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संपादकीय

The world's largest democracy is surrounded by allegations of fake voters, the Election Commission should come forward and give a proper answer: : फर्जी वोटरों के आरोपों पर घिरा विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, चुनाव आयोग को आगे बढ़ कर देना चाहिए उचित जवाब

August 07, 2025 08:07 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़      

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का माध्यम नहीं, बल्कि जन-आवाज़ की सबसे पवित्र अभिव्यक्ति माने जाते हैं। ऐसे में यदि मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगें, तो यह न केवल चुनावी प्रक्रिया पर, बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है। हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि देशभर में लाखों की संख्या में फर्जी वोटर मौजूद हैं। उन्होंने इसे लोकतंत्र की हत्या बताते हुए चुनाव आयोग की चुप्पी पर भी सवाल खड़े किए हैं। उनका दावा है कि कई वोटर या तो फर्जी पहचान के साथ पंजीकृत हैं, या इनका दो या इससे अधिक जगहों पर नाम दर्ज हैं, जबकि कुछ मृतक भी मतदाता सूची में बने हुए हैं। राहुल गांधी ने कुछ आंकड़े और डेटा विश्लेषण का हवाला भी दिया, लेकिन अब तक चुनाव आयोग की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। इससे चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठना लाजमी है। भारत में चुनाव आयोग को लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। इसकी ज़िम्मेदारी स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने की होती है। ऐसे में जब एक वरिष्ठ नेता इस संस्था पर गंभीर आरोप लगाए और आयोग चुप रहे, तो यह न केवल आम नागरिकों बल्कि विशेषज्ञों और नागरिक संगठनों को भी चिंतित करता है। क्या आयोग तथ्यों की जांच में व्यस्त है, या वह जानबूझकर चुप्पी साधे है — यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन एक बात साफ है कि पारदर्शिता की मांग अब जोर पकड़ रही है। लोगों को यह जानने का हक है कि उनका वोट सुरक्षित है और किसी प्रकार की धांधली नहीं हो रही। हाल के वर्षों में भारत की चुनाव प्रणाली में तकनीकी प्रगति तो हुई है, लेकिन  वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां कोई नई बात नहीं हैं। अतीत में कई बार ऐसी शिकायतें आई हैं कि मृत लोगों के नाम सूची में हैं, एक ही व्यक्ति के नाम कई बार पंजीकृत हैं, या लोग गलत पते पर रजिस्टर हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत की विशाल जनसंख्या, आंतरिक प्रवासन और कागजी प्रक्रियाओं में देरी इस समस्या को और जटिल बना देते हैं। हालांकि, आधार लिंकिंग, फेस रिकग्निशन या बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन जैसे समाधान मौजूद हैं, लेकिन इनका उपयोग अब तक पूरे देश में व्यापक रूप से नहीं हो पाया है। राहुल गांधी के इस बयान के बाद कई विपक्षी दलों ने उनका समर्थन किया और चुनाव आयोग से मतदाता सूची की समीक्षा और सुधार की मांग की। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राहुल के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। भाजपा नेताओं ने इसे लोकतंत्र को बदनाम करने की कोशिश बताया और कहा कि राहुल गांधी के पास यदि कोई ठोस सबूत हैं तो उन्हें चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। क्या भारत का लोकतंत्र फर्जी वोटिंग से खतरे में है? तकनीकी जानकार मानते हैं कि यदि वोटर डेटा में व्यापक गड़बड़ियां पाई जाएं, तो चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। फर्जी वोटिंग न सिर्फ सही मतदाताओं के अधिकार को कमजोर करती है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा को चोट पहुंचाने वाला कार्य है। यदि यह संगठित रूप से किया जा रहा है, तो यह सीधे संविधान, कानून और लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है। इस समस्या से निपटने के लिए कुछ प्रभावी उपाय किए जा सकते हैं: डिजिटल वेरिफिकेशन: मतदाता सूची को आधार या बायोमेट्रिक डाटा से लिंक करना।पब्लिक स्क्रूटिनी: वोटर लिस्ट को ऑनलाइन सार्वजनिक करना, जिससे आम नागरिक अपनी प्रविष्टि की जांच कर सकें। स्थायी अपडेट सिस्टम: समय-समय पर मृतकों के नाम हटाने और प्रवासियों के डाटा को अपडेट करने की प्रणाली। चुनाव आयोग की सक्रियता: आरोपों का स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच और सुधार। भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र में यदि मतदान प्रक्रिया की शुद्धता पर ही सवाल उठ जाएं, तो इससे न केवल संस्थाओं की साख पर असर पड़ता है, बल्कि आम नागरिकों का भरोसा भी डगमगाता है। राहुल गांधी के आरोप भले ही राजनीतिक हों, लेकिन यह आत्ममंथन का अवसर है — खासकर चुनाव आयोग के लिए। आयोग को चाहिए कि वह आगे आकर पारदर्शिता बरते, तथ्यों की जांच करे और जनता को आश्वस्त करे कि भारतीय लोकतंत्र की नींव — निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव प्रक्रिया — आज भी पूरी मजबूती से कायम है।

 

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