भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत में वन सिर्फ हरियाली की पहचान नहीं हैं, बल्कि वे देश की पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और जलवायु स्थिरता के मूल स्तंभ भी हैं। ये जंगल न केवल जैवविविधता को संजोए हुए हैं, बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका, पर्यावरणीय संतुलन और सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वन विविध पारिस्थितिक तंत्रों को समर्थन देकर भारत के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण हैं। वनों का संरक्षण विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करता है तथा महत्त्वपूर्ण आवासों को संरक्षित करता है। भारत के वनों में लगभग 80% स्थलीय जैवविविधता पाई जाती है, जिसमें बंगाल टाइगर और एशियाई शेर जैसी लुप्तप्राय प्रजातियाँ भी शामिल हैं। भारत वन स्थिति रिपोर्ट- 2023 के अनुसार, भारत का वन एवं वृक्ष आवरण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% है, जो उनके पारिस्थितिक महत्त्व को दर्शाता है। यदि जैवविविधता के नुकसान का प्रबंधन नहीं किया गया, तो अस्तित्व के लिये आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र समर्थन के नष्ट होने का खतरा है। यह सच है कि भारत के वनों का सीधा संबंध कई वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों से है। एस डी जी 15 (स्थलीय जीवन का संरक्षण) वनों की रक्षा और जैवविविधता को बढ़ावा देने पर जोर देता है। एस डी जी 13 (जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई) के तहत, वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में सहायक होते हैं। वहीं, एस डी जी 8 (अवसरयुक्त आर्थिक विकास) के तहत वन आधारित उद्योग, हस्तशिल्प और गैर-लकड़ी उत्पादों से जुड़ी गतिविधियाँ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देती हैं। वन भारत में 25 करोड़ से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आजीविका प्रदान करते हैं। विशेष रूप से आदिवासी और वनों पर निर्भर समुदायों की संस्कृति, आहार, चिकित्सा और जीवनशैली वनों से गहराई से जुड़ी हुई है। लाखों ग्रामीणों के लिए गैर-काष्ठ वन उत्पाद जैसे महुआ, तेंदू पत्ता, साल बीज, शहद आदि आय का मुख्य स्रोत हैं। वन प्राकृतिक पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं। ये वर्षा चक्र को नियंत्रित करते हैं, नदियों को पोषण देते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और जलस्रोतों को पुनर्भरण करते हैं। साथ ही, ये जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक मजबूत रक्षा कवच भी प्रदान करते हैं। भारत के कुल ग्रीन कवर में 24.62% हिस्सा वनों का है, जिसे बढ़ाकर 33% तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हालांकि वन संरक्षण के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन अवैध कटाई, शहरीकरण, खनन और औद्योगिकीकरण जैसे कारण वनों के अस्तित्व पर खतरा बन रहे हैं। ऐसे में, केवल वन क्षेत्र बढ़ाना ही नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ टिकाऊ और समावेशी रणनीति अपनाना भी आवश्यक है। वन अधिकार अधिनियम, 2006 जैसी नीतियाँ स्थानीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा करते हुए संरक्षण में भी मदद कर सकती हैं। भारत के जंगल केवल प्रकृति की शोभा नहीं हैं, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिक विकास की नींव हैं। यदि भारत को जलवायु संकट से निपटना है और सतत विकास लक्ष्यों को समय पर प्राप्त करना है, तो वनों के संरक्षण और उनके टिकाऊ उपयोग को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी ही होगी।