Thursday, August 21, 2025
BREAKING
Weather: गुजरात में बाढ़ से हाहाकार, अब तक 30 लोगों की मौत; दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश की चेतावनी जारी दैनिक राशिफल 13 अगस्त, 2024 Hindenburg Research Report: विनोद अदाणी की तरह सेबी चीफ माधबी और उनके पति धवल बुच ने विदेशी फंड में पैसा लगाया Hindus in Bangladesh: मर जाएंगे, बांग्लादेश नहीं छोड़ेंगे... ढाका में हजारों हिंदुओं ने किया प्रदर्शन, हमलों के खिलाफ उठाई आवाज, रखी चार मांग Russia v/s Ukraine: पहली बार रूसी क्षेत्र में घुसी यूक्रेनी सेना!, क्रेमलिन में हाहाकार; दोनों पक्षों में हो रहा भीषण युद्ध Bangladesh Government Crisis:बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्तापलट, सेना की कार्रवाई में 56 की मौत; पूरे देश में अराजकता का माहौल, शेख हसीना के लिए NSA डोभाल ने बनाया एग्जिट प्लान, बौखलाया पाकिस्तान! तीज त्यौहार हमारी सांस्कृतिक विरासत, इन्हें रखें सहेज कर- मुख्यमंत्री Himachal Weather: श्रीखंड में फटा बादल, यात्रा पर गए 300 लोग फंसे, प्रदेश में 114 सड़कें बंद, मौसम विभाग ने 7 अगस्त को भारी बारिश का जारी किया अलर्ट Shimla Flood: एक ही परिवार के 16 सदस्य लापता,Kedarnath Dham: दो शव मिले, 700 से अधिक यात्री केदारनाथ में फंसे Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी की सब-कैटेगरी में आरक्षण को दी मंज़ूरी

संपादकीय

Power of authority or constitutional accountability? India's custody system needs to be discussed!: सत्ता की ताकत या संवैधानिक जवाबदेही? भारत की हिरासत प्रणाली पर मंथन जरूरी!

August 04, 2025 07:18 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़        
इस में कोई दो राय नहीं है कि भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसकी नींव ही नागरिकों की गरिमा और उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा पर रखी गई है। लेकिन हिरासत में होने वाले अमानवीय व्यवहार, अवैध कस्टडी और पुलिस अत्याचार से जुड़े मामलों ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हिरासत का मतलब अब भी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है या यह सत्ता का दमनकारी औजार बन गई है? हाल के वर्षों में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट्स और मानवाधिकार संगठनों के अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारत में कस्टोडियल डेथ यानी हिरासत में मौतों के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि कई बार पीड़ित व्यक्ति को बिना उचित कारण या प्रक्रिया के ही लंबे समय तक हिरासत में रखा जाता है, जिससे संविधान द्वारा प्रदत्त ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ का सीधा उल्लंघन होता है। पुलिस व्यवस्था को सुधारने और हिरासत में मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसलों में बार-बार दिशा-निर्देश जारी किए हैं। 1996 के डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य केस में कोर्ट ने कस्टडी के दौरान अधिकारों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश दिए, जैसे- गिरफ्तारी के समय परिजन को सूचना देना, मेडिकल जांच कराना और केस डायरी में सभी गतिविधियों का रिकॉर्ड रखना। इसके बावजूद कई राज्यों में पुलिस इन मानकों का पालन करने में असफल रहती है। दरअसल, हिरासत की मौजूदा व्यवस्था दो बड़े खतरों को जन्म देती है – पहला, यह पुलिस के लिए व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देने का मंच बन जाता है; दूसरा, यह नागरिकों के मन में पुलिस के प्रति अविश्वास और डर को बढ़ाता है। और जब न्यायिक प्रक्रिया पर ही अविश्वास होने लगे, तो लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर पड़ने लगती है। हिरासत के दौरान पुलिस द्वारा हिंसा के मामलों की बड़ी वजह हमारे सिस्टम में व्याप्त “स्वीकारोक्ति-आधारित जांच पद्धति” है। पुलिस कई बार तथ्यों और सबूतों के वैज्ञानिक विश्लेषण के बजाय आरोपी से जुर्म कबूल करवाने के लिए दबाव का रास्ता अपनाती है। यह आदत ब्रिटिश काल से चली आ रही उपनिवेशी सोच का हिस्सा है, जो अब भी व्यवस्था में जड़ें जमाए हुए है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 साफ तौर पर कहता है कि “किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से तभी वंचित किया जा सकता है, जब वह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार हो।” इसका अर्थ यह है कि हिरासत में किसी भी व्यक्ति के साथ अमानवीय व्यवहार या यातना संविधान के खिलाफ है। लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि पुलिस सुधार की कोशिशें दशकों से फाइलों में दबी पड़ी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में प्रसाद समिति की सिफारिशों को लागू करने के निर्देश दिए थे, जिनका मकसद पुलिस को राजनीतिक दबाव से मुक्त करना और उसकी जवाबदेही तय करना था। पर इन सुधारों का जमीन पर असर नाममात्र ही देखने को मिला है। वर्तमान समय में जरूरी है कि हिरासत की प्रक्रिया में तकनीक और पारदर्शिता को शामिल किया जाए। उदाहरण के लिए, सभी थानों और पूछताछ कक्षों में सी सी टी वी कैमरे अनिवार्य किए जाएं और उनकी फुटेज संरक्षित रखी जाए। गिरफ्तारी और हिरासत से जुड़ी जानकारी ऑनलाइन सार्वजनिक पोर्टल पर डालने का सिस्टम बने, ताकि परिजन और वकील आसानी से ट्रैक कर सकें। साथ ही, पुलिस को संवेदनशील और मानवाधिकार-प्रशिक्षित बनाने के लिए रेगुलर ट्रेनिंग जरूरी है। पुलिस बल में शामिल हर अधिकारी को यह समझना चाहिए कि हिरासत का मतलब न्याय की प्रक्रिया में मदद करना है, न कि शक्ति का गलत इस्तेमाल। यह तभी संभव होगा जब सरकार और समाज दोनों, पुलिसिंग को पेशेवर बनाने और मानवीय गरिमा का सम्मान करने के प्रति गंभीर होंगे। आज जब भारत लोकतंत्र के साढे सात दशक पूरे कर चुका है और आगे बढ़ रहा है, तब हिरासत में होने वाले अमानवीय व्यवहार को जड़ से खत्म करने का समय आ गया है।

