भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां बिहार में मतदाता सूची से 35.6 लाख नामों को हटाए जाने की खबर ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में हलचल मचा दी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, यह कार्रवाई मतदाता सूची को शुद्ध और अद्यतन करने के उद्देश्य से की जा रही है, लेकिन इससे कई गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं। क्या यह प्रक्रिया पारदर्शी है? क्या इतने बड़े पैमाने पर नाम हटाना लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं? दूसरी ओर चुनाव आयोग ने अपनी दलील में कहा है कि मतदाता सूची से नाम हटाने की यह प्रक्रिया नियमित सत्यापन का हिस्सा है, जिसे हर कुछ वर्षों में किया जाता है। आयोग का तर्क है कि यह कवायद 'डुप्लिकेट नामों', मृत व्यक्तियों, स्थानांतरित नागरिकों और दोहरी प्रविष्टियों को हटाने के लिए की जाती है। इसके अतिरिक्त, एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट हुए मतदाताओं को नए क्षेत्र की सूची में स्थानांतरित किया गया है।हालांकि, चुनाव विशेषज्ञों और कई नागरिक संगठनों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में नामों का हटाया जाना आशंका पैदा करता है कि कहीं यह किसी खास वर्ग, क्षेत्र या समुदाय को निशाना बनाकर तो नहीं किया गया है। नाम हटाने की प्रक्रिया को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या संबंधित मतदाताओं को पूर्व सूचना दी गई? कई मतदाताओं ने शिकायत की है कि उन्हें न तो कोई नोटिस मिला, न ही उन्हें अपना नाम सूची में बनाए रखने का अवसर दिया गया। जिन लोगों के नाम हटाए गए हैं, उनमें बड़ी संख्या ग्रामीण क्षेत्रों, अल्पसंख्यक समुदायों और वंचित तबकों से बताई जा रही है। अगर मतदाता सूची में नाम न हो, तो व्यक्ति चुनाव के दिन अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत अधिकारों का हनन है, बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना के भी खिलाफ है। राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी हैं। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की कार्रवाई को "एकतरफा" और "संदेहास्पद" करार दिया है। उनका आरोप है कि यह कदम 2025 में संभावित विधानसभा चुनावों से पहले कुछ राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाने के इरादे से उठाया गया है। वहीं, सत्ताधारी दल का कहना है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है और वह अपने अधिकारों का प्रयोग कर रही है। यदि किसी को आपत्ति है तो वह औपचारिक रूप से शिकायत दर्ज करवा सकता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नाम हटाने की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं: सूचना देना अनिवार्य हो – जिनके नाम हटाए जा रहे हैं, उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचना देना और उन्हें प्रत्यावेदन का अवसर देना अनिवार्य होना चाहिए। ऑनलाइन वेरिफिकेशन सिस्टम को बेहतर बनाना – जिससे नागरिक समय रहते अपने नाम की स्थिति जांच सकें। स्थानीय निकायों की भागीदारी – ग्राम पंचायत, नगर निगम, और वार्ड स्तर पर सत्यापन में स्थानीय प्रतिनिधियों को शामिल करना। स्वतंत्र निगरानी समिति का गठन – निष्पक्ष नागरिक समाज और गैर-राजनीतिक विशेषज्ञों की निगरानी में यह कार्य हो।चुनाव प्रक्रिया का विश्वसनीय और निष्पक्ष होना लोकतंत्र की रीढ़ है। यदि मतदाता सूची से नाम हटाने जैसी प्रक्रिया संदेहास्पद हो जाती है, तो इसका असर पूरे चुनावी माहौल पर पड़ सकता है। बिहार जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में यह और भी गंभीर स्थिति पैदा कर सकता है। ऐसे में चुनाव आयोग को पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक सहभागिता के सिद्धांतों पर कायम रहकर इस प्रक्रिया को अंजाम देना चाहिए, ताकि हर नागरिक का मताधिकार सुरक्षित रहे।