरण के लिए उकसाया जा रहा था। शुरुआती जांच में यह भी खुलासा हुआ कि लगभग 1000 मुस्लिम युवकों को इस कथित धार्मिक नेता के अधीन तैयार किया गया था। इनका उपयोग कथित रूप से लव जिहाद और धार्मिक कट्टरता फैलाने में किया जा रहा था। पुलिस सूत्रों के अनुसार, यहां कथित तौर पर युवकों को हिंदू लड़कियों को प्रेमजाल में फँसाने के ‘प्रशिक्षण’ जैसी प्रक्रिया से भी जोड़ा गया। उद्देश्य था—शादी के बहाने धर्मांतरण कराना। छांगुर बाबा की अगुआई में यह नेटवर्क लंबे समय से सक्रिय था, जो स्थानीय स्तर पर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व को चुनौती देने का कार्य कर रहा था। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह पूरा नेटवर्क डिजिटल रूप से भी सुसज्जित था। युवकों को सोशल मीडिया, चैट ग्रुप्स और वीडियो कंटेंट के ज़रिए ‘लक्ष्य साधने’ के निर्देश दिए जाते थे। यही वह बिंदु है जहां मामला सिर्फ धार्मिक उन्माद या समाज में विभाजन फैलाने की साजिश तक सीमित नहीं रह जाता। जांच एजेंसियों को शक है कि इस पूरे नेटवर्क का आई एस आई यानी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी से भी संपर्क रहा है। मोबाइल डेटा, विदेशी लेनदेन और संदिग्ध यात्राओं की जांच की जा रही है। शुरुआती साइबर विश्लेषण में कुछ मोबाइल नंबर और चैट्स सामने आए हैं जिनमें पाकिस्तान से संवाद का संकेत मिलता है। छांगुर बाबा का जाल महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ था। इस पूरे नेटवर्क को वो विदेशी फंडिंग के जरिए मजबूत करता रहा। इस पूरे घटनाक्रम के बाद यह सवाल बार-बार उठ रहा है—क्या स्थानीय प्रशासन और खुफिया एजेंसियों ने इतने लंबे समय तक इस नेटवर्क को अनदेखा किया? क्या धार्मिक संस्थानों के नाम पर चल रहे अवैध केंद्रों की नियमित निगरानी नहीं होनी चाहिए? इसके अतिरिक्त, यह भी देखा गया कि कई राजनीतिक दल इस विषय पर चुप्पी साधे हुए हैं। जबकि यह केवल ‘धार्मिक मामला’ नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द, और सामाजिक संरचना से जुड़ा विषय है। यह घटना केवल एक व्यक्ति या स्थान तक सीमित नहीं है। देश के कई हिस्सों में ऐसे छद्म धार्मिक ठिकाने पनपते जा रहे हैं, जहाँ कट्टरता, नफरत और असहिष्णुता को खाद-पानी मिल रहा है। इनका उद्देश्य साफ है—भारत की विविधता को कमजोर करना, युवाओं को गुमराह करना और लोकतांत्रिक ढाँचे को चुनौती देना। अंत में कह सकते हैं कि ‘छांगुर बाबा’ का प्रकरण केवल सतह की बर्फ के समान है। नीचे गहराई में एक सुनियोजित और संगठित साजिश की झलक मिलती है। आवश्यकता है—एक सशक्त निगरानी तंत्र, कठोर कानूनों का निष्पक्ष क्रियान्वयन, और जागरूक नागरिकों की भूमिका को सशक्त करने की ताकि भविष्य में कोई और छांगुर बाबा बनने की जुर्रत न कर सके।