Have something to say? Post your comment

और संपादकीय समाचार

Accountability vs politics in democracy: Challenge of the bill to remove PM, CM and ministers from their posts: लोकतंत्र में जवाबदेही बनाम राजनीति: पीएम, सीएम और मंत्री को पद से हटाए जाने बिल की चुनौती

Accountability vs politics in democracy: Challenge of the bill to remove PM, CM and ministers from their posts: लोकतंत्र में जवाबदेही बनाम राजनीति: पीएम, सीएम और मंत्री को पद से हटाए जाने बिल की चुनौती

Question on the strength of democracy or accountability? Constitutional shield of the Election Commissioner: लोकतंत्र की मजबूती या जवाबदेही पर सवाल? चुनाव आयुक्त का संवैधानिक कवच

Question on the strength of democracy or accountability? Constitutional shield of the Election Commissioner: लोकतंत्र की मजबूती या जवाबदेही पर सवाल? चुनाव आयुक्त का संवैधानिक कवच

India's diplomatic game: Russia's trust or America's strength - which has the real advantage?:  भारत की कूटनीतिक बाज़ी: रूस का भरोसा या अमेरिका की ताकत – असली फ़ायदा किसमें?

India's diplomatic game: Russia's trust or America's strength - which has the real advantage?: भारत की कूटनीतिक बाज़ी: रूस का भरोसा या अमेरिका की ताकत – असली फ़ायदा किसमें?

78 years of beautiful post-independence India: A journey of achievements, challenges and unfulfilled goals: 78 वर्षों की खूबसूरत स्वतंत्रता के बाद का भारत: उपलब्धियों, चुनौतियों और अधूरे लक्ष्यों का सफर

78 years of beautiful post-independence India: A journey of achievements, challenges and unfulfilled goals: 78 वर्षों की खूबसूरत स्वतंत्रता के बाद का भारत: उपलब्धियों, चुनौतियों और अधूरे लक्ष्यों का सफर

Peace talks are on the way! The world's hopes have risen from the discussions between Modi and Zelensky: शांति वार्ता की दस्तक! मोदी–जेलेंस्की में चर्चा से बढ़ी दुनिया की उम्मीदें

Peace talks are on the way! The world's hopes have risen from the discussions between Modi and Zelensky: शांति वार्ता की दस्तक! मोदी–जेलेंस्की में चर्चा से बढ़ी दुनिया की उम्मीदें

Leave rail and road now, goods will be transported through rivers, it will become the engine of 5 trillion dollar economy: रेल-सड़क अब छोड़िए, नदियों से होगी माल की ढुलाई, 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का बनेगा इंजन

Leave rail and road now, goods will be transported through rivers, it will become the engine of 5 trillion dollar economy: रेल-सड़क अब छोड़िए, नदियों से होगी माल की ढुलाई, 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था का बनेगा इंजन

The world's largest democracy is surrounded by allegations of fake voters, the Election Commission should come forward and give a proper answer: :   फर्जी वोटरों के आरोपों पर घिरा विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, चुनाव आयोग को आगे बढ़ कर देना चाहिए उचित जवाब

The world's largest democracy is surrounded by allegations of fake voters, the Election Commission should come forward and give a proper answer: : फर्जी वोटरों के आरोपों पर घिरा विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, चुनाव आयोग को आगे बढ़ कर देना चाहिए उचित जवाब

India becomes a ray of global hope in the fight against climate crisis!: जलवायु संकट से जंग में भारत बना वैश्विक उम्मीद की किरण!

India becomes a ray of global hope in the fight against climate crisis!: जलवायु संकट से जंग में भारत बना वैश्विक उम्मीद की किरण!

Every year clouds burst in the mountains, causing devastation but we do not wake up...ः हर साल पहाड़ों में फटता है बादल, मचती है तबाही मगर हम है कि जागते ही नहीं...

Every year clouds burst in the mountains, causing devastation but we do not wake up...ः हर साल पहाड़ों में फटता है बादल, मचती है तबाही मगर हम है कि जागते ही नहीं...

After Israel-Hamas war, Jews are at risk of global boycott!: इज़राइल-हमास युद्ध के बाद यहूदियों पर मंडराया वैश्विक बहिष्कार का खतरा!

After Israel-Hamas war, Jews are at risk of global boycott!: इज़राइल-हमास युद्ध के बाद यहूदियों पर मंडराया वैश्विक बहिष्कार का खतरा!

By using our site, you agree to our Terms & Conditions and Disclaimer     Dismiss