भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
यूक्रेन और रूस के बीच लंबे अर्से से जारी युद्ध में शांति की संभावना पर एक नई रोशनी पड़ी है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच सोमवार को हुई टेलीफोन वार्ता ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान खींचा है। जेलेंस्की ने इस वार्ता में रूस द्वारा यूक्रेनी शहरों पर हालिया हमलों का विवरण साझा किया और वैश्विक समुदाय से अधिक ठोस कदम उठाने का आह्वान किया। मोदी ने स्पष्ट किया कि भारत शीघ्र और शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में है और हर संभव सहयोग देने को तैयार है। इस टेलीफोनिक वार्ता के दौरान दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर चर्चा हुई: जेलेंस्की ने ज़ापोरिज़्ज़िया और अन्य क्षेत्रों में नागरिक ठिकानों पर हुए हमलों की जानकारी दी, जिनमें हाल ही में एक बस स्टेशन पर बमबारी के बाद कई लोग हताहत हुए। उन्होंने कहा कि यह स्थिति मानवीय संकट को और गहरा रही है। जेलेंस्की ने रूस के साथ ऊर्जा और तेल व्यापार को सीमित करने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि युद्ध जारी रखने की उसकी वित्तीय क्षमता कमजोर हो। उनका तर्क था कि “जब तक रूस को राजस्व स्रोत उपलब्ध हैं, वह सैन्य आक्रामकता से पीछे नहीं हटेगा।” मोदी ने दोहराया कि भारत हर प्रकार की हिंसा का विरोध करता है और बातचीत व कूटनीतिक प्रयासों के जरिये ही दीर्घकालिक समाधान संभव है। दोनों नेताओं ने सितंबर में न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान आमने-सामने मिलने पर सहमति जताई। गौरतलब है कि भारत इस युद्ध में न तो रूस के पूरी तरह पक्ष में है और न ही पश्चिमी देशों की लाइन पर चलता है। उसका रुख संतुलित और तटस्थ रहा है – एक तरफ वह रूस के साथ ऊर्जा व्यापार और रक्षा साझेदारी जारी रखता है, तो दूसरी ओर यूक्रेन को मानवीय सहायता भी देता है और शांति प्रयासों में मध्यस्थता की संभावना बनाए रखता है। भारत की यह नीति उसे विश्वसनीय संवाद-सहयोगी बनाती है। यही वजह है कि यूक्रेन और पश्चिमी देश, भारत से उम्मीद रखते हैं कि वह रूस पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने में भूमिका निभा सकता है। यह सच है कि इस बातचीत से यह साफ है कि शांति की दिशा में कुछ सकारात्मक संकेत मौजूद हैं, लेकिन युद्ध को तुरंत समाप्त करने का दावा फिलहाल संभव नहीं लगता। दूसरी ओर अब तक रूस ने कोई ठोस संकेत नहीं दिया है कि वह संघर्ष समाप्त करने या युद्धविराम के लिए तैयार है। हाल के कुछ कूटनीतिक संकेत (जैसे ट्रंप–पुतिन अलास्का शिखर सम्मेलन की चर्चा) उत्साहजनक जरूर हैं, लेकिन निर्णायक नहीं। जेलेंस्की का बयान “यूक्रेन से जुड़ा कोई भी फैसला, यूक्रेन की भागीदारी के बिना स्वीकार्य नहीं” यह दर्शाता है कि वह किसी भी थोपे गए समाधान के खिलाफ हैं। गर हम भारत की बात करें तो भारत खुद को ग्लोबल पीस ब्रिज के रूप में प्रस्तुत कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी–जेलेंस्की मुलाकात एक राजनयिक मंच बन सकती है जहां भारत दोनों पक्षों को वार्ता के लिए प्रेरित करे। यह भी सच है कि रूस के साथ ऊर्जा और रक्षा व्यापार कम करना भारत के लिए आर्थिक और सामरिक दृष्टि से कठिन होगा। पश्चिमी देशों की अपेक्षाएं और घरेलू आर्थिक हितों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती है। इस युद्ध ने अब तक हजारों नागरिकों की जान ली है और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं। कृषि आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने से दुनिया भर में खाद्यान्न कीमतें प्रभावित हुई हैं। ऊर्जा बाजार में अस्थिरता से कई विकासशील देशों पर महंगाई का दबाव बढ़ा है। भारत जैसे देश, जो ऊर्जा के बड़े आयातक हैं, इस अस्थिरता का सीधा असर झेलते हैं। यही कारण है कि भारत बार-बार “संवाद और शांतिपूर्ण समाधान” पर जोर देता है। मोदी–जेलेंस्की टेलीफोन वार्ता ने यूक्रेन–रूस युद्ध में शांति की संभावना को एक नई दिशा दी है। हालांकि, पूर्ण विराम की राह अभी लंबी और कठिन है। भारत की तटस्थ लेकिन सक्रिय भूमिका, रूस और यूक्रेन के बीच संवाद की संभावना बनाए रखने में अहम साबित हो सकती है। यदि आने वाले महीनों में कूटनीतिक प्रयास तेज हुए और सभी पक्ष विन–विन समाधान की ओर बढ़े, तो यह संघर्ष समाप्त होने की ओर पहला ठोस कदम हो सकता है। फिलहाल, उम्मीद जिंदा है — और भारत की भूमिका इस उम्मीद को जीवित रखने में निर्णायक हो सकती है।