भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
ओडिशा के मलकानगिरी जिले से एक बार फिर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला होने की दर्दनाक खबर सामने आई है। जिले के एलाकी क्षेत्र में एक स्वतंत्र पत्रकार नरेश कुमार की 13 जुलाई की शाम बेरहमी से हत्या कर दी गई। यह घटना न केवल पत्रकारिता जगत के लिए चिंता का विषय है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि आखिर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए हमारी व्यवस्था कब तक मूकदर्शक बनी रहेगी? साल 2025 में नरेश ‘तीसरे’ भारतीय पत्रकार हैं जिनकी हत्या कर दी गई है। इससे पहले 3 जनवरी को छत्तीसगढ़ में स्वतंत्र पत्रकार मुकेश चंद्राकर का शव एक सेप्टिक टैंक में मिला था और 8 मार्च को उत्तर प्रदेश में दैनिक जागरण के पत्रकार व आरटीआई कार्यकर्ता राघवेंद्र बाजपेयी की हत्या कर दी गई थी। जानकारी के मुताबिक, मलकानगिरी के एक छोटे से गांव में कार्यरत एक स्थानीय पत्रकार, जो बीते कई वर्षों से प्रशासनिक अनियमितताओं और नक्सल प्रभावित इलाकों की रिपोर्टिंग कर रहा था, उसकी हत्या संदिग्ध हालातों में कर दी गई। शव पर गहरे चोट के निशान और घाव इस बात की पुष्टि करते हैं कि उसके साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया गया।स्थानीय पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है, लेकिन अब तक हत्या के पीछे की स्पष्ट वजह सामने नहीं आई है। हालांकि पत्रकार की रिपोर्टिंग के दौरान कई बार उसे धमकियां मिलती रही थीं, जिसे वह नजरअंदाज करता रहा। ग्रामीण और नक्सल प्रभावित इलाकों में काम कर रहे पत्रकारों के लिए ना सुरक्षा है, ना संसाधन, और ना ही कोई नीति जो उन्हें संरक्षण दे सके। मलकानगिरी जैसे जिलों में जहां प्रशासन की पहुंच सीमित है और नक्सली गतिविधियां सक्रिय हैं, वहां पत्रकारों की भूमिका और भी ज्यादा संवेदनशील हो जाती है। इस हत्या ने फिर से यह साबित कर दिया है कि क्षेत्रीय पत्रकार, जो जमीनी सच्चाई सामने लाने की कोशिश करते हैं, सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। वह न सिर्फ सरकार या प्रशासन के कोप का शिकार होते हैं, बल्कि अपराधी तत्व और उग्रवादी भी उन्हें चुप कराने के लिए हिंसा का सहारा लेते हैं। घटना के बाद प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन समेत कई पत्रकार संगठनों ने इस हत्या की निंदा की है और ओडिशा सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की है। पत्रकार संगठनों ने मांग की है कि सरकार एक स्वतंत्र जांच आयोग का गठन करे जो इस मामले की निष्पक्ष जांच कर सके और दोषियों को जल्द से जल्द सज़ा दिलाए। साथ ही पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाए जाएं और उन्हें वीकेंड्स अथवा खतरनाक क्षेत्रों में रिपोर्टिंग के लिए विशेष सुरक्षा दी जाए। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस घटना के कई दिन बीत जाने के बावजूद राज्य सरकार की ओर से कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है। मुख्यमंत्री कार्यालय की चुप्पी, और प्रशासन की सुस्ती यह बताती है कि पत्रकारों की सुरक्षा अब भी प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं है। क्या लोकतंत्र में सच की कीमत जान देकर चुकाई जाएगी? यह सवाल अब पूरे देश के सामने खड़ा हो गया है। इस हत्या ने पूरे मीडिया जगत को झकझोर कर रख दिया है। अब जरूरत है कि राज्य और केंद्र सरकारें इस मामले को गंभीरता से लें और पत्रकार सुरक्षा कानून की दिशा में ठोस कदम उठाएं। पत्रकारों पर हमले केवल एक व्यक्ति पर नहीं, पूरे लोकतंत्र पर हमला होते हैं। अगर समय रहते ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगाई गई, तो पत्रकारिता की स्वतंत्रता और सत्य की आवाज हमेशा के लिए दबाई जा सकती है। मलकानगिरी की इस दर्दनाक घटना ने फिर साबित किया है कि पत्रकारिता एक पेशा नहीं, बल्कि जोखिम से भरी सेवा है – और इसके लिए राज्य को जवाबदेह होना ही होगा